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सऊदी-पाक युद्ध करार

बीते दिनों मिस्र ने प्रस्ताव दिया था कि अरब लीग के 22 देशों की संयुक्त सेना, नाटो की तर्ज पर, बनाई जाए। उसमें पाकिस्तान को शामिल नहीं किया गया था। यह विचार भी कतर पर इजरायल के हमले के मद्देनजर सामने आया था। यदि अरब लीग की साझा सेना औपचारिक तौर पर आकार ग्रहण करती है, तो इजरायल के खिलाफ 37.78 लाख सैनिकों की साझा सेना लड़ेगी। उनका आखिरी फैसला या करार तो फिलहाल विचाराधीन है, लेकिन सऊदी अरब और पाकिस्तान ने नाटो जैसा करार कर लिया है। करार पर पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सऊदी युवराज (प्रधानमंत्री) मुहम्मद बिन सलमान ने दस्तखत किए। पाकिस्तान के सेना प्रमुख, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर भी करार के दौरान मौजूद थे। नाटो जैसा करार इसलिए कहा जा रहा है कि यदि कोई एक देश पर हमला करता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा और सऊदी-पाक की सेनाएं मिल कर उस हमले का जवाब देंगी। विशेषज्ञ इस करार को ‘औपचारिक संधि’ नहीं मानते, लेकिन भारत समेत क्षेत्रीय देशों ने इस करार को गंभीरता से लिया है। हमारे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के मुताबिक-‘सरकार को इसकी पहले से ही जानकारी थी। यह लंबे वक्त से होने वाला था। यह समझौता दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर क्या असर पड़ेगा, उसका आकलन किया जाएगा। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।’ बहरहाल करार में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को भी शामिल किया गया है। अफगानिस्तान और इराक में अमरीकी राजदूत रहे जलमय खलीलजाद का मानना है कि यह सऊदी-पाक के दरमियान एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी का करार है। इसमें कुछ ‘सीक्रेट क्लॉज’ भी हो सकते हैं, जिनका खुलासा होना शेष है।

दरअसल सऊदी अरब ही नहीं, अधिकतर खाड़ी देश अब अमरीका की सुरक्षा गारंटी पर ही आश्रित नहीं रहना चाहते। इसी गारंटी के बल पर ही वे इजरायल के हमलों को रोक नहीं सकते। वैसे अमरीका और इजरायल दोनों आपस में मित्र-देश हैं। हमलों के पीछे उनकी साझा रणनीति होती है। पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं। चीन के सहयोग से वह ऐसे मिसाइल सिस्टम विकसित करने में जुटा है, जो पूरे मध्य-पूर्व और इजरायल तक मार कर सकेंगे। सवाल भारत के लिए बेहद अहम है कि क्या सऊदी अरब, आतंकवाद के मद्देनजर छिड़ी जंग के दौरान, भारत के खिलाफ युद्ध लड़ेगा? सऊदी भारत का अहम मित्र-देश है। वहां की 3.5 करोड़ की आबादी में करीब 26.50 लाख भारतीय भी हैं, जो उसकी अर्थव्यवस्था को गति और पुख्ता आधार देने में सक्रिय हैं। सऊदी हमारा चौथा सबसे बड़ा व्यापार-साझेदार है। 2016 में सऊदी हुकूमत ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को उनके ‘सर्वोच्च नागरिक सम्मान’ से नवाजा था। क्या फिर भी सऊदी अरब, पाकिस्तान के लिए, भारत के खिलाफ युद्ध में उतर सकता है? गौरतलब यह भी है कि सबसे अधिक हथियार आयात करने वाले देशों में भारत दूसरे और सऊदी अरब चौथे स्थान के देश हैं। सऊदी विश्व की 18वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि इस संदर्भ में पाकिस्तान का स्थान 43वां है। दुनिया जानती है कि भारत सबसे बड़ी चौथी अर्थव्यवस्था वाला देश है। पाकिस्तान तो सऊदी का कर्जदार देश है। पाकिस्तान पर जितना विदेशी कर्ज है, उसमें 7 फीसदी से ज्यादा कर्ज सऊदी का है। क्या यह करार उन अफवाहों की पुष्टि भी करता है कि सऊदी पाक के परमाणु हथियार कार्यक्रम का ‘अघोषित सहयोगी’ है? बहरहाल भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का मानना है कि सऊदी अरब इस करार से पश्चिम एशिया के सैन्य समीकरणों को बिगाड़ रहा है। सऊदी अपनी सुरक्षा को पाक को आउटसोर्स कर आग से खेलने का काम कर रहा है। इससे पाकपरस्त आतंकियों को भारत के खिलाफ सिर उठाने और सक्रिय होने का मौका मिलेगा। भारत के लिए यह सतर्कता बरतने का वक्त है। गंभीर सवाल है कि यदि भारत ‘ऑपरेशन सिंदूर’ छेड़ता है, तो सऊदी अरब क्या स्टैंड लेने वाला है? गेंद पूरी तरह अब सऊदी अरब के पाले में है। सऊदी अरब को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान हमेशा से ही भारत में आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहन देता रहा है। पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र मौजूद रहे हैं, जिनका खुलासा कई बार हो चुका है।

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