बिहार चुनाव, कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

जीविका स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 1.21 करोड़ महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 10-10 हजार रुपए मिल जाएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह बिहार की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। जानकारों का मानना है कि यह योजना भारत के विभिन्न राज्यों में महिलाओं के लिए चल रही योजनाओं की ही तरह है और इसका गहरा असर चुनाव में दिखाई पड़ेगा। बिहार भारत के सबसे गरीब राज्यों में शामिल है और इस तरह की कोई भी आर्थिक योजना जो तत्काल राहत देती है, लोकप्रिय हो जाएगी। बिहार के लोग करोड़ों की संख्या में पलायन तो कर गए, लेकिन आज भी वह अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। वे चाहते हैं कि राज्य का विकास हो और नई पीढ़ी को पलायन की त्रासदी न झेलनी पड़े। इसका सीधा हल विकास तथा रोजगार है। जात और जमात की राजनीति इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है…
चुनाव आयोग ने बिहार में दो चरणों में मतदान कराने की घोषणा कर दी है। 6 और 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे तथा परिणाम 14 नवंबर को आएंगे। पक्ष और विपक्ष दोनों कमर कस चुके हैं। दोनों गठबंधन में टिकट के बंटवारे का मामला अभी सुलझा नहीं है लेकिन दोनों ही ताल ठोंक रहे हैं। नीतीश कुमार जो राजद को हराकर मुख्यमंत्री बने, एक बार फिर युद्ध के मैदान में हैं। एनडीए गठबंधन ने उन्हें ही अपना मुख्यमंत्री फेस चुना है, जबकि महागठबंधन में उहापेह है और कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन तेजस्वी यादव ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में महागठबंधन का चेहरा सिर्फ वही हैं। इसके पहले राहुल गांधी ने बिहार के दौरे में कहा था कि इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। लेकिन तेजस्वी यादव को यह बात मंजूर नहीं थी और उन्होंने तुरंत ही अपने नाम की घोषणा कर दी। एक ओर जहां एनडीए गठबंधन में तारतम्य दिखता है, महागठबंधन में ऐसा कुछ नहीं है। राहुल गांधी ने अपने बिहार दौरे में कांग्रेसियों को अति उत्साहित कर दिया और उन्हें आगे बढ़ा दिया है, लेकिन सारा खेल लालू यादव पर निर्भर है और वह जाहिर है कि कांग्रेस को ज्यादा तरजीह नहीं देंगे। इस बार उसे सीटें भी कम देंगे। राहुल गांधी का दौरा हमेशा की तरह आरोप-प्रत्यारोप का रहा और उन्होंने चुनाव आयोग पर तमाम तरह के हमले किए और वोट चोरी का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने वोट चोरी में साथ दिया है। हालांकि उन्होंने जितने प्रमाण दिए, वे सभी खोखले थे और उनमें कोई दम नहीं था। बिहार में मतदाता सूची पुनर्रीक्षण (एसआईआर) की उन्होंने जमकर आलोचना की और उनके दो वकील सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे। इतना ही नहीं तथाकथित चुनाव विशेषज्ञ योगेन्द्र यादव भी अपनी विद्वता झाड़ते हुए कोर्ट में पेश हो गए, लेकिन इनमें से कोई भी वोट चोरी या सूची में गड़बड़ी की बात साबित नहीं कर सका। महज शोर मचाने और पब्लिसिटी करने के अलावा उन लोगों ने कुछ भी नहीं किया। यहां पर एक बात ध्यान देने की है कि मतदाता सूची बनाने वाले कर्मी राज्य सरकारों के ही कर्मी होते हैं। बीएलओ और एसडीएम, ये सभी राज्य सरकार के कर्मी ही होते हैं, ऐसे में मतदाता सूची में हेराफेरी का आरोप हास्यास्पद है। यह बात अखिलेश यादव ने भी कही थी कि मतदाता सूची में गड़बड़ी के लिए बीएलओ और एसडीएम को जिम्मेदार ठहराया जाए। लेकिन राहुल तो राहुल हैं, राजकुमार हैं। उन्होंने जो कह दिया वह कह दिया। एटम बम के नाम पर सुतली बम भी फोड़ दिया। इन सबका जनता पर कोई असर होता नहीं दिखा। वह पहले की तरह उदासीन रही। हां, बांग्लादेश से आकर बिहार में बस गए बांग्लादेशियों में खलबली जरूर मच गई। सुप्रीम कोर्ट ने आधार को मतदाता सूची के शामिल होने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेज में आधार को भी शामिल कराके उनकी चिंता काफी हद तक दूर कर दी। इसके बाद चुनाव आयोग ने सूची तैयार कर दी है जिस पर महागठबंधन ने कोई खास आपत्ति नहीं जताई है लेकिन कुछ बातें जरूर कही हैं। अगर वे चुनाव हार गए तो फिर यह मुद्दा जोर-शोर से उठाएंगे।
बहरहाल बिहार में काफी सरगर्मी दिखती है। लेकिन यह ऊपर ही ऊपर है। यानी मीडिया भर तक ही सीमित है। लोग अपनी फसलों को लेकर चिंतित हैं। कई इलाकों में भरपूर बारिश न होने के कारण धान की बुआई नहीं हो पाई है, वहां के लोग निराश हैं। बाकी शहरों और कस्बों में राहुल गांधी के भाषणों के बारे में कोई चर्चा नहीं है। यहां वोट चोरी बहुत मामूली बात होती थी और बूथ लूटने का भी कल्चर था। कई जगहों में गरीबों तथा दलितों को वोट देने से रोक भी लिया जाता था। लेकिन अब इंटरनेट और सीसीटीवी कैमरों के कारण हालात बहुत बदल गए हैं। आम बिहारी बहुत ही जागरूक, सजग और समझदारी वाली बातें करने वाला होता है। भारत के किसी भी राज्य में राजनीतिक रूप से इतने जागरूक लोग नहीं मिल सकते। उन्हें हर चीज का ज्ञान है और इन्सायक्लोपीडिया की तरह वे अतीत की तमाम बातें बता सकते हैं। उनमें तर्क करने की अद्भुत क्षमता है जो आप यूटयूब या टीवी चैनलों पर साफ देखते होंगे। ऐसे में उसे बातों में फंसाना मुश्किल है। राहुल गांधी को यह बात मालूम नहीं थी, इसलिए वह कुछ भी आरोप लगाते रहे। राहुल गांधी यह भी भूल गए कि बिहार में 15 वर्षों के शासन में आरजेडी ने कैसे जंगल राज बना दिया। उनकी ही पार्टी के नेता गाल फाड़-फाडक़र चिल्लाते रह गए, लेकिन आलाकमान ने कुछ नहीं सुना। नीतीश कुमार अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं और उनके पास राजनीतिक चालें हैं। उससे भी बड़ी बात यह है कि वह एनडीए का हिस्सा है जिसका नेतृत्व नरेन्द्र मोदी के पास है। पीएम मोदी हाल में पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं और उन्होंने दर्जनों तरह की सौगात जनता को दी है। जनता उनसे खुश है क्योंकि वहां नई रेलगाडिय़ों से लेकर कई तरह की और सुविधाएं दी गई हैं।
उधर नीतीश कुमार महिलाओं के लिए 10000 रुपए की राशि मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत दे रहे हैं। जीविका स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 1.21 करोड़ महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 10-10 हजार रुपए मिल जाएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह बिहार की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। जानकारों का मानना है कि यह योजना भारत के विभिन्न राज्यों में महिलाओं के लिए चल रही योजनाओं की ही तरह है और इसका गहरा असर चुनाव में दिखाई पड़ेगा। बिहार भारत के सबसे गरीब राज्यों में शामिल है और इस तरह की कोई भी आर्थिक योजना जो तत्काल राहत देती है, लोकप्रिय हो जाएगी। बिहार के लोग करोड़ों की संख्या में पलायन तो कर गए, लेकिन आज भी वह अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। वे चाहते हैं कि राज्य का विकास हो और नई पीढ़ी को पलायन की त्रासदी न झेलनी पड़े। इसका सीधा हल विकास तथा रोजगार है। जात और जमात की राजनीति इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है। जो पार्टियां इस तरह की राजनीति करेंगी, वे इस चुनाव में उसका परिणाम झेल लेंगी। हर बिहारी चाहता है कि उसका राज्य सशक्त और संपन्न हो। ऐसे में इसका असर चुनाव पर पड़ेगा ही। देखते हैं कि जनता कौनसे गठबंधन को चुनती है।-मधुरेंद्र सिन्हा




