सत्ता के लिए हवाई वादे कर सकते हैं नेता

एक नौकरी की सैलरी 30 हजार रुपए महीना है, तो 2.44 करोड़ नौकरियों का सालाना बजट करीब 7.3 लाख करोड़ होना चाहिए, जो बिहार के 3.17 लाख करोड़ के बजट से दोगुना है। सरकारी नौकरी देने के लिए राज्य का पूरा बजट खर्च कर दिया, तो भी कम पड़ेगा…
राजनीतिक दल सत्ता पाने के लिए मतदाताओं से किसी भी तरह का वादा कर सकते हैं, चाहे ऐसे वादों को जमीन पर उतारने में व्यावहारिक कठिनाइयां ही क्यों न हो। बिहार चुनाव में महागठबंधन की ओर से राष्ट्रीय जनता दल के मुख्यमंत्री के घोषित दावेदार तेजस्वी यादव ने बिहार के युवाओं को एक करोड़ से ज्यादा सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। यह वादा मतदाताओं को लुभाने के लिए किया गया है। तेजस्वी ने घोषणा की है कि जिस भी परिवार के पास सरकारी नौकरी नहीं है, उस हर परिवार को एक सरकारी नौकरी दिलाने का काम किया जाएगा। तेजस्वी ने कहा कि उनकी सरकार बनती है तो 20 दिनों के अंदर नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा, 20 महीने में ऐसा कोई घर नहीं बचेगा जहां नौकरी नहीं होगी। हर परिवार को देंगे सरकारी नौकरी, पर पैसे कहां से लाएंगे पूर्व डिप्टी सीएम, इसका तेजस्वी यादव और उनके प्रमुख सहयोगी कांग्रेस सहित अन्य दलों ने कोई रोडमैप नहीं बताया। इस वादे के पीछे यादव और कांग्रेस की 5 साल से अधिक समय से सत्ता से बाहर होने की बेचैनी देखी जा सकती है। राज्य में एक करोड़ रोजगार पैदा करने का लक्ष्य रखा है। बिहार में कुल परिवारों की संख्या करीब 2.83 करोड़ है। तेजस्वी ने नीतीश सरकार पर आरोप लगाया कि इस खटारा सरकार को कभी ध्यान ही नहीं था कि बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। नौकरी और रोजगार के बारे में चर्चा भी नहीं होती थी। वो लोग आज बेरोजगारी भत्ता देने की बात कर रहे हैं, नौकरी की बात आज भी नहीं कर रहे हैं। यादव ने कहा कि मैंने अपने 17 महीने में उप-मुख्यमंत्री काल में जितना काम बिहार की प्रगति के लिए किया वो वर्तमान सरकार 20 सालों में नहीं कर सकी।
तेजस्वी के इस ऐलान के बाद नीतीश कुमार ने चुनावी रैली में सवाल किया कि नौकरियों के लिए पैसे कहां से लाएंगे। नीतीश कुमार ने कटाक्ष भी किया था कि ‘क्या ये पैसे जेल से लाएंगे या जाली नोट से सैलरी देंगे।’ साथ ही उन्होंने यह भी सवाल उठाए थे कि ‘जब 1990 से 2005 तक राज्य में आरजेडी की सरकार थी तब कितनी नौकरियां आई थीं। उनके राज में न सडक़ थी न बिजली। तब राज्य में जंगलराज था। जंगलराज का वो दौर सबको याद है। नीतीश ने जनता से कहा कि आप नौकरी के झांसे में मत आइए। तेजस्वी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो वह बिहार में 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देंगे। तब भी तेजस्वी ने पहली कैबिनेट बैठक में ही 10 लाख नौकरियों की भर्तियां निकालने का वादा किया था। एनडीए से अलग होकर अगस्त 2022 में आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बनाने के बाद तब तेजस्वी उप-मुख्यमंत्री बने और शपथ लेने के बाद ही उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सरकारी नौकरी देने के संबंध में बात की थी। तब उन्होंने कहा था कि कम से कम चार-पांच लाख नौकरियों के लिए कुछ करेंगे। जिसके बारे में वो कहते हैं कि उन्होंने तब नौकरियां दिलाई थीं। नीतीश कुमार की कैबिनेट ने इसी साल जुलाई में राज्य में अगले पांच सालों में (2030 तक) एक करोड़ नौकरियां पैदा करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि जुलाई में जो फैसले लिए गए हैं, उसमें सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह की नौकरी की बात की गई है, लेकिन इनमें सरकारी नौकरियों की संख्या क्या होगी, इस पर कोई नंबर नहीं बताया गया। गौरतलब है कि नीतीश कुमार नियोजित और कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरी की बात करते रहे हैं। कई लोगों को इसके जरिए नौकरियां भी मिली हैं, पर जो लोग काम कर रहे हैं, उनमें भारी असंतोष है। हालांकि इस साल गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान में करीब 85 हजार बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) भाग लिया था, जिन्हें राज्य सरकार ने एक बार का मानदेय 6000 रुपए देने की घोषणा की। साथ ही मिथिलांचल क्षेत्र में सिंचाई के आधुनिकीकरण और बाढ़ नियंत्रण की एक बड़ी परियोजना पश्चिम कोसी नहर परियोजना पर भी काम चल रहा है, जिसके मार्च 2029 तक पूरा होने की संभावना है।
बिहार सरकार ने गंगा पथ परियोजना के तहत 5119 करोड़ मुंगेर (साफियाबाद)-बरियारपुर-घोरघाट-सुल्तानगंज (42 किलोमीटर) और 4849 करोड़ सुल्तानगंज-भागलपुर-साबोर (40.80 किलोमीटर) के विकास की भी स्वीकृति मिली है। ये हाइब्रिड एन्युटी मॉडल पर आधारित होंगे तो इसमें 60 फीसदी नौकरी निजी क्षेत्र में पैदा होंगी। कुल मिलाकर बिहार में कई बुनियादी विकास कार्यक्रम चल रहे हैं जिसमें हजारों की संख्या में लोगों को रोजगार मिला हुआ है, पर ये सरकारी नौकरी नहीं है। सच्चाई तो यही है कि इतनी सरकारी नौकरियों के लिए फिलहाल बजट में जगह नहीं है। अगर बिहार के बजट को देखें तो साल 2021-22 में यह 2.17 लाख करोड़ था। यह 2022-23 में बढक़र 237691 करोड़ हो गया। बिहार में साल 2025-26 का बजट लगभग 316000 करोड़ रखा गया। वहीं 55737 करोड़ का लोन भी लिया जाना तय किया गया है। राज्य पर 404107 करोड़ बकाया है। अर्थात इस पर हर रोज 63 करोड़ का ब्याज ही दिया जा रहा है। बिहार सरकार के राजस्व प्राप्ति में पिछले सालों की तुलना में 2023-24 में 11.96 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि राजस्व व्यय यानी खर्च में बढ़त केवल 3.55 फीसदी की हुई। ये आंकड़े खुद उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने विधानसभा में बताए। मतलब जितने रुपए आए, उससे कहीं कम खर्च हुए हैं, किन्तु राज्य के कर्ज में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी भी हुई है। पूरे देश में ही करीब 2 करोड़ सरकारी नौकरियां हैं। जबकि तेजस्वी पूरे देश से ज्यादा सरकारी नौकरी सिर्फ अकेले बिहार में देना चाहते हैं। यह कभी भी मुमकिन नहीं होगा।
इच्छाशक्ति हो और अगर फिजूलखर्ची (इसमें सौंदर्यीकरण को शामिल किया गया) और अन्य मदों में कटौती की जाए तो कुछ नौकरियों का सृजन संभव है। हालांकि कितने लोगों को नौकरियां दी जानी हैं, यह अनुमान लगा पाना तो फिलहाल संभव नहीं है। लेकिन एक आंकड़े के मुताबिक केवल 10 लाख सरकारी नौकरियों के लिए ही करीब 25 हजार करोड़ रुपए के अतिरिक्त बजट की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में तेजस्वी अगर सरकार बनाते हैं तो यह देखना होगा कि वो हर घर सरकारी नौकरी के लिए बजट का इंतजाम कैसे करते हैं। बिहार में हर घर सरकारी नौकरी देना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। यह सिर्फ चुनावी वादा है जो पूरी तरह खोखला है। किसी भी राज्य या देश में सरकारी नौकरी बेरोजगारी की वजह से नहीं निकलती, बल्कि सरकारी कामों को पूरा करने के लिए निकलती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्टेट फाइनेंस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में करीब 15-18 लाख सरकारी नौकरियां हैं, जो राज्य सरकार, स्थानीय निकाय, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विभागों में हैं।
इस हिसाब से सिर्फ 6-7 फीसदी परिवार ही सरकारी नौकरी से जुड़े हैं। बाकी के करीब 2.44 करोड़ यानी 93 से 94 फीसदी परिवारों के पास कोई सरकारी नौकरी नहीं है। एक नौकरी की सैलरी 30 हजार रुपए महीना है, तो 2.44 करोड़ नौकरियों का सालाना बजट करीब 7.3 लाख करोड़ होना चाहिए, जो बिहार के 3.17 लाख करोड़ के बजट से दोगुना है। सरकारी नौकरी देने के लिए राज्य का पूरा बजट खर्च कर दिया, तो भी कम पड़ेगा। बिहार में रोजगार देना इतनी ही आसान बात होती, तो राज्य के युवा नौकरी करने के लिए प्रदेश से बाहर नहीं जाते। रोजगार के अवसर देने के लिए राज्य में नए स्टार्टअप्स शुरू करने होंगे, नई कंपनियां खुलेंगी और लघु उद्योगों का सहारा लेना होगा। यह काम सरकार नहीं कर पाएगी। इसके लिए प्राइवेट कंपनियों को आगे आना होगा। यह सुनने में तो आसान लगता है, लेकिन यह भी बहुत मुश्किल है। प्राइवेट सेक्टर्स भी बिहार में तब ही इन्वेस्ट करेंगे, जब उनका फायदा होगा। बिहार हो या देश का कोई भी दूसरा राज्य, सभी जगह रोजगार प्रमुख समस्या है।
योगेंद्र योगी




