संपादकीय

प्रतिशोध का कुटिल फैसला

जिस ट्रिब्यूनल को 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने स्थापित किया था, उसी ढाका इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने उन्हें ‘मौत की सजा’ सुनाई है। हसीना लंबे वक्त तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही हैं। यदि उन पर हत्याओं के आरोप ‘अपराध’ बना दिए गए हैं, तो यह सिर्फ प्रतिशोध का फैसला है, लिहाजा सवालिया भी है। एक ट्रिब्यूनल प्रधानमंत्री के स्तर की शख्सियत को ‘मौत’ नहीं दे सकता। न्याय निष्पक्ष, निडर और ईमानदार होना लाजिमी है। ऐसे फैसले सर्वोच्च अदालत के स्तर पर लिए जाने चाहिए। लेकिन उसकी भी एक अजीब शर्त है कि शेख हसीना बांग्लादेश लौट कर आत्मसमर्पण करें। उन्हें गिरफ्तार किया जाए। उसके बाद सर्वोच्च अदालत उनकी अपील को सुन सकती है। फिर भी निष्पक्ष और तटस्थ फैसले की गारंटी क्या है? ‘सजा-ए-मौत’ सुनाने वाला ट्रिब्यूनल पाकिस्तान के युद्ध-अपराधियों के खिलाफ मामलों को सुनने और उचित सजा सुनाने को गठित किया गया था। वह 1971 का दौर था, जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम लड़ा जा रहा था। यह बांग्ला नागरिक समाज की लगातार मांग थी कि पाकिस्तान की फौज ने जो नरसंहार किए, उसके लिए युद्ध-अपराधियों को सजा दी जाए। उस दौर में करीब 30 लाख लोगों की हत्याएं की गईं और करीब 2.50 लाख महिलाओं से बलात्कार किए गए। तब की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश के नागरिक समाज की बात कबूल की और यह ट्रिब्यूनल स्थापित किया। हसीना के खिलाफ ट्रिब्यूनल का ‘मौत की सजा’ का फैसला कठिन, कुटिल, पैंतरेबाजी का फैसला है। पता नहीं, मुहम्मद यूनुस कब की खुन्नस हसीना से निकालना चाहते हैं। यूनुस अमरीका का मोहरा हैं, यह तख्तापलट के बाद ही साफ हो गया था, जब यूनुस अमरीका के प्रवास पर गए थे। तख्तापलट में अमरीका का भी पूरा हाथ था। बहरहाल बीते साल बांग्लादेश में जो छात्र आंदोलन भडक़ा था, उसमें कई मौतें भी हुई थीं।

शेख हसीना को 5 अगस्त, 2024 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर, देश छोड़ कर, भागना पड़ा था। भारत ने उन्हें शरण दी, क्योंकि प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने भारत के साथ दोस्ती निभाई थी। वह अव्वल दर्जे की हिंदूवादी नेता थीं। वह आज भी भारत में हैं और सुरक्षित हैं। बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार काम कर रही है। यूनुस बुनियादी और वैचारिक तौर पर शेख हसीना के विरोधी हैं। अंतरिम सरकार के दौरान ही इस्लामवादी ताकतों ने हिंदुओं की हत्याएं कीं, उनके मंदिर तोड़े, प्रतिमाएं खंडित की गईं, घर-दुकानों को जला कर राख कर दिया। उनकी जवाबदेही किसकी है? इनकी सजा यूनुस को मिलनी चाहिए। कब सजा दी जाएगी? यूनुस सरकार ने कट्टरवादी ताकतों के पक्ष में फैसले लिए और उन्हें जेलों से रिहा किया। राजनीतिक पार्टी की मान्यता दी, ताकि वे चुनाव लड़ कर हुकूमत में आ सकें। क्या यूनुस के मंसूबे बांग्लादेश को ‘शरिया इस्लामवादी देश’ बनाने के हैं? यूनुस की उम्र 90 साल होने को है, लेकिन वह हसीना-विरोधी कट्टरता छोडऩे को तैयार नहीं हैं, लिहाजा मौजूदा हालात में बांग्लादेश में ‘गृहयुद्ध’ छिड़ सकता है। शेख हसीना की पार्टी ‘अवामी लीग’ ने भी देशव्यापी बंद का ऐलान किया है। यूनुस सरकार ने पार्टी पर पाबंदी भी थोप रखी है, नतीजतन वह चुनाव नहीं लड़ सकती। बीते कुछ दिनों से मौजूदा अंतरिम सरकार के खिलाफ जनाक्रोश सडक़ों पर उतरा है। लोग आंदोलित हैं। यूनुस ने हिंदूवादी आबादी के संरक्षण का थोड़ा-सा भी प्रयास नहीं किया। अलबत्ता वह भारत से नाराज हैं, क्योंकि शेख हसीना के प्रत्यर्पण का बार-बार आग्रह करने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी अनसुनी करते रहे हैं। बेशक दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि है, लेकिन भारत शेख हसीना को सौंपने वाला नहीं है, क्योंकि मौजूदा हालात में निष्पक्ष, तटस्थ और ईमानदार सुनवाई होना मुनासिब नहीं लगता।

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