हिड़मा के बाद नक्सलवाद

माओवादी नक्सली कमांडर माड़वी हिड़मा (44 वर्षीय) मार दिया गया। उस पर 1 करोड़ रुपए का इनाम घोषित था। आंध्रप्रदेश के एलूरी सीताराम राजू जिले में सुरक्षा बलों ने जो घेराबंदी कर मुठभेड़ की, तो नक्सलियों के शवों में हिड़मा, उसकी पत्नी राजक्का उर्फ राजे और चार अंगरक्षकों के शव भी पाए गए। हिड़मा कितना खूंखार और हत्यारा नक्सली था, इसी से स्पष्ट होता है कि वह 263 जवानों की जिंदगी छीनने का गुनहगार था। उसने 150 से अधिक नक्सली हमलों की रणनीति तय की थी, लेकिन 26 बड़े और खौफनाक हमलों का ‘मास्टरमाइंड’ वही था। 2010 का वह दिन याद आते ही कंपकंपी छूटने लगती है और मन गुस्से, आक्रोश से भर उठता है, जब हिड़मा की रणनीति के आधार पर, बारूदी सुरंग बिछा कर, दंतेवाड़ा में एक साथ सीआरपीएफ के 76 जवानों को ‘शहीद’ कर दिया गया था। ऐसा हमला फिर दोबारा नहीं किया जा सका, लेकिन 2017 और 2021 में नक्सली सीआरपीएफ पर दो हमले करने में कामयाब जरूर रहे। उन हमलों में क्रमश: 24 और 23 जवान मारे गए थे। उसके बाद सीआरपीएफ ने अपनी रणनीति में आमूल परिवर्तन किया। हिड़मा छत्तीसगढ़ के 32 कांग्रेस नेताओं का भी हत्यारा था। उस हमले में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला और महेन्द्र करमा सरीखे वरिष्ठ कांग्रेसी भी मारे गए। कांग्रेस का राज्य स्तरीय नेतृत्व ही शून्य हो गया था। बहरहाल ऐसे भी संकेत सामने आए हैं कि हिड़मा उस मुठभेड़ में मारे जाने से पहले आत्मसमर्पण की सोच रहा था।
उसने एक स्थानीय पत्रकार से संपर्क किया था और उसे बताया था कि वह जंगलों से बाहर आने पर विचार कर रहा है, लेकिन हथियार डालने से पहले वह सरकार के साथ अपने कुछ मुद्दों और चिंताओं पर बात करना चाहता था, लिहाजा उसने पत्रकार को मध्यस्थ बनाया था, लेकिन वह संवाद संभव न हो सका और अंतत: हिड़मा को ढेर होना पड़ा। दरअसल यह बड़ा मुद्दा नहीं है कि हिड़मा सरीखे नक्सली मारे जा रहे हैं और हिड़मा के बाद माओवादी सशस्त्र संघर्ष और विद्रोह बहुत कमजोर हो जाएगा, अंतत: वे 31 मार्च, 2026 से पहले ही समाप्त हो सकते हैं। दो बिन्दु गौरतलब हैं। एक, इस साल सुरक्षा बलों के लगातार ऑपरेशन और आक्रामक दबाव के कारण 1225 नक्सलियों को आत्मसमर्पण करना पड़ा है। ऑपरेशन और मुठभेड़ों में 270 से अधिक नक्सली मार दिए गए हैं और 680 से अधिक गिरफ्तार किए जा चुके हैं। दरअसल माओवादी नक्सलियों में नेतृत्व और रणनीति को लेकर विभाजन गहराता जा रहा है। नक्सलवाद के वैचारिक प्रमुख एवं मुख्य प्रवक्ता एम. वेणुगोपाल राव ने नक्सलियों के नाम दो पत्र जारी किए थे। सारांश यह था कि अब सशस्त्र संघर्ष पर विराम लगा देना चाहिए। वामपंथी विद्रोह के बुनियादी कारणों को संबोधित करना चाहिए। दरअसल जिस सोच के साथ नक्सलवाद की शुरुआत की गई थी, वह मकसद नाकाम रहा है, क्योंकि देश की आदिवासी आबादी आज भी भूमिहीन है और हाशिए की जिंदगी जीने को विवश है। वे समुदाय भारत में सबसे अधिक गरीब हैं। करीब 12.90 करोड़ में से 6.50 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के शिकार हैं। अर्थात आय के अलावा, अपर्याप्त पोषण, शिक्षा की कमी, खराब स्वास्थ्य, पेयजल की कमी, बिजली और आवास सरीखी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। वनों पर अधिकार के उनके दावों को नकारा जाता रहा है, बल्कि उनसे जबरन छीन लिए जाते हैं। उनके इलाकों में ग्राम सभा की अनुमति के बिना ही कथित विकास की परियोजनाएं स्वीकृत कर दी जाती हैं। वामपंथी आतंकवाद पर संपूर्ण जीत के लिए इन मुद्दों को पहले संबोधित करना जरूरी है। दूसरा बिंदु यह है कि यकीनन 31 मार्च, 2026 से पहले ही सशस्त्र नक्सलियों को पराजित किया जा सकता है। लेकिन जिस वैचारिकता के आधार पर उनका आंदोलन करीब छह दशक तक जारी रहा, वह किसी अन्य रूप या विद्रोह में दोबारा उभर सकती है।




