संपादकीय

दिल्ली का ‘पुतिन’ महोत्सव… वे आए और चले गए!

रशियन राष्ट्रपति पुतिन का ४ तारीख को दिल्ली में आगमन हुआ। हमेशा की तरह प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को गले लगाया और अगले दो दिन वे पुतिन उत्सव में तल्लीन रहे। पुतिन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दिल्लीभर की सड़कें बंद कर दी गर्इं। अमित शाह और नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए दिल्ली में पहले से ही जाम लगे रहते हैं। जब ये दोनों नेता बाहर निकलते हैं तो आधे घंटे पहले ही यातायात रोक दिया जाता है। इससे लोगों को असुविधा होती है। शाह कृष्णा मेनन रोड पर रहते हैं। इस सड़क और इसके तीनों तरफ की सड़कें यातायात के लिए बंद होने से लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है। ऐसे में पुतिन के आने से समस्या और बढ़ गई। भाजपा कार्यकर्ताओं ने पहले राष्ट्रपति ट्रंप की आरती उतारी। अब ये सभी लोग ‘पुतिन’ की आरती उतारते नजर आए। यह तस्वीर मजेदार थी। पुतिन ६ तारीख को लौट गए। राष्ट्रपति भवन में उनके लिए भोज का आयोजन किया गया। भोज के दो दिन बाद दिल्ली के अखबारों में एक तस्वीर छपी। तस्वीर में टेंट ठेकेदार लाल गलीचे लेकर राष्ट्रपति भवन से बाहर आ रहे हैं। पुतिन के स्वागत के लिए दिल्ली में तंबूवालों से कालीन किराए पर लिए गए थे। पहली बात तो यह है कि पुतिन के स्वागत के लिए राष्ट्रपति भवन में मौजूद कालीन पर्याप्त नहीं थे। दूसरी बात, पुतिन जैसे विदेशी मेहमान जब आते हैं तो राष्ट्रपति भवन में उनके स्वागत के लिए पर्याप्त कालीन नहीं होते। पूरा दृश्य और पृष्ठभूमि सजाई जाती है। पुतिन को पता ही नहीं कि उनकी पीठ पीछे क्या हुआ और न तो राष्ट्रपति ट्रंप और न ही पुतिन भारत के संकट के समय मजबूती से खड़े रहे हैं। हर एक को भारत में अपना सामान बेचना है। राष्ट्रपति ट्रंप को अपनी रक्षा सामग्री भारत के माथे फेंकनी है और पुतिन को अपना तेल बेचना है। पिछले दस वर्षों में भारत की कमर टूट चुकी है इसलिए जो भी आएगा वह भारत का शोषण करेगा।
क्या सच में दोस्त है?
रूस कभी भारत का सबसे भरोसेमंद दोस्त हुआ करता था। उन्होंने इसे कई बार अपने कार्यों से साबित किया है और मैंने स्वयं मॉस्को में यह अनुभव किया है कि रूस में पीढ़ियां भले ही बदल गई हों, लेकिन नेहरू-गांधी और राज कपूर के प्रति उनका प्रेम कम नहीं हुआ है। रूस के कई टुकड़े हो गए। भले ही वह पहले जैसा बलशाली रूस नहीं रहा हो, लेकिन यह स्वीकार करना होगा कि वैश्विक स्तर पर रूस की भूमिका अमेरिका और चीन के बाद एक ‘महाशक्ति’ की है। रूस चीन के पक्ष में खड़ा है या भारत के यह अभी तक रहस्य बना हुआ जिस पर से पर्दा उठना बाकी है। रूस भारत के साथ मित्रता चाहता है, चीन को उलझाए रखने के लिए लेकिन क्या चीन को ‘लाल आंख’ दिखाने की हिम्मत भारतीय हुक्मरानों में है, खरा सवाल यह है। प्रधानमंत्री मोदी के भक्त उन्हें विश्वगुरु और अन्य उपाधियों से सुशोभित करते हैं। ढिंढोरा पीटा जाता है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन भारतीय रुपया हर दिन गिर रहा है और डॉलर के मुकाबले ९० के पार पहुंच गया है। यह दुखद है। जिस देश की मुद्रा इस तरह गिर रही हो, वह देश दुनिया में गरदन उठाकर कैसे खड़ा हो सकता है?
एयरपोर्ट पर अफरा-तफरी
जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन दिल्ली आए, तब भारत की समग्र तस्वीर क्या थी? भारत के सभी प्रमुख हवाई अड्डे पर अराजकता का माहौल था। हवाई यातायात पूरी तरह से ठप हो गया और लाखों यात्री चार दिनों तक हवाई अड्डे पर फंसे रहे। सभी समाचार पत्रों में पुतिन-मोदी के गले मिलने की तस्वीरों के साथ-साथ भारत में हवाई क्षेत्र में मची अफरा-तफरी की तस्वीरें भी प्रकाशित हुर्इं। पुतिन को इस भारत के दर्शन हुए। पुतिन ने मोदी की प्रशंसा की, लेकिन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पुतिन बाड़ पर थे और आज पुतिन को भारत से ज्यादा चीन पसंद है। चीन खुलेआम भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद कर रहा है। वह लड़ाकू विमान, हथियार और गोला-बारूद मुहैया करा रहा है। पुतिन और पाकिस्तान के संबंध भी अच्छे हैं इसलिए मोदी-पुतिन के गले मिलने का कोई अर्थ नहीं है। पुतिन की भारत यात्रा के बाद गौतम अडानी को रूस में एक बड़ा प्रोजेक्ट मिलेगा। बाबा रामदेव की ‘पतंजलि’ इंडस्ट्री ने दिल्ली में मॉस्को सरकार के साथ एक समझौता किया है। इसके तहत पतंजलि को मॉस्को में कुशल श्रमिक (Skilled Labour) और स्वास्थ्य सेवाएं (Wellness Services) मुहैया कराने का ठेका मिला है। पुतिन की यात्रा के दौरान भाजपा समर्थित व्यापार मंडल ने अपना काम साध लिया है। बाबा रामदेव के स्वास्थ्य उत्पाद अक्सर ‘नकली’ साबित होते रहे हैं। उनका घी भी मिलावटी निकला, लेकिन अब वह रूस को भारत में न चल पाने वाली स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराकर व्यापार करेंगे।
विरोधियों को बर्खास्त कर दिया
सरकार ने पुतिन के सम्मान में एक शाही भोज का आयोजन किया। संसद के दोनों ही विपक्षी दल नेताओं को भोज में आमंत्रित नहीं किया गया। राहुल गांधी संसद परिसर में खड़े होकर बोले, ‘विदेशी मेहमानों को विपक्षी नेताओं से मिलने की अनुमति नहीं है। यह लोकतंत्र विरोधी है।’ मानो पुतिन मोदी-शाह के साले हैं और मोदी-शाह ने पुतिन को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया था। यह कुछ ऐसे हो रहा था जैसे वहां पर किसे आमंत्रित किया जाना चाहिए, ये उनका अपना मामला है।
जब विदेशी मेहमान आते हैं तो वे देश के प्रमुख विपक्षी नेताओं से मिलते हैं। यह लोकतंत्र के लिए सम्मान की बात है, लेकिन मोदी के आने के बाद से यह परंपरा बंद हो गई है। हमारे विपक्षी नेता उच्च शिक्षित हैं। उन्हें विश्व राजनीति का अच्छा ज्ञान है। प्रधानमंत्री मोदी को शायद डर रहा होगा कि वे विदेशी मेहमानों पर उनसे ज्यादा प्रभाव डालेंगे। पुतिन को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बनाया गया यह माहौल पसंद आया होगा कि भारत में लोकतंत्र तो है, लेकिन हम विपक्षी दल को महत्व नहीं देते। उनके देश में लोकतंत्र की स्थिति भारत से अलग नहीं है। रूस में संसद से लेकर सभी संस्थाएं पुतिन के नियंत्रण में हैं। पुतिन एकतरफा चुनाव जीतते हैं। पुतिन के खिलाफ आवाज उठानेवालों को गायब कर दिया जाता है। आज रूस में विपक्षी दल का अस्तित्व न के बराबर है। पहले पुतिन के मनमाने शासन के खिलाफ लड़नेवाले प्रमुख विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी को पहले जहर देकर मारने की कोशिश की गई। जब वे बच गए तो उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर साइबेरिया की जेल में कैद किया गया और वहीं कैद में उनकी हत्या कर दी गई। यह रूस का लोकतंत्र है और विपक्ष के दलों की हालत।
इसलिए पुतिन को दिल्ली पसंद आई और उन्होंने मोदी से यह सवाल भी नहीं पूछा होगा कि क्या आपके देश में कोई विपक्षी दल है। २००४ से २०१४ तक, लोकसभा और राज्यसभा के विपक्षी नेताओं ने १६२ विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात की। नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक, कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने विपक्षी नेताओं के नेतृत्व में कई प्रतिनिधिमंडलों को विदेश और संयुक्त राष्ट्र भेजा। पुतिन से लेकर ओबामा तक, कई विश्व नेता २०१४ से पहले दिल्ली आए और सोनिया गांधी से मुलाकात की। ये औपचारिक दौरे थे, लेकिन मोदी सरकार ने लोकतंत्र की सभी परंपराओं को तोड़ दिया। उन्होंने विश्व नेताओं के सामने यह छवि पेश की कि हमने अपने देश में विपक्ष को खत्म कर दिया है। पुतिन आए, उन्होंने भारत के हवाई अड्डों पर अराजकता देखी। विपक्ष की आवाज उन तक जरूर पहुंची होगी। उसी समय, भारतीय संसद में विपक्ष द्वारा ‘वंदे मातरम’ को लेकर सत्तारूढ़ दल की जमकर आलोचना की जा रही थी!
प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दल का गला घोंटकर खुद को ही घुटन में डाल दिया!

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