अंतर्राष्ट्रीयस्वास्थ्य

कनाडा-चीन के वैज्ञानिकों ने किया कमाल; बनाई यूनिवर्सल किडनी, जो हर ब्लड ग्रुप से हो जाएगी मैच

एजेंसियां — ओटावा, किडनी की बीमारी से जूझ रहे लाखों लोगों के लिए बहुत अच्छी खबर है। कनाडा और चीन के वैज्ञानिकों ने 10 साल की मेहनत के बाद यूनिवर्सल किडनी बनाई है, जो किसी भी ब्लड टाइप वाले मरीज को दी जा सकती है। इससे किडनी ट्रांसप्लांट के लिए वेटिंग लिस्ट छोटी होगी और जिंदगियां बचेंगी। बता दें कि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सबसे बड़ी समस्या ब्लड ग्रुप की दीवार है। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की किडनी रिसीवर के ब्लड ग्रुप से मैच करनी चाहि। ओ टाइप का ब्लड यूनिवर्सल डोनर है, यानी यह किसी भी ग्रुप (ए, बी,एबी, ओ) वाले को दिया जा सकता है। लेकिन ओ टाइप की किडनियां कम हैं, क्योंकि इन्हें हर कोई इस्तेमाल कर सकता है। वेटिंग लिस्ट पर आधे से ज्यादा लोग ओ टाइप की किडनी का इंतजार करते हैं। अमरीका में ही रोज 11 लोग किडनी न मिलने से मर जाते हैं। भारत में भी लाखों मरीज डायलिसिस पर जी रहे हैं।

अगर अलग ब्लड ग्रुप की किडनी ट्रांसप्लांट करें, तो बॉडी उसे विदेशी समझकर रिजेक्ट कर देती है। नई किडनी ओ टाइप जैसी है, जो किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज के बॉडी में घुल-मिल जाएगी। वैज्ञानिकों ने ए टाइप की किडनी को ओ टाइप में बदल दिया। कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के बायोकेमिस्ट स्टीफन विथर्स कहते हैं कि यह पहली बार इनसानी बॉडी में टेस्ट हुई। इससे हमें लंबे समय तक काम करने के टिप्स मिले। यह किडनी ब्रेन-डेड (मस्तिष्क मृत) व्यक्ति के बॉडी में कई दिनों तक काम करती रही। इसने ब्लड फिल्टर किया, वेस्ट हटाया। बॉडी किडनी को सहन करने की कोशिश कर रही थी। विथर्स कहते हैं कि यह बेसिक साइंस का मरीजों तक पहुंचना है। हमारी खोजें अब रियल वल्र्ड में असर दिखा रही हैं। अभी लिविंग ह्यूमन्स में टेस्ट बाकी हैं। एंटीजेंस पूरी तरह न हटें, तो रिजेक्शन हो सकता है। इसलिए सावधानी बरतने की जरूरत है। दुनिया भर में किडनी फेलियर बढ़ रहा है। अमरीका में एक लाख से ज्यादा लोग किडनी ट्रांसप्लांट के लिए वेटिंग लिस्ट पर हैं, तो भारत में दो लाख से ज्यादा। ओ टाइप की कमी से ज्यादातर मरीज मर जाते हैं। अगर यूनिवर्सल किडनी आ गई, तो डोनर्स की संख्या दोगुनी हो जाएगी।

स्पेशल एंजाइम्स से बनाई गई यह खास किडनी

ब्लड टाइप ए, बी या एबी में किडनी की सतह पर शुगर मॉलिक्यूल्स (एंटीजेंस) लगे होते हैं, जो बॉडी को बताते हैं कि यह ‘अपनी’ है या ‘विदेशी’। ओ टाइप में ये एंटीजेंस नहीं होते। वैज्ञानिकों ने स्पेशल एंजाइम्स (प्रोटीन) इस्तेमाल किए, जो ए टाइप के एंटीजेंस को काट देते हैं। एंटीजेंस हटते ही इम्यून सिस्टम किडनी को अपना समझ लेता है। ये एंजाइम्स पहले से पहचाने गए थे, लेकिन अब इन्हें किडनी पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है।

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