संपादकीय

निशाने पर 32 शहर…

फरीदाबाद की अलफलाह यूनिवर्सिटी के 15 डॉक्टर गायब हैं, लेकिन जांच एजेंसियां देश भर में ऐसे 200 आतंकी डॉक्टरों की तलाश कर रही हैं। उन मस्जिदों और ठिकानों की भी गहरी जांच की जाएगी, जहां फरार आतंकी डॉक्टर छिपे हो सकते हैं अथवा नए किस्म के आतंकवाद में उनकी भूमिका संदिग्ध और सवालिया है। आतंकी डॉक्टरों से जुड़ी जो परतें खुल रही हैं, उनके मद्देनजर लादेन, अल जवाहीरी सरीखे ‘अलकायदा’ के सरगना आतंकियों की साजिशों को भी मात दी जा रही है। अलफलाह यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग नंबर 17 के कमरा नंबर 13 में साजिशों की बैठकें होती थीं। तय किया गया था कि 32 कारें खरीदी जाएंगी, जिनके जरिए देश के 32 शहरों में ‘आत्मघाती विस्फोट’ किए जाएंगे। अब जांच एजेंसी एनआईए ने भी खुलासा कर दिया है कि लालकिले के पास वाला कार-विस्फोट हड़बड़ी में नहीं किया गया अथवा कोई दुर्घटना नहीं थी, बल्कि वह एक ‘फिदायीन हमला’ था और डॉ. उमर नबी एक आत्मघाती बॉम्बर था। अब यह भी रहस्योद्घाटन हो चुका है कि आतंकी डॉक्टरों ने 20 लाख रुपए का आतंकी फंड जुटाया था। जिन हवाला एजेंटों के जरिए यह पैसा आतंकियों तक पहुंचा, जांच एजेंसियां उनसे भी पूछताछ कर रही हैं। बहरहाल यह आतंकी फंड उमर नबी को सौंप दिया गया था। उमर ने 3 लाख रुपए का फर्टिलाइजर हरियाणा के नूंह (मेवात) से खरीदा था। यह बम बनाने में सहायक सामग्री के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। दिल्ली विस्फोट 10/11 से पहले उमर नबी ने नूंह की ‘हिदायत कॉलोनी’ में एक कमरा किराए पर लिया था। वहां विस्फोटक सामग्री भी जमा की थी। नूंह और अलफलाह यूनिवर्सिटी के बीच उमर की आवाजाही सीसीटीवी में कैद होती रही। ऐसी 1300 से अधिक सीसीटीवी की फुटेज जांच एजेंसियों ने खंगाली हैं। जिस कमरे में साजिश की बैठकें होती थीं, वह एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मुजम्मिल का कमरा था, जिसे अब सील कर दिया गया है। जांच एजेंसियों को उस और असिस्टेंट प्रोफेसर रहे डॉ. उमर नबी के कमरा नंबर 4 से डायरियां, पेन ड्राइव, डिजिटल डाटा आदि बरामद हुए हैं। उनमें कई कूटनाम सामने आए हैं। उन्हें खंगालने और असलियत की तह तक पहुंचने की कोशिशें जारी हैं। आतंकी डॉक्टर आपस में ‘थ्रीमा एप’ के जरिए संवाद करते थे और संपर्क में रहते थे। यह ‘एप’ मोबाइल नंबर से लिंक नहीं होता, लिहाजा आसानी से पकड़ा भी नहीं जा सकता।

आतंकी सिर्फ कश्मीर, दिल्ली, उप्र, फरीदाबाद में ही सक्रिय नहीं थे, बल्कि उनके तार सऊदी अरब, तुर्किए, दुबई, नेपाल तक भी फैले थे। इन देशों, शहरों में आतंकी संगठन ‘जैश-ए-मुहम्मद’ के ‘हैंडलर्स’ भी मौजूद रहे हैं। वहीं से आतंकी डॉक्टरों को निर्देश मिलते रहे हैं। यह भी खुलासा हुआ है कि डॉ. शाहीन सईद उर्फ ‘मैडम सर्जन’ नेपाल भागने की फिराक में थी। वह उप्र के हापुड़ और उत्तराखंड में महिला जेहादियों का ‘भर्तीखाना’ खोलना चाहती थी। भवन की सतह पर दवाखाना हो और तहखानेे में जेहाद का भर्तीखाना हो, यह शाहीन का मंसूबा था, लेकिन पुलिस और सुरक्षा बलों की गिरफ्त में फंस गई। अलफलाह यूनिवर्सिटी की पोलपट्टी भी खुल रही है। यकीनन यह ‘आतंक का अड्डा’ है। मौजूदा घटनाक्रम के मद्देनजर यूजीसी के आदेश पर एनएएसी (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) ने यूनिवर्सिटी को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया है। प्रवर्तन निदेशालय आतंकी फंडिंग और मनी टे्रल की जांच करेगा। डॉक्टरों के वित्तीय लेन-देन की भी जांच होगी। ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज’ ने अलफलाह की सदस्यता रद्द कर दी है। भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने भी अलफलाह को करोड़ों रुपए की मदद दी थी। उसके कारणों को भी खंगाला जाएगा। अलफलाह में एमबीबीएस करने की फीस 70 लाख रुपए पांच साल की होती थी। परिसर में ही नमाज पढ़ी जाती थी और महिलाओं को हिजाब के लिए बाध्य किया जाता था। यहां 40 फीसदी आरक्षण मुस्लिम छात्रों को दिया जाता था और 40 फीसदी सीटें कश्मीरी छात्रों के लिए आरक्षित होती थीं। अलफलाह यूनिवर्सिटी के खिलाफ यूएपीए के तहत दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और सभी दस्तावेज, रिकॉड्र्स मांगे गए हैं। जांच एजेंसियां इसके फर्जीवाड़े, धोखाधड़ी आदि की व्यापक जांच करना चाहती हैं।

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