नए श्रम कानूनों से आर्थिक रफ्तार

ये नए श्रम कानून श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने, सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा में सुधार करने, व्यवसायों के लिए नियमों का अनुपालन करना आसान बनाने और बढ़ती अर्थव्यवस्था में अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने के मद्देनजर अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। नई श्रम संहिताओं के तहत श्रमिकों, उद्योगों और सरकार के हितों से संबंधित बहुआयामी लाभ उभरकर दिखाई दे रहे हैं। अब नियोक्ताओं को सभी श्रमिकों को नियुक्ति पत्र जारी करना होगा तथा गिग और प्लेटफॉर्म कामगारों सहित पूरे श्रमबल को सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्रदान करना होगा। न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने और 40 वर्ष से अधिक आयु के श्रमिकों के लिए मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य जांच प्रदान की जाना भी सुनिश्चित की गई है। अब तय अवधि के लिए ठेके पर काम करने वाले कामगारों को स्थायी श्रमिकों के बराबर सभी लाभ मिलेंगे और वे 5 साल के बजाय सिर्फ एक साल बाद ग्रेच्युटी पाने के हकदार होंगे। नए श्रम नियम महिलाओं को रात की पाली में काम करने और देश भर में कर्मचारियों के राज्य बीमा लाभों का विस्तार करने की अनुमति भी देते हैं, इन सबसे श्रम की गुणवत्ता और उत्पादकता बढ़ेगी। यदि हम देश में श्रम कानूनों का इतिहास देखें तो पाते हैं कि भारत के कई श्रम कानून स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद के आरंभिक काल में उस समय बनाए गए थे, जब अर्थव्यवस्था और कार्य की दुनिया वर्तमान व्यवस्थाओं से पूरी तरह भिन्न थी। जैसे-जैसे 1991 के बाद वैश्वीकरण बढ़ता गया, वैसे-वैसे दुनिया के अधिकांश बड़े विकसित और विकासशील देशों ने पिछले कुछ दशकों में अपने श्रम नियमों को समय के साथ अनुकूल व सरल बनाया और उन्हें एकीकृत किया है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि सिंगापुर, डेनमार्क, अमेरिका, न्यूजीलैंड तथा वियतनाम सहित कई देश लचीले श्रम कानूनों के कारण न केवल औद्योगिक विकास की डगर पर लाभान्वित होते हुए दिखाई दे रहे हैं। ये देश उद्योग-कारोबार की रैंकिंग में भी आगे हैं। लेकिन भारत अब तक 29 केंद्रीय श्रम कानूनों में बिखरे, जटिल और कई मामलों में पुराने प्रावधानों के आधार पर काम कर रहा था, जिन्हें सरल करने की जरूरत बनी हुई थी। उच्चतम न्यायालय भी कई बार देश में अप्रासंगिक हो चुके ऐसे श्रम कानूनों की कमियां गिनाता रहा है, जो काम को कठिन और लंबी अवधि का बनाते हैं।
देश और दुनिया के आर्थिक संगठन बार-बार यह कहते रहे हैं कि श्रम सुधारों से ही भारत में उद्योग-कारोबार का तेजी से विकास हो सकेगा। यह बात महत्वपूर्ण है कि नए श्रम कानून का एक बड़ा आधार दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग की रिपोर्ट में प्रस्तुत की गई बहुआयामी सिफारिशें भी हैं। इस आयोग का गठन तत्कालीन श्रम मंत्री डा. सत्यनारायण जटिया के द्वारा अक्टूबर 1999 में किया गया था, जिसकी रिपोर्ट जून 2002 में प्राप्त हुई थी। श्रम कानूनों को मजदूर हितैषी बनाने में डा. जटिया का अहम योगदान रहा है। अब आत्मनिर्भरता और स्वदेशी को नए श्रम कानून तेजी से आगे बढ़ा सकेंगे। साथ ही नई श्रम संहिताओं से देश-दुनिया में सेवा क्षेत्र के साथ-साथ मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ सकेगा। नए श्रम सुधार भारत की विकास दर को रफ्तार दे सकेंगे। उल्लेखनीय है कि 25 नवंबर को प्रकाशित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक 21 नवंबर से भारत में लागू किए गए नए श्रम कानूनों से देश में, मध्यम अवधि में लगभग 77 लाख नई नौकरियां तैयार होंगी। रिपोर्ट के मुताबिक इस समय भारत का औपचारिक कार्यबल 60.4 फीसदी अनुमानित है। नए श्रम नियमों से अब औपचारिक कार्यबल लगभग 75.5 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है । रिपोर्ट के मुताबिक भारत में असंगठित क्षेत्र में लगभग 44 करोड़ श्रमिक हैं। इनमें से 31 करोड़ से अधिक ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत हैं। यदि इन श्रमिकों में से केवल एक, पांचवां हिस्सा औपचारिक नौकरियों में स्थानांतरित होता है, तो लगभग 10 करोड़ श्रमिक लाभ प्राप्त करना शुरू कर देंगे, जो उनके रोजगार रिकॉर्ड से जुड़े होंगे। लेकिन नए श्रम कानून की डगर पर कार्यान्वयन संबंधी कई मुश्किलें भी हैं। इन मुश्किलों का समाधान किया जाना जरूरी होगा। खास तौर से व्यवस्था में निरंतर सुधार की आवश्यकता होगी। श्रम संबंधी कामों की तेजी से बदलती हुई प्रकृति को देखते हुए इसके लिए केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच तथा उद्योग-कारोबार तथा श्रम संगठनों के बीच अच्छा तालमेल जरूरी होगा। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को नए श्रम कानूनों का लाभ दिलाने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे। ऊंची विकास दर को पाने के लिए नए श्रम कानूनों के शीघ्र व्यावहारिक क्रियान्वयन सहित अन्य आर्थिक और वित्तीय सुधारों की डगर पर भी तेजी से आगे बढऩा होगा।
उम्मीद करें कि देश में 21 नवंबर से लागू नई चार श्रम संहिताओं से श्रम नियमों के आधुनिकीकरण, श्रमिकों के कल्याण को बढ़ावा और श्रम पारिस्थितिकी तंत्र को कार्य की उभरती दुनिया के साथ संरेखित किए जाने जैसे नए आधारों से भविष्य के लिए तैयार कार्यबल और मजबूत, लचीले उद्योगों की मजबूत नींव रखी जाएगी, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। उम्मीद करें कि जिस प्रकार इनकम टैक्स और जीएसटी सुधार से आम आदमी और अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ है, उसी प्रकार नए श्रम कानून भी लाभप्रद होंगे। उम्मीद करें कि अब नए श्रम कानून के बाद जीवन को आसान बनाने व आर्थिक मजबूती के लिए अब सरकार आगामी पीढ़ी के सुधार एजेंडा पर भी तेजी से आगे बढ़ते हुए कृषि, बैंकिंग, वित्तीय समावेशन, लॉजिस्टिक सुधार, डिजिटलीकरण और वित्तीय क्षेत्र में सुधारों की डगर पर आगे बढ़ेगी। उम्मीद करें कि देश नए श्रम कानूनों से उत्पादन वृद्धि, निर्यात वृद्धि, रोजगार वृद्धि और विकास दर के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने की डगर पर आगे बढ़ते हुए वर्ष 2027 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वर्ष 2047 में विकसित राष्ट्र बनते हुए दिखाई दे सकेगा।
डा. जयंती लाल भंडारी




