रोखठोक : मंद, बावले और खोखले!

मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई पर जूता फेंकनेवाले और प्रबोधनकार की पुस्तक ‘देवळांचा धर्म आणि धर्माची देवळे’ की निंदा करने वाले अव्वल दर्जे के अंधभक्त हैं। ये सनातनी विज्ञान के माथे पर कील ठोक रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के राज में बाबागीरी का बोलबाला बढ़ा है। पाखंड ही उनका हिंदुत्व बन गया है। इस पाखंड के खिलाफ बोलने और लिखने वाले ‘सनातन धर्म’ नामक विचारधारा के निशाने पर आ रहे हैं। हिंदुओं के वोटों पर भाजपा चुनाव जीत रही है, लेकिन मोदी के राज में हिदुओं को बेवजह असुरक्षित महसूस होने लगा है। कांग्रेस के राज में मुसलमानों का तुष्टिकरण होता था। इस वजह से ‘हिंदू खतरे में’ थे, लेकिन ११ साल से भारत में कट्टर हिंदू शासन होने के बाद भी बार-बार हिंदू खतरे में आने का हल्ला मचाया जा रहा है। हिंदू के खतरे में होने की दो घटनाएं हुईं। सनातन धर्म का अपमान किया गया इसलिए एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में ही मुख्य न्यायाधीश गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। उसी समय यहां मुंबई के कस्तूरबा अस्पताल में हिंदू अजीब तरह से खतरे में आ गया। अस्पताल के एक अधिकारी राजेंद्र चव्हाण सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति समारोह के बाद, चव्हाण ने प्रबोधनकार ठाकरे की ‘देवळांचा धर्म आणि धर्माची देवळे’ (मंदिरों का धर्म और धर्म के मंदिर) नामक पुस्तक उपहार में वितरित की। प्रबोधनकार की इस क्रांतिकारी किताब के कारण हिंदू धर्म का अपमान हुआ है इसलिए एक नर्स ने चव्हाण के मुंह पर प्रबोधनकार की किताब फेंककर विरोध जताया। मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई और प्रबोधनकार ठाकरे के कारण हिंदू धर्म खतरे में आ गया है, ऐसा कहना पागलपन के लक्षण है।
यह भी एक हमला है!
भूषण गवई पर हमला करने वाले और प्रबोधनकार की किताबों को नकारने वाले भी एक ही तरह के अव्वल दर्जे के अंधभक्त हैं। कहते क्या हैं, सनातनियों का हिंदुत्व खतरे में आ गया है। पहलगाम में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने २६ महिलाओं का सिंदूर मिटा दिया। सनातनियों के अनुसार, धर्म पूछकर गोली मारी गई। असल में इस घटना के कारण हिंदू खतरे में आ गए। विष्णु के तेरहवें अवतार सिंदूर की रक्षा नहीं कर पाए। इसके लिए किस पर जूता फेंककर मारा जाए, इसका चिंतन इन सनातनियों को खुद करना चाहिए। दिल्ली के स्वामी चैतन्यानंद को अब गिरफ्तार कर लिया गया है। अपने आश्रम में उन्होंने कई महिलाओं का यौन शोषण और बलात्कार किया और पुलिस ने शुरू में इन सभी पीड़ित लड़कियों को न्याय देने से इनकार कर दिया, लेकिन पाप का घड़ा भर गया। ये स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती भारतीय जनता पार्टी का चहेता प्रचारक था और स्वामीजी सनातन धर्म पर प्रवचन झाड़ा करता था। इस स्वामी पर उसके गंदे कृत्यों का जवाब मांगने के लिए चप्पल फेंका जाए, ऐसा सनातनियों को क्यों नहीं लगा? आसाराम, राम रहीम, स्वामी नित्यानंद, निर्मल बाबा जैसे कई सनातनी बाबाओं का पर्दाफाश हो गया है। बागेश्वर बाबा भाजपा का प्रचारक है और बाबा अपने छोटे भाई हैं, ऐसा बोलते हुए प्रधानमंत्री उनके आश्रम में जाते हैं। यह विज्ञान के माथे पर कील ठोकने का प्रयास है। जातिवाद और धार्मिक कट्टरता को बढ़ाकर राजनीति करने वाले प्रधानमंत्री इस देश को मिले हैं। वे स्वयं को ईश्वर का अवतार मानते हैं। प्रबोधनकार ठाकरे ने इसी पाखंड पर प्रहार किया है। ऐसे ही जातिवाद और पाखंड पर प्रहार करनेवाला ‘खरा ब्राह्मण’ नाटक प्रबोधनकार ने लिखा। प्रबोधनकार ब्राह्मणद्वेषी हैं, सनातन विरोधी हैं इसलिए पुणे के ब्राह्मणों ने न्यायालय में इस नाटक पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, लेकिन न्यायालय ने वह अस्वीकार कर दिया। सनातनियों ने प्रबोधनकार के विरुद्ध अभियान चलाया। उन्होंने प्रबोधनकीर पर चप्पल नहीं फेंकी, बल्कि एक मरा हुआ गधा प्रबोधनकार के घर के सामने लाकर फेंक दिया। जब प्रबोधनकार घर से बाहर आए और स्वयं उस गधे को ले जाने लगे तब ‘भाला’कार भोपटकर उसी रास्ते से जा रहे थे। भोपटकर ने पूछा, ‘‘केशवराव, आप क्या कर रहे हैं?’’ जिस पर प्रबोधनकार ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, आपके बाप को ले जा रहा हूं!’’ ऐसे थे प्रबोधनकार। उनके विचार आज के पाखंडी सनातनियों को पसंद नहीं आते।
पाजी मक्कार
भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार ने वर्तमान में जिस धर्म का प्रचार किया है, वह हिंदुओं का सच्चा धर्म नहीं है। आज भी यह भिक्षुकशाही का ही धर्म है। मंद, बावलों, मानसिक खोखलों को उलझाकर एक विशिष्ट वर्ग की तुंबड़ी भरनेवाले ये एक पाजी मक्कार हैं, ऐसा दृढ़ मत प्रबोधनकार ने निर्भीकता से व्यक्त किया। एक जगह प्रबोधनकार कहते हैं, ‘‘शिवाजी अर्थात मर्हाठों के कुलस्वामी और महाराष्ट्र के राष्ट्रदेवता हैं। केवल महाराष्ट्र का ही विचार करें तो आज के हिंदुओं के तैंतीस कोटि देवों की जगह केवल शिवाजी छत्रपति परमेश्वर के रूप में सभी मर्हाठों के हृदयासन पर विराजमान हैं!’’
प्रबोधनकार के ये विचार विष्णु के तेरहवें अवतार के अस्तित्व को नकारते हैं। आज भाजपा ने राम मंदिर के नाम पर जो राजनीतिक धंधा और ‘चंदा’बाजी की है, उसी पर प्रबोधनकार ने १९२६ में ‘देवळांचा धर्म आणि धर्माची देवळे’ लिखकर प्रहार किया था। प्रब्ाोधनकार ने मंदिरों के निरंतर निर्माण और उनसे उत्पन्न स्वार्थ पर तीखी टिप्पणी की। ‘ऐसे मंदिरबाजी के कारण बहुजन लोगों की शिक्षा और प्रबोधन (ज्ञानोदय) का विचार पिछड़ रहा है। मनुष्य लड़ने की कला भूल जाता है। ईश्वरवाद (आस्तिकता) में गुलामी का तत्वज्ञान भरा जाता है,’ यही प्रबोधनकार के विचार हैं। पिछले दस सालों से हम इसी ईश्वरवाद और अंधभक्ति का अनुभव कर रहे हैं। भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से धर्म और मंदिरों की राजनीति कर रही है। यह एक तरह का धंधा है। इसी धंधे का प्रबोधनकार ने विरोध किया था। मंदिरों की संपत्ति पर आज भाजपा की नजर पड़ गई है। मंदिरों की संपत्ति अब राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल होती है। इस संपत्ति के रखवाले के रूप में राजनेता अपने ही लोगों को नियुक्त करते हैं। प्रबोधनकार ने इस पर एक शताब्दी पूर्व लिखा था, ‘‘हिंदुस्थान के मंदिरों में कितनी अपार संपत्ति अनावश्यक फंसी पड़ी है और उसका उपयोग देश के उद्धार की बजाय लुच्चों, चोरों, उचक्कों और दुष्ट लोगों के भोग-विलास में वैâसे हो रहा है इस पर अब गहन ध्यान देने का समय आ गया है। भले ही देश में करोड़ों लोग अकाल से मर रहे हों, फिर भी मंदिरों के पाषाण स्तंभों पर हलवा, केसरी भात का त्रिकाल अर्पण अनवरत जारी है। भले ही हजारों अभ्यर्थी और स्नातक युवा अपनी आजीविका के लिए भयभीत होकर मारे-मारे फिर रहे हों, फिर भी मंदिरों के पाषाण स्तंभों को अरबों रुपए के बहुमूल्य हीरे-जवाहरात और आभूषणों से अलंकृत करना अनवरत जारी है। भले ही देश का किसान धान की भूसी और ऊनी कपड़े के एक टुकड़े तक के लिए तरस रहा हो, फिर भी मंदिरों की भिक्षुक सेना की बढ़ती हुई तोंद पर आज तक थोड़ा भी फर्क नहीं पड़ा है।’’
मंदिरों की आय शिक्षा के लिए
प्रबोधनकार ठाकरे ने धर्म में व्याप्त असमानता पर प्रहार किया। राजर्षि शाहू महाराज और प्रबोधनकार के घनिष्ठ संबंध थे। महाराज ने इससे एक महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने मंदिरों से प्राप्त आय को शिक्षा के लिए खर्च करने का कानून बनाया। मंदिरों से प्राप्त आय का उपयोग शिक्षा के लिए करते समय, शाहू महाराज ने धर्म नहीं देखा। मुसलमानों की बोर्डिंग को भी दरगाह की आय जोड़कर दी गई। ‘‘सभी मंदिरों और पवित्र स्थलों की ट्रस्टी सरकार है। मंदिरों और तीर्थस्थलों का प्रबंधन देखना और वित्तीय योजना बनाना सरकार का अधिकार है, यह कानून ९ जुलाई १९१७ को शाहू महाराज ने बनाया।
प्रबोधनकार का धर्म इसी मार्ग का था। प्रबोधनकार ने कहा, ‘‘खाली पड़े मंदिरों और उनकी करोड़ों रुपए की आय का उपयोग हिंदू समाज के सुधार और प्रगति के लिए किस प्रकार किया जाए, यह तय करने के लिए एक अखिल भारतीय हिंदू मंडल की नियुक्ति की जानी चाहिए। अगर ऐसी योजना लागू हो जाए तो संप्रदाय और दलगत मतभेद मिट जाएंगे और मंदिरों का उपयोग कई अच्छे कार्यों के लिए किया जा सकेगा।’’
प्रबोधनकार का यह विचार वर्तमान पी.एम. केयर फंड जैसा ही है। प्रधानमंत्री ने सेवाधर्म के नाम पर पैसे जुटाए, लेकिन उसे अच्छे कार्यों में नहीं लगाया, फर्क सिर्फ इतना ही है! फिर भी सनातनी विचारों के मंद, बावले और मानसिक खोखले अंधभक्ति में लीन हैं।




