संपादकीय

पाक-तालिबान जंगी टकराव

पाकिस्तान और अफगान-तालिबान के बीच जंगी टकराव के हालात बन गए हैं। शनिवार गहरी रात में तालिबान लड़ाकों ने पाक चौकियों पर हमले किए। उनका दावा है कि 58 पाक फौजी मार दिए गए और 25 चौकियों पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया। भारी संख्या में हथियार, गोला-बारूद भी लड़ाकों के हाथ लगे हैं। पाकिस्तान का दावा है कि उसके 23 फौजी मारे गए हैं, जबकि पलटवार में ड्रोन हमले किए गए। पाकिस्तान करीब 200 अफगान लड़ाकों को मारने और 19 चौकियां कब्जाने का दावा कर रहा है। पाकिस्तान ने 9 अक्तूबर को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर मिसाइल हमला किया था। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का मुखिया मुफ्ती नूर वली उसके निशाने पर था, लेकिन वह बच गया। टीटीपी के ‘आत्मघाती फिदायीन’ ने पाकिस्तान में हमला कर कई लाशें बिछा दी थीं। यह संगठन बलूचिस्तान, खैबर में भी पाक फौजियों को हलाक करता रहा है। उनके पलटवार में पाक ने काबुल पर हमला किया था। वैसे पाक और अफगान सेनाओं का कोई मुकाबला नहीं है, क्योंकि अफगानिस्तान के पास वायुसेना या जल की ताकत पनडुब्बियां सरीखे आधुनिक हथियार नहीं हैं। जो अत्याधुनिक राइफलें, मशीन गन, रॉकेट लॉन्चर, गोला-बारूद, टैंक आदि अमरीकी सेनाएं छोड़ गई थीं, बस तालिबान लड़ाकों की ताकत वही है। तालिबान के पास करीब 40,000 प्रशिक्षित ‘आत्मघाती फिदायीन’ की ऐसी ताकत है, जो कहीं भी जाकर मौत का विस्फोट कर सकते हैं। तालिबानी हुकूमत के विदेश मंत्री आमिर मुत्ताकी भारत के प्रवास पर हैं। उन्होंने मिसाइल हमले को अफगान संप्रभुता पर हमला करार दिया था, लिहाजा 11 अक्तूबर की गहरी रात वाला हमला तालिबान का पलटबदला माना जा सकता है। यह जंगी टकराव और तनाव दो मुस्लिम देशों के दरमियान पसरा है। पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच जो ‘नाटो जैसा’ समझौता हुआ था, वह भी बेनकाब हो गया और खोखला साबित हुआ। सऊदी अरब पाकिस्तान के समर्थन में जंग में नहीं कूदा। अलबत्ता कतर की तरह अमन-चैन और संवाद का ही बयान दिया।

भारत के संदर्भ में यह जंगी टकराव कई मायने रखता है। तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत की संप्रभुता और एकता-अखंडता का समर्थन किया। भारत-अफगान विदेश मंत्रियों का जो साझा घोषणा-पत्र सार्वजनिक किया गया है, उसमें दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुता, एकता-अखंडता का समर्थन कर रहे हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई है। दरअसल भारत सरकार ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को अफगानिस्तान भेजकर उनकी संसद का निर्माण कराया। योजना आयोग की तर्ज पर एक खास दफ्तर बनाया गया है। भारत ने अफगानिस्तान में बांध बनाने के अलावा, स्कूल-कॉलेज, सडक़ें, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र आदि का भी निर्माण कराया है। भारत वहां 400 से अधिक परियोजनाएं संचालित कर रहा है और 3 अरब डॉलर से अधिक का निवेश है। दरअसल भारत-अफगान दोस्ती सदियों पुरानी है, लिहाजा भारत ने अफगान के पुनर्निर्माण के मामले में चीन-पाकिस्तान को पछाड़ दिया है। विडंबना और हास्यास्पद है कि पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने तालिबानी हमले के पीछे ‘भारत का हाथ’ करार दिया है। जबकि दोनों देशों के आपसी तनाव और हमले नैसर्गिक हैं। हालांकि दोनों देशों में आतंकवाद रहा है, लेकिन उस पर भी गहरे, गंभीर मतभेद हैं। जब काबुल में 2021 में तालिबानी हुकूमत बन रही थी, तब पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख काबुल में ही मौजूद थे और खूब प्रसन्न थे। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने उस दौर को ‘बेडिय़ों से आजादी’ करार दिया था। पाकिस्तान का आकलन था कि तालिबान उसके साथ ‘दोस्ती’ निभाएगा और दोनों मिल कर भारत के खिलाफ नई आतंकी मुहिम शुरू करेंगे। ऐसा नहीं हो सका, बल्कि 2025 में ही दोनों देशों के दरमियान 6 हमले किए जा चुके हैं। करीब 132 साल पहले 1893 में ब्रिटिश राज ने जो सीमा-रेखा तय की थी, अफगान ने उसे कभी मान्यता नहीं दी। करीब 2640 किमी लंबी यह डूरंड लाइन अफगान-पश्तून इलाकों को दोफाड़ करती है। नतीजतन झड़पें होती रही हैं। पाकिस्तान में करीब 30 लाख अफगान शरणार्थी हैं। इनमें से 14 लाख के पास रजिस्टे्रशन कार्ड हैं। शेष को अवैध करार देते हुए पाक ने बाहर निकालने की मुहिम चला रखी है। तालिबान हुकूमत इसे ‘मानवीय संकट’ मानती है। बंदरगाहों के जरिए जो व्यापार होता है, वह भी तनाव और झड़प का बुनियादी कारण है।

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