राष्ट्रीय

विधानसभा से पास बिलों को न लटकाएं राज्यपाल

 ब्यूरो — नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिल मंजूरी की डेडलाइन तय करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते कहा कि हमें नहीं लगता कि गवर्नरों के पास विधानसभाओं से पास बिलों (विधेयकों) पर रोक लगाने की पूरी पावर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवर्नर्स के पास तीन ऑप्शन हैं। या तो मंजूरी दें या बिलों को दोबारा विचार के लिए भेजें या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजें। हालांकि इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती। हां, अगर देरी होगी, तो हम दखल दे सकते हैं। यह मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर ने राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे।

इस मामले में आठ महीने से सुनवाई चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। न्यायपालिका भी ऐसे मामलों में अनुमानित स्वीकृति (डीम्ड असेंट) नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय-सीमा लागू करना संविधान द्वारा इतनी सावधानी से संरक्षित इस लचीलेपन के बिलकुल विपरीत होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राज्यपाल राज्य विधेयकों पर अनिश्चित काल तक रोक नहीं लगा सकते, लेकिन उसने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा निर्धारित करने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करना शक्तियों के पृथक्करण के विरुद्ध होगा।

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