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भारत-रूस की मित्रता लाएगी वैश्विक शांति

यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझे हुए रूस के बारे में अमेरिका, यूरोपीय देशों से लेकर अन्य देशों ने वैरभाव पाल लिया है। ये देश यूक्रेन की संप्रभुता, स्वायत्तता तथा शोषण के लिए तो रूस का विरोध अवश्य करते रहे हैं और निरंतर कर रहे हैं, किंतु साथ ही रूसी संप्रभु, स्वायत्त एवं राष्ट्रीय अधिकारों की उपेक्षा भी कर रहे हैं। अमेरिका ने तो रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत पर व्यापार शुल्क में अतिशय वृद्धि कर दी थी। किंतु चीन, स्वयं कुछ यूरोपीय देशों तथा यहां तक कि अमेरिका ने भी अपने आर्थिक-व्यापारिक हितों के लिए रूस से कच्चा तेल सहित अन्य निर्मित व अद्र्धनिर्मित खनिजों की खरीददारी जारी रखी है…

दो दिवसीय यात्रा पर भारत पधारे रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का न केवल भारतीय शासन ने अत्यंत गरिमामयी ढंग से राजकीय सम्मान किया, अपितु देश के लोगों में भी उनके आगमन से अपार हर्ष है। पुतिन की इस यात्रा द्वारा दोनों देशों के ऐतिहासिक पारस्परिक संबंधों को एक नया विश्वसनीय आयाम प्राप्त हुआ है। हालांकि भारत-रूस के संबंध गत नौ-दस दशकों से विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर विश्वास तथा सहायता पर आधारित ही रहे हैं, किंतु गत एक दशक में विविध क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों की एक नवायामी दिशा परिलक्षित होती हुई दिखाई दे रही है। इससे विश्व के देशों की नई शक्ति श्रेणी निर्धारित हो रही है। अमेरिका, चीन तथा यूरोपीय देशों की अहितकारी गुप्त नीतियों को भारत-रूस की मैत्री से कठिन चुनौतियां मिल रही हैं। संभवत: विश्व में भारत एवं रूस ही ऐसे दो देश हैं, जिनका संबंध-संयोजन स्वार्थ की भेंट नहीं चढ़ा। इनके मध्य उपभोक्ता उत्पादों के व्यापार में अधिक भागीदारी न होने के बाद भी, दोनों ही राष्ट्रों ने इस कारण कभी एक-दूसरे के प्रति हीनता, अनादर की भावना नहीं रखी।

इसके विपरीत भूराजनीतिक, आर्थिक, युद्धक एवं अन्य संकटों की समयावधि में दोनों ही देशों ने एक-दूसरे की बढ़चढ़ कर सहायता की है, और अभी पुतिन की इस यात्रा के बाद तो सुनिश्चित होता दिख रहा है कि दोनों देश परस्पर विश्वास, सहायता एवं समर्पण की परिधि को सुदृढ़तापूर्वक आगे बढ़ाने के लिए सदैव कटिबद्ध रहेंगे। पुतिन ने इससे पहले सन् 2000, 2012, 2014, 2018, 2021 में पांच बार भारत की यात्रा की है। कोरोना काल के बाद उनकी यह पहली भारतीय यात्रा है। हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्तारूढ़ होने के बाद सात बार रूस की यात्रा की है, किंतु गत सितंबर में चीन के तियानजिन में एससीओ शिखर वार्ता में रूस के साथ द्विपक्षीय वार्ता के समय दोनों राष्ट्राध्यक्षों के मध्य पुतिन की कार में बैठकर परस्पर व गुप्त संवाद करने का जो चित्र-चलचित्र प्रसारित हुआ था, उससे भलीभांति अवगत हो गया था कि विश्व, विशेषकर दक्षिण एशिया में अमेरिकी कूटनीतिक प्रसारण पर प्रतिबंध हेतु अधि संभवत: रूस-भारत तथा कम संभावित रूप में रूस-भारत-चीन के बीच एक नई वैश्विक राजनीतिक समझ विकसित होने लगी है। पुतिन की भारत यात्रा की समयावधि में यह पहली बार है कि दोनों देशों की ओर से रक्षामंत्रियों, विदेशमंत्रियों एवं सुरक्षा सलाहकारों के स्तर पर टू प्लस टू वार्ता का आयोजन किया गया। पुतिन-मोदी की अध्यक्षता में संपन्न 23वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य तथा भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रेस भेंटवार्ता से स्पष्ट है कि दोनों देश अब आगे भविष्य में सामरिक संबंधों के साथ-साथ आर्थिक-व्यापारिक संबंधों को भी शक्तिसंपन्न करने हेतु संकल्पबद्ध हैं। दोनों नेताओं की भेंटवार्ताओं से भारत-रूस की कार्यनीतिक सहभागिता को नवदिशा प्राप्त हुई है। हालांकि दोनों ही देशों के मध्य सोवियत संघ के अस्तित्व के समय से ही द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश समझौतों का दीर्घकालिक दृढ़ संबंध रहा है, किंतु विगत कुछ वर्षों में दोनों का द्विपक्षीय व्यापार इनके आर्थिक समन्वयन के साथ नवशिखर तक पहुंचा है। सोवियत संघ के विघटन पर रूस की उत्पत्ति के बाद रूस-भारत का द्विपक्षीय व्यापार 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2024-25 के वित्तीय वर्ष में 68.7 बिलियन डालर तक पहुंच चुका है, और अब इस शिखर वार्ता के उपरांत द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

जहां पुतिन ने भारत को निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति करते रहने का आश्वासन दिया है, वहां दोनों देशों ने निवेश अनुबंधों के अंतर्गत भारतीय कंपनियों को रूस के तेल एवं गैस, औषधि व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, तो रूसी कंपनियों को भारत के ऊर्जा, अवसंरचना निर्माण तथा विनिर्माण क्षेत्रों में पहले से अधिक निवेश करने के लिए प्रेरित किया है। वार्ता में ऐसे ही विभिन्न कार्यक्षेत्रों सहित निर्बाध एवं सुगम पारस्परिक प्रवासन व गतिशीलता के 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग अधिक बढ़ेगा। शिखर वार्ता में यह संभावना प्रकट की गई है कि द्विपक्षीय सहयोग पर आधारित औषधीय उद्योग द्वारा स्वास्थ्य सुरक्षा बढ़ेगी तथा नवीन उद्योग विकसित होंगे। चूंकि जहां एक ओर, भारत में प्राकृतिक फाइबर, कारपेट से लेकर तकनीक आधारित वस्त्रोत्पादन की प्रचुरता, उपलब्धता है, और साथ ही साथ इनकी अभिकल्पना, कारीगरी में भी वैश्विक उपस्थिति है, वहीं दूसरी ओर रूस पॉलिमर और सिंथेटिक कच्ची सामग्री का एक बड़ा उत्पादक है। अत: दोनों देश एक साथ एक स्थायी व लाभकारी वस्त्र कारोबार कर सकते हैं। व्यापार में घनिष्ठता बढऩे पर दोनों देश उर्वरक, सिरेमिक, सीमेंट, विनिर्माण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग करते हुए नए आर्थिक आयाम प्राप्त कर सकते हैं। पुतिन ने ब्रिक्स संगठन को सशक्त करने में भारत-रूस के सहयोग पर भी ध्यानाकृष्ट किया। दोनों नेताओं ने आतंकवाद के विरुद्ध शून्य सहनशीलता की अपनी-अपनी राष्ट्रीय कार्यनीति का भी समर्थन किया। भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ बने रहने के आरोप का खंडन करते हुए स्पष्ट किया है कि युद्ध किसी भी देश की संतुलित प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है, अत: रूस-यूक्रेन ही नहीं, अपितु विश्व में कहीं किन्हीं देशों के बीच युद्ध होना ही नहीं चाहिए।

भारत-रूस के दृढ़ संबंधों में अधिक सुदृढ़ता, डेमोक्रेट्स के राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका तथा अमेरिका के नेतृत्व में यूरोपीय देशों द्वारा रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बाद, पनपी है। यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझे हुए रूस के बारे में अमेरिका, यूरोपीय देशों से लेकर अन्य देशों ने वैरभाव पाल लिया है। ये देश यूक्रेन की संप्रभुता, स्वायत्तता तथा शोषण के लिए तो रूस का विरोध अवश्य करते रहे हैं और निरंतर कर रहे हैं, किंतु साथ ही रूसी संप्रभु, स्वायत्त एवं राष्ट्रीय अधिकारों की उपेक्षा भी कर रहे हैं। अमेरिका ने तो रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए भारत पर व्यापार शुल्क में अतिशय वृद्धि कर दी थी। किंतु चीन, स्वयं कुछ यूरोपीय देशों तथा यहां तक कि अमेरिका ने भी अपने आर्थिक-व्यापारिक हितों के लिए रूस से कच्चा तेल सहित अन्य निर्मित व अद्र्धनिर्मित खनिजों की खरीददारी जारी रखी है। इन विरोधाभासों के बीच भारत-रूस ने पारस्परिक संबंधों, मैत्री तथा विश्वास को गहरा करने पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा। रूस पर अमेरिका तथा यूरोपीय देशों के प्रतिबंध से उत्पन्न व्यापारिक-आर्थिक संकट में भारत ने मित्रता का कर्तव्य निभाते हुए वर्ष 2021 से लेकर 2024 तक बड़ी मात्रा में रूसी कच्चा तेल खरीदा, अपने संशोधन संयंत्रों में उसे खपतयोग्य सीमा तक संशोधित किया तथा वापस यूरोपीय देशों और यहां तक कि यूक्रेन को भी बेचना आरंभ कर दिया। रूस-भारत के इस व्यापारिक सहसंबंध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को पंख लग गए।-विकेश कुमार बडोला

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