संपादकीय

बंगाल में कैसा लोकतंत्र?

यह कैसा लोकतंत्र है? नहीं, यह लोकतंत्र नहीं हो सकता। यह कैसी कानून-व्यवस्था है? निर्वाचित सरकार के हाथ-पांव खून में सने हैं! केंद्रीय गृह मंत्रालय क्या कर रहा है? क्या उसने पश्चिम बंगाल की ओर आंखें मूंद रखी हैं? क्या सरकार से रपट तलब करना ही पर्याप्त है? क्या पुलिस कमिश्नर का तबादला कर उसे दंडित नहीं किया जा सकता? प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और उनकी सरकार 2014 से ही देख रही है कि बंगाल की फाइल लहूलुहान हो रही है, पंचायत चुनाव हों अथवा विधानसभा, लोकसभा चुनाव हों या सामान्य दिन हों, बंगाल में एक तबका लगातार हत्याएं कर रहा है। प्रवर्तन निदेशालय और अन्य सरकारी एजेंसियों के अफसरों पर हमले किए जाते रहे हैं। हिंदूवादी समर्थकों की हत्याओं के साथ-साथ उनके घर जलाए जा रहे हैं। पीट-पीट कर घायल किया जा रहा है अथवा मार ही देता है। ऐसी सैकड़ों हत्याएं की जा चुकी हैं। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बार-बार राज्य सरकार और पुलिस को फटकार लगाई है। केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात करने पड़े हैं। अदालत ने सरकार के खिलाफ फैसले भी सुनाए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सिर्फ बयानबाज बनकर रह गए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि उससे ममता और उनकी पार्टी-तृणमूल कांग्रेस-को राजनीतिक लाभ हो सकता था। तो क्या फिर गरीब, कमजोर, पिछड़े, दुर्भाग्य से हिंदू समर्थक मरते रहें? अब तो हिंदू-विरोधियों ने सांसद और विधायक तक को नहीं छोड़ा है। करीब 14-15 लाख लोगों का संसदीय प्रतिनिधि, भाजपा सांसद खगेन मुर्मू बाल-बाल बच गए हैं। वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हैं। बीमार नहीं हैं। मधुमेह सामान्य विकृति हो गई है। गुंडे-मवालियों ने पत्थरों से सांसद और विधायक पर जानलेवा हमला किया था। उत्तरी बंगाल में भीषण बाढ़ और भयानक भू-स्खलन ने विनाशकारी माहौल बना दिया था। 30-35 मौतें भी हुई हैं। घर ‘मिट्टी-मलबा’ हो गए, रास्ते टूट गए। यदि एक जन-प्रतिनिधि उस माहौल का जायजा लेने और राहत-सामग्री बांटने उस विनाश-भूमि तक जाना चाहता था, तो उस पर जानलेवा हमला कर लहूलुहान कर दिया जाएगा? बेशक लोग सांसद से नाराज हों, तो उन पर इतना घातक हमला कर दिया जाएगा कि उनके चेहरे की हड्डी ही टूट जाए? सांसद खून से लथपथ हो जाएं? गनीमत है कि उनके साथ कुछ सुरक्षाकर्मी थे, जिन्होंने उनकी जान बचाई और तुरंत अस्पताल तक ले गए। भाजपा विधायक शंकर घोष पर भी हमला कर उन्हें घायल क्यों किया गया? अफसोस है कि मंगलवार शाम तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई, क्योंकि पुलिस को ‘ऊपर’ से ऐसे ही आदेश थे। पुलिस मूकदर्शक और निष्क्रिय बनी रही। जब भाजपा और राज्यपाल आनंद बोस का दबाव बढ़ा, तो 8 आरोपितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। गौरतलब यह होगा कि पुलिस कितनी ठोस कार्रवाई करती है! शायद राज्य भाजपा उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करेगी! लेकिन बंगाल में जो रक्तरंजित फाइल सामने आई है, उससे लगता है कि बंगाल में संभ्रांत नहीं, गुंडे-हत्यारों का राज है। वे तृणमूल के नेता, कार्यकर्ता हो सकते हैं अथवा घुसपैठिए बांग्लादेशी या रोहिंग्या हो सकते हैं! भाजपा सांसदों और आम सक्रिय कार्यकर्ताओं ने एनआईए जांच की मांग की है। राष्ट्रपति शासन की भी मांगें उभरी हैं।

बंगाल में अप्रैल-मई, 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। संभव है कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के हिंदूवादी ध्रुवीकरण के मुकाबले में ऐसे हमलों पर उतर आई हो! बेशक भाजपा ने बंगाल में हिंदू समर्थकों की ताकत के बूते एक अच्छा-खासा जनाधार तैयार कर लिया है। उसके 12 लोकसभा सांसद चुने गए हैं। जो पार्टी मात्र 3 विधायकों के साथ एक क्षीण-सी शक्ति होती थी, आज उसके विधायक दल का नेता प्रतिपक्ष का नेता है। यानी सत्ता की चौखट पर दमदार दस्तकें दी जा रही हैं। लेकिन बंगाल में ममता के 14 साला कार्यकाल के दौरान ऐसा हिंसक माहौल बन गया है, जो खुद ममता ने वाममोर्चा की सरकार के दौरान झेला था। यकीनन यह शर्मनाक, निंदनीय और खतरनाक दौर है। लिहाजा हमने शुरुआत में ही लोकतंत्र और व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। बंगाल का खूबसूरत इतिहास रहा है। उसे यूं विनष्ट नहीं किया जा सकता।

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