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अब एमएसएमई की मजबूती जरूरी

चूंकि एमएसएमई आर्थिकी के एक मजबूत इंजन की तरह काम कर रहे हैं, ऐसे में इस विकास को बनाए रखने के लिए एमएसएमई को लगातार सहयोग, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता दी जानी होगी। साथ ही एमएसएमई क्षेत्र को नवाचार, प्रतिस्पर्धा, क्षमता में सुधार करना होगा…

इन दिनों प्रकाशित हो रही विभिन्न रिपोर्टों में यह टिप्पणी की जा रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ चुनौतियों के बीच देश की अर्थव्यवस्था को 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 2047 तक भारत को दुनिया का विकसित देश बनाने के लिए देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) की विभिन्न चुनौतियों के समाधान और इसकी मजबूती के मद्देनजर नई रणनीति पर आगे बढऩा जरूरी है। नि:संदेह इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि हाल ही में जीएसटी परिषद की 56वीं बैठक में जिस तरह वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरें कम की गई हैं और जीएसटी को युक्तिसंगत बनाया गया है, उससे ट्रंप के टैरिफ की चुनौतियों का सामना कर रहे एमएसएमई को भारी लाभ होगा। एमएसएमई से जुड़े जीएसटी सुधार प्रमुख रूप से ऑटोमोबाइल, ड्रायफू्रट्स उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी उत्पाद, परिधान, लॉजिस्टिक्स, हस्तशिल्प, आवास निर्माण उत्पाद क्षेत्रों की इकाइयों को भारी लाभ देंगे। एमएसएमई क्षेत्र में जीएसटी दरों को कम किए जाने की रणनीति आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने तथा विशेष रूप से महिलाओं, ग्रामीण उद्यमियों और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए रोजगार को बढ़ावा देगी।

इससे खास तौर से वस्त्र, खिलौने, हस्तशिल्प, चमड़ा और विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। यह बात महत्वपूर्ण है कि दोपहिया वाहनों, कारों, बसों और ट्रैक्टरों पर कम जीएसटी से मांग बढ़ेगी, जिससे टायर, बैटरी, ग्लास, प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के एमएसएमई को लाभ होगा। ट्रैक्टरों पर जीएसटी घटाकर 5 फीसदी (1800 सीसी) करने से भारत की वैश्विक स्तर पर ट्रैक्टर विनिर्माण में अग्रणी बनने की स्थिति मजबूत होगी। साथ ही इससे संबद्ध एमएसएमई को प्रोत्साहन मिलेगा। वाणिज्यिक माल वाहनों (ट्रक, डिलीवरी वैन) पर जीएसटी 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी कर दिए जाने से माल ढुलाई, लॉजिस्टिक्स लागत, महंगाई का दबाव कम होने से एमएसएमई को लाभ होगा। ऐसे में निश्चित रूप से जीएसटी की नई स्लैब से आम आदमी, छोटे व्यापारियों और एमएसएमई को राहत मिलेगी। चाहे आम आदमी के इस्तेमाल की चीजें हों, चाहे वे किसानों से जुड़ी वस्तुएं हों, चाहे वे मध्यम वर्ग से संबंधित वस्तुएं हों, चाहे वह शिक्षा, स्वास्थ्य, बीमा का क्षेत्र हो, प्रत्येक क्षेत्र में एमएसएमई को दी गई बड़ी जीएसटी राहत अर्थव्यवस्था को भी रफ्तार देंगी। यद्यपि अब जीएसटी दर घटने से एमएसएमई को कर राहत जरूर मिलेगी, लेकिन इसके अलावा एमएसएमई के समक्ष डिजिटल ढांचा, कुशल श्रमिक, बाजार पहुंच, फंडिंग की कमी, टेक्नोलॉजी, सप्लाई चेन, डेटा सुरक्षा और स्किल डेवलपमेंट की चुनौतियां खड़ी हुई हैं। आईटी सेक्टर से जुड़े स्टार्टअप्स के समक्ष व्यावहारिक मार्गदर्शन, एक्सेस और प्रारंभिक निवेश की चुनौती है। खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्यमों में खराब तकनीक और कमजोर लॉजिस्टिक व्यवस्था के कारण गुणवत्ता में कमी की चुनौती है। ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति और बड़ी कंपनियों से भुगतान में देरी एमएसएमई के विकास में बड़ी बाधा हैं। सिडबी की रिपोर्ट के मुताबिक अभी एमएसएमई के लिए सरल कर्ज की प्राप्ति एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। उल्लेखनीय है कि एमएसएमई क्षेत्र देश में उत्पादन, निर्यात और रोजगार में लगातार अपनी अहम भूमिका बढ़ाता जा रहा है। विगत 21 जुलाई को राज्यसभा में एमएसएमई मंत्री ने बताया कि देश में इस समय पंजीकृत 6.5 करोड़ एमएसएमई करीब 28 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं।

देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एमएसएमई का योगदान करीब 30.1 फीसदी है। देश के एमएसएमई विनिर्माण में 35.4 फीसदी और निर्यात में 45.73 फीसदी योगदान दे रहे हैं। निश्चित रूप से अब इस समय तेज विकास की रणनीति के तहत तेजी से आकार ले रहे भारत के एफटीए में जिस तरह एमएसएमई के हितों को अधिक महत्व दिया जा रहा है, उससे देश के एमएसएमई के लिए नई वैश्विक संभावनाएं भी उभर कर दिखाई दे रही हैं। नि:संदेह एमएसएमई के समक्ष ऊंचे टैरिफ से निर्मित चिंताओं को दूर करने हेतु मौजूदा वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में एमएसएमई सेक्टर को मजबूत करने के उद्देश्य से बहुआयामी उपायों की जो एक वृहद श्रृंखला प्रस्तुत की गई है, उसके क्रियान्वयन पर तेजी से आगे बढऩा होगा। इसके तहत वित्तीय सहायता और खरीद नीतियों से लेकर क्षमता निर्माण और बाजार एकीकरण तक की पहलें शामिल हैं। प्रमुख पहलों में उद्यम पंजीकरण पोर्टल, पीएम विश्वकर्मा योजना, पीएमईजीपी, स्फूर्ति और एमएसई के लिए सार्वजनिक खरीद नीति शामिल हैं, जिनका उद्देश्य उद्यमिता को प्रोत्साहन देना, रोजगार बढ़ाना और अनौपचारिक क्षेत्रों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करना है। उद्योगों का विस्तार करने और दक्षता में सुधार करने में मदद करने के लिए, एमएसएमई वर्गीकरण के लिए निवेश और टर्नओवर सीमा बढ़ा दी गई है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 में एमएसएमई को दिए जाने वाले कर्ज का लक्ष्य पिछले वर्ष की तुलना में करीब 20 फीसदी बढ़ाकर सुनिश्चित किया गया है। सरकार निर्यातकों को सहारा देने के लिए 2250 करोड़ रुपए के निर्यात संवर्धन मिशन को तेजी से लागू करने और बिना रेहन के कर्ज दिए जाने की डगर पर आगे बढ़ रही है। टैरिफ तूफान के बीच एमएसएमई की क्षमताओं को उन्नत करने, संचालन को सुव्यवस्थित करने तथा निर्यात झटके से निपटने के लिए एमएसएमई को नीतिगत समर्थन का लाभ दिया जाना होगा। अब एमएसएमई के बढ़ावा देने की नई योजना, कारोबार में सरलता, वैश्विक बाजार में सरल पहुंच, अनुपालन बोझ में कमी, जीएसटी दरों में सरलता पर ध्यान देना। एमएसएमई को सीधे मदद और प्रक्रियाओं के माध्यम से मदद, दोनों ही डगर पर आगे बढऩा होगा जिससे उनके व्यापक ढांचे में लचीलापन मिल सकेगा और उनके अनुपालन लागत में भी कमी आएगी।

सरकार के द्वारा एमएसएमई के कारोबार करने को आसान बनाने और घरेलू खपत को बढ़ाने के तरीकों पर नए सिरे से आगे बढऩा होगा। नई सप्लाई चेन और नए बाजारों की तलाश की जान होगी। विदेशों में वेयरहाउसिंग की सुविधा और वैश्विक ब्रांडिंग पहल से भी निर्यात का बाजार बढ़ाना होगा। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना होगा कि बुनियादी ढांचे की मजबूती, अधिक लॉजिस्टिक्स सुविधाएं, कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराए जाने, ब्याज समतुल्य योजना को फिर से शुरू किए जाने तथा ऋण गारंटी कार्यक्रमों का विस्तार करने जैसे उपायों से एमएसएमई को वित्तीय राहत और स्थिरता प्रदान की जानी होगी। एमएसएमई के हित में उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं का विस्तार किए जाने से विशेष रूप से निर्यात-उन्मुख एमएसएमई लाभान्वित होंगे। नवाचार की नई लहर एमएसएमई के लिए नया अध्याय लिख सकती है। इस बात पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा कि भारत के एमएसएमई गुणवत्ता को मुठ्ठी में लेकर समकालीन डिजिटल तकनीकों को अपनाते हुए वैश्विक बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को रणनीतिक रूप से बढ़ा सकते हैं। चूंकि एमएसएमई आर्थिकी के एक मजबूत इंजन की तरह काम कर रहे हैं, ऐसे में इस विकास को बनाए रखने के लिए एमएसएमई को लगातार सहयोग, प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता दी जानी होगी। इन सबके साथ-साथ एमएसएमई क्षेत्र को भी ट्रंप टैरिफ की सच्चाइयों को समझते हुए नवाचार, प्रतिस्पर्धा, क्षमता में सुधार तथा शोध की डगर पर आगे बढऩे की तैयारी करनी होगी। भारत का टिकाऊ विकास तभी संभव है।

डा. जयंती लाल भंडारी

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