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अभी भारत के लिए दवा टैरिफ बेअसर

दवाई उद्योग से संबंधित प्रक्रियाओं को सरल और कारगर बनाने के लिए, दवाई विनिर्माण क्षेत्र और फार्मा पार्क रणनीति को अधिक सुविधाजनक और गुणवत्तापूर्ण बनाना होगा। स्वदेशी फार्मास्युटिकल अनुसंधान को प्रोत्साहित करना होगा…

हाल ही में 26 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाई पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान करके एक बार फिर टैरिफ लगाने की ट्रंप श्रृंखला को आगे बढ़ा दिया है। यह टैरिफ 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा। इससे पहले ट्रंप ने 27 अगस्त से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। फिलहाल ट्रंप के दवा टैरिफ का भारतीय फार्मा कंपनियों पर ज्यादा असर नहीं होगा। कारण यह कि भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाली दवाओं में पेटेंट दवाओं का हिस्सा महज पांच फीसदी है और जेनेरिक दवाओं का हिस्सा 95 फीसदी है। उल्लेखनीय है कि दवा टैरिफ उन कंपनियों पर नहीं लगेगा जो अमेरिका में ही दवा बनाने के लिए अपना प्लांट लगा रही हैं। ट्रंप ने यह साफ संकेत दिया है कि अगर किसी फार्मा कंपनी की अमेरिका में दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग में दिलचस्पी है तो उसे 100 फीसदी टैरिफ से छूट मिलेगी। साथ ही किसी कंपनी ने अमेरिका में अपना प्लांट लगाना शुरू कर दिया है तो उसे भी इस 100 फीसदी टैरिफ से छूट मिलेगी। कहा गया है कि इसका उद्देश्य दुनिया की बड़ी फार्मा कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना है। इस फैसले का ज्यादा असर उन देशों पर पड़ेगा जहां की फार्मा कंपनियां अमेरिका को ब्रांडेड दवाओं का निर्यात करती हैं। इनमें आयरलैंड, जर्मनी और स्विट्जरलैंड जैसे देश प्रमुख हैं। गौरतलब है कि ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाई और जेनेरिक दवाई में बड़ा अंतर है। ब्रांडेड दवाई वे दवाई होती हैं, जो मूल दवाई होती है जिसकी खोज किसी फार्मा कंपनी ने रिसर्च के बाद की होती है।

इसे बनाने वाली कंपनी को एक तय समय जो कि आमतौर पर 20 साल का होता है, के लिए पेटेंट अधिकार मिल जाता है। इस दौरान कोई भी दूसरी कंपनी उस फॉर्मूले का इस्तेमाल करके वह दवाई नहीं बना सकती। जबकि जेनेरिक दवाई वो दवाई होती है जो ब्रांडेड दवाई का पेटेंट खत्म होने के बाद बाजार में आती है। यह ब्रांडेड दवाई के समान फॉर्मूले का इस्तेमाल करके बनाई जाती है। चूंकि जेनेरिक दवाई का कोई नया पेटेंट नहीं होता, यह पहले से ही मौजूद फॉर्मूले पर आधारित होती है, अतएव जेनेरिक दवा बनाने वाली कंपनियों को रिसर्च का खर्च नहीं उठाना पड़ता, इसलिए जेनेरिक दवाइयों की कीमत ब्रांडेड दवा के मुकाबले बहुत कम होती है। खास बात यह है कि भारत जेनेरिक दवाइयां अमेरिका को निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है। पिछले वर्ष 2024-25 में भारत ने अमेरिका को लगभग 10 अरब डॉलर की दवाइयां भेजीं, जो भारत के कुल दवा निर्यात का करीब एक-तिहाई से अधिक है। निश्चित रूप से ट्रम्प ने ब्रांडेड दवाओं पर टैरिफ लगाने का फैसला अमेरिका में दवा उत्पादन को बढ़ाने के लिए लिया है। ट्रम्प का दवाई टैरिफ ‘अमेरिका फस्र्ट’ और ‘मेक इन अमेरिका’ नीति का हिस्सा है। ट्रम्प का यह भी मानना है कि दवाओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। कोरोना महामारी के दौरान अमेरिका ने यह देखा है कि अगर दवाई की सप्लाई चेन टूटती है तो अमेरिका में दवाओं की भारी कमी हो सकती है। ऐसे में ट्रंप ने ब्रांडेड दवाओं पर टैरिफ लगाकर, अमेरिका की पूरी फार्मा सप्लाई चेन को सुरक्षित करने का कदम उठाया है। ट्रंप के द्वारा जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ नहीं लगाने के कुछ विशेष कारण भी उभरकर दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका में डॉक्टर रोगियों के लिए जो प्रिस्क्रिप्शन लिखते हैं, उनमें से हर 10 में से करीब 4 दवाइयां भारतीय कंपनियों के द्वारा बनाई गई जेनेरिक दवाइयां होती हैं। इतना ही नहीं जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं से 80 से 90 फीसदी तक सस्ती होती हैं। ऐसे में अगर जेनेरिक दवाओं पर भी 100 फीसदी टैरिफ लग जाता, तो जेनेरिक दवाओं की कीमत बहुत बढ़ जाती। इससे अमेरिकी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा बहुत महंगी हो जाती, और यह सीधे तौर पर ट्रंप के लिए नए घरेलू असंतोष का कारण बन सकता था।

दरअसल भारतीय जेनेरिक दवाइयां अमेरिका के लिए लागत-बचत का एक अवसर है। लेकिन आशंका है कि ट्रंप रणनीतिपूर्वक आगामी समय में जेनेरिक दवाइयों को भी टैरिफ के दायरे में ला सकते हैं। ऐसी आशंका के मद्देनजर भारत के शेयर बाजार में गिरावट भी आई है। विशेष रूप से फार्मा कंपनियों के शेयर मूल्य में बड़ी गिरावट दिखाई दी है। ऐसे में भारत को निर्यात तथा संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए मूल्यवान फार्मा सेक्टर की डगर पर नीतिगत बदलावों के लिए तैयार रहना होगा। गौरतलब है कि भारत दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है और इस समय भारत 200 से अधिक देशों को दवाइयों का निर्यात करता है। देश में 3000 से अधिक दवाई कंपनियां हैं और 10500 से अधिक क्रियाशील दवाई उत्पादक इकाइयां हैं। भारत दवाई उद्योग उत्पादन की मात्रा के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर है और दवाई के मूल्य के मद्देनजर 14वें क्रम पर है। साथ ही प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना और विभिन्न देशों के साथ हो रहे मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की बदौलत फार्मा क्षेत्र का कारोबार वर्तमान 55 अरब डॉलर के आकार से छलांगे लगाकर अगले दो साल में 130 अरब डालर तक पहुंच सकता है। चूंकि भारत में दवाई उत्पादन की लागत अमेरिका एवं पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है, इसी कारण भारत घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण, उच्च गुणवत्ता और कम लागत वाली दवाओं के निर्माण में एक प्रभावी भूमिका निभा रहा है। दुनिया की करीब 70 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग भारत में ही होती है। दुनिया की 60 फीसदी वैक्सीन का भी उत्पादन भारत में होता है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनिवार्य टीकाकरण योजनाओं के लिए 70 प्रतिशत टीकों की आपूर्ति भारतीय दवाई निर्माता कंपनियों के द्वारा की जाती है। निश्चित रूप से ट्रंप के द्वारा ब्रांडेड दवाई पर लगाए गए 100 फीसदी टैरिफ और आगामी समय में जेनेरिक दवाइयों पर किसी भी प्रकार के टैरिफ की आशंका के बीच हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा। भारत को दवाई निर्माण के लिए अपनी लागत-कुशल रणनीति पर फोकस रहना होगा। देश में दवाइयों की गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। सरकार के द्वारा फार्मा सेक्टर से संबंधित बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाया जाना होगा। भारत में पेटेंटेड ड्रग मैन्युफैक्चरिंग के लिए रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ाना होगा। निवेश के लिए इंटरनेशनल पार्टनर्स तलाशने होंगे।

वैश्विक सप्लाई चेन को मजबूत बनाने के बारे में रणनीति बनानी होगी। दवाई उद्योग के साथ आईटी के एक्पर्टाइज और डिजिटल एक्सपर्टाइज को समन्वित रूप से काम करना होगा। दवाई उद्योग से संबंधित प्रक्रियाओं को सरल और कारगर बनाने के लिए, दवाई विनिर्माण क्षेत्र और फार्मा पार्क रणनीति को अधिक सुविधाजनक और गुणवत्तापूर्ण बनाना होगा। स्वदेशी फार्मास्युटिकल अनुसंधान को प्रोत्साहित करना होगा। इस हेतु नियामकों और दवा अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना होगा और वैश्विक नियामक प्राधिकरणों के साथ समन्वय बनाना होगा। फार्मा विकास के लिए अनुसंधान क्षेत्र में अधिक निवेश आकर्षित करने के लिए तत्परतापूर्वक आगे बढऩा होगा। यद्यपि 26 सितंबर को ट्रंप के द्वारा ब्रांडेड दवाई पर लगाए गए 100 फीसदी टैरिफ फिलहाल भारत के लिए बेअसर हैं, लेकिन भविष्य में जेनेरिक दवाइयों पर किसी टैरिफ या अन्य कोई चुनौती के मद्देनजर भारत को फार्मा उद्योग के क्षेत्र में रणनीतिपूर्वक मजबूत होना होगा। इससे भारत का जो दवाई उद्योग वर्तमान में 55 अरब डॉलर के स्तर पर है, वह 2030 तक करीब 130 अरब डॉलर और 2047 तक करीब 450 अरब डॉलर की ऊंचाई पर दिखाई दे सकेगा। इससे रोजगार बढ़ेंगे, निर्यात बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी।-डा. जयंती लाल भंडारी

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