संपादकीय

आतंकवाद के डाक्टर

परिस्थितिजन्य तफसील से यह स्पष्ट हो चुका है कि दिल्ली विस्फोट ‘आतंकी हमला’ ही था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि षड्यंत्रकारियों को बख्शा नहीं जाएगा। सामान्य धमाके में साजिशकार नहीं होते। बुधवार को प्रधानमंत्री की ही अध्यक्षता में कैबिनेट की सुरक्षा समिति (सीसीएस) की बैठक हुई। अक्सर यह युद्ध और आतंकी हमले के बाद ही बुलाई जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि होते हैं। युद्ध की स्थिति में तीनों सेना प्रमुखों को भी बुलाया जाता है। गृह सचिव और आईबी निदेशक भी बैठक में सम्मिलित होते हैं। दिल्ली विस्फोट की जांच ‘राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी’ (एनआईए) को सौंपी गई है, जिसे आतंकी हमलों की गहन जांच की विशेषज्ञता हासिल है। इस संदर्भ में फरीदाबाद की ‘अलफलाह यूनिवर्सिटी’ आतंकवाद के नए अड्डे के तौर पर उभरी है। फरीदाबाद के गांवों से जो 2900 किग्रा. विस्फोटक रसायन बरामद किया गया था, उसकी भूमिका भी साफ हो गई है। जो डॉ. उमर मुहम्मद कार-विस्फोट में मारा गया है, वह इसी मेडिकल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर था। वह जिस तरह मरा है, उसे हम एक नए किस्म का ‘फिदायीन बॉम्बर’ मान सकते हैं, क्योंकि उसकी कार में विस्फोटक था और उसी ने उसे सक्रिय किया होगा! जांच से बिल्कुल पारदर्शी स्पष्ट हो जाएगा। उमर कश्मीर के पुलवामा के कोइल गांव का निवासी था। विस्फोटक रसायन वाला आतंकी डॉ. मुजम्मिल शकील भी इसी गांव का रहने वाला था। वह इस आतंकी यूनिवर्सिटी में ही एसोसिएट प्रोफेसर था। तीसरा डॉ. सज्जाद अहमद भी पुलवामा का था। अलफलाह यूनिवर्सिटी में ही 45 वर्षीया डॉ. शाहीन सईद पदस्थ थी और एमबीबीएस, एमडी स्तर की फार्मकोलॉजी विशेषज्ञ थी। वह जैश-ए-मुहम्मद के सरगना आतंकी मसूद अजहर और उसकी बहन सादिया के नेतृत्व में आतंकी संगठन की महिला विंग ‘जमात उल मोमिनात’ की भारत में मुखिया थी। उसे संगठन में ‘जेहादी औरतों’ की भर्ती का जिम्मा दिया गया था। उसके भाई डॉ. परवेज को भी उप्र एटीएस ने गिरफ्तार कर लिया है। 38 वर्षीय डॉ. आदिल कश्मीर के काजीकुंड का निवासी था और सहारनपुर, उप्र में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर था।

यदि कश्मीर के नौगाम में जैश के धमकी वाले पोस्टर नहीं लगते, तो शायद आतंकवाद के ‘डॉक्टर मॉड्यूल’ का पर्दाफाश न होता! इस गिरोह के 8 आतंकियों में 4 डॉक्टर कश्मीरी, 2 उप्र के हैं और दो मौलवी-इमाम शामिल हैं। सभी पुलिस की गिरफ्त में हैं। उमर विस्फोट में भस्म हो चुका है। दरअसल यह राष्ट्रीय चिंता का विषय है कि उच्च प्रशिक्षित डॉक्टर अब आतंकी बन रहे हैं। डॉक्टर बनना आसान नहीं है। जब एक छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई करता है और 5-7 साल के अनथक परिश्रम और गहन अध्ययन के बाद, अंतत:, डॉक्टर बनता है, तो उस छात्र पर सरकार और करदाताओं के लाखों रुपए खर्च होते हैं। यह सवाल हैरानी का नहीं होना चाहिए कि उच्च शिक्षित नौजवान ‘आतंकी’ क्यों बन रहे हैं? वर्ष 2000 के कालखंड में ‘इंडियन मुजाहिदीन’ में प्रशिक्षित इंजीनियर आतंकी बने हुए थे। यही नहीं, जिन्होंने अमरीका में 9/11 आतंकी हमला किया था, वे आतंकी भी उच्च शिक्षित एवं मुसलमान थे। यही घोर कट्टरवाद, इस्लामी जेहाद और कथित काफिरों को मारने की मानसिकता ही है, जो नौजवानों को भ्रमित करती है और वे आतंकी बन जाते हैं। बहरहाल अभी तो जांच आगे बढ़ेगी, तो देश के प्रमुख राज्यों और शहरों के मेडिकल कॉलेज और शिक्षण संस्थानों की भीतरी कडिय़ां जुड़ेंगी। न जाने कितने ‘व्हाइट कॉलर आतंकी गिरोह’ सामने आएंगे! बात मुसलमान या गैर-मुस्लिम की नहीं है, लेकिन जिस तरह आतंक के डॉक्टर गिरोह बेनकाब हुए हैं और सभी मुसलमान हैं, लिहाजा कमोबेश पेशेवर पाठ्यक्रम की उच्च शिक्षा में प्रवेश देते समय उनकी पृष्ठभूमि की व्यापक और खुफिया जांच कराने का नियम, कानून अनिवार्य कर देना चाहिए। आखिर ये डॉक्टर जैश जैसे आतंकी संगठन के हैंडलर्स के चंगुल में कैसे फंस गए? चूंकि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ बुनियादी तौर पर जारी है और जैश का आतंकी हमला, उसकी साजिश, किन्हीं भी मायनों में, साबित हो चुके हैं और जैश पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन है, तो हम अपनी सरकार से जानना चाहते हैं कि क्या इसे ‘युद्ध’ माना जाएगा और भारत पाकिस्तान को सबक सिखाएगा? पाकिस्तान को बार-बार चेतावनी देने के बावजूद वह बाज नहीं आ रहा है, इसलिए उसे कड़ा सबक सिखाने की जरूरत है।

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