मैसी के नाम पर ‘महाभारत’

फुटबॉल के जादूगर, विश्व चैंपियन खिलाड़ी, लियोनेल मैसी कोलकाता आए और उनके फैन्स ने जो उत्पात मचाया, कमोबेश उसे खेल की दीवानगी तो नहीं माना जा सकता। चूंकि मैसी-प्रेमी अपने चहेते खिलाड़ी की झलक तक नहीं पा सके, उनसे बातचीत करना या ऑटोग्राफ लेना तो बहुत दूर की कौड़ी था, लिहाजा दर्शक भडक़ उठे। उन्होंने ‘सॉल्ट लेक स्टेडियम’ में पानी की बोतलें फेंकी, कुर्सियां उछालीं और तोड़-फोड़ की, होर्डिंग्स फाड़ दिए, तंबू उखाड़ फेंके, आगजनी तक की और मैसी के लिए बनाई ‘कैनोपी’ तक को नहीं बख्शा। यह दीवानगी के नाम पर अराजकता, गुंडागर्दी थी और आयोजन की अव्यवस्था, प्रबंधनहीनता की पराकाष्ठा थी। राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने इसे फुटबॉल प्रेमियों के लिए ‘काला दिन’ करार दिया है। यह वाकई शर्मनाक रहा। विश्व चैम्पियन कप्तान मैसी मैदान पर एक किक तक नहीं मार पाए, क्योंकि सुरक्षा के घेरे टूटने तक की नौबत आ गई थी। फुटबॉल का जादूगर आया और बिना कोई करिश्मा दिखाए 10 मिनट में ही स्टेडियम से बाहर चला गया। कुछ पल हाथ जरूर हिलाया, लेकिन फैन्स उसे साझा नहीं कर सके। बेशक बहुत कुछ कलंकित हुआ है। भारत 2026 के ओलिंपिक खेल आयोजन की बोलियां लगा रहा है, दावे कर रहा है, लेकिन उसके एक खेल-प्रेमी शहर में खेल के संस्कार ऐसे हैं, जो खेल की दृष्टि से निंदनीय और अस्वीकार्य हैं। कोलकाता अपनी चिरंतन सभ्यता, संस्कृति, भद्रलोक की छवि के लिए विख्यात रहा है। फुटबॉल वहां की दीवानगी है, पागलपन की हद तक है। गली-गली में बच्चे फुटबॉल खेलते दिख जाएंगे।
यदि फुटबॉल के विश्व चैम्पियन खिलाड़ी मैसी के सम्मान में 70 फुट ऊंची प्रतिमा का सार्वजनिक अनावरण किया जाना था, तो सबसे बेहतर यह रहता कि उनका कुछ खेल देखा जाता, उन्हें एक सुरक्षित वाहन पर सवार कर स्टेडियम में घुमाया जाता, नेताओं को भी तो घुमाया जाता है, मैसी के प्रशंसक हाथ हिला कर या हाथ जोड़ कर अथवा किसी भी तरह अपने ‘करिश्माई खिलाड़ी’ का अभिनंदन कर सकते। दुर्भाग्य है कि आयोजक यह तय नहीं कर पाए। कुछ वीआईपी चेहरों, मंत्रियों, स्थानीय प्रतिनिधियों समेत दर्जनों सुरक्षाकर्मियों ने मैसी को इस कदर ढक लिया था कि फैन्स अपने ‘हीरो’ की झलक तक नहीं पा सके। दर्शकों ने कम से कम 3500 रुपए और अधिकतम 25,000 रुपए के टिकट खरीदे थे। ब्लैक में टिकट 40,000 रुपए तक बेचे गए। वह काला धन किसकी जेब में गया? इस महाभारत ने न केवल बंगाल की छवि को कलंकित किया है, बल्कि देश की खेल मानसिकता को भी बदनाम किया है। हमें याद है कि फुटबॉल के शाश्वत जादूगर रहे महान पेले जब भारत आए थे, तो कमोबेश वह खेल दिखा पाए थे। ऐसी अराजकता और अव्यवस्था तो मैसी के इसी दौरे के दौरान हैदराबाद में नहीं हुई, जहां मैसी ने अपने खेल के कुछ ‘जादुई स्पर्श’ दिखाए, लेकिन वहां भी यह सवालिया जरूर रहा कि मैसी के साथ सेल्फी खिंचवाने के लिए 10-10 लाख रुपए वसूले गए। क्या फुटबॉल का जादूगर कोई उत्पाद है, जिसकी बोली लगाई गई? मैसी 14 लंबे सालों के बाद भारत आए हैं, जाहिर है कि जिन्होंने पूरे प्रवास का आयोजन किया है, तो उन्होंने मैसी का कुल पारिश्रमिक भी तय किया होगा! मैसी मुंबई में हैं और उन्हें दिल्ली भी आना है। उनकी प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात भी होनी है। क्या प्रधानमंत्री भी मैसी से खेद जताएंगे, हालांकि वह इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से कसूरवार या जवाबदेह नहीं हैं? मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विश्व चैम्पियन कप्तान और उनके साथी खिलाडिय़ों से माफी मांगी है और एक जांच समिति का गठन किया है। मुख्य आयोजक को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन पुलिस ने फुटबॉल प्रेमियों को दौड़ा-दौड़ा कर, उन पर लाठीचार्ज क्यों किया? ऐसी स्थितियों में कोई भी आक्रोशित हो सकता है। खेल प्रेमियों ने देश के कई हिस्सों से कोलकाता पहुंच कर मैसी को करीब से देखने के शुल्क अदा किए थे। अपने ‘सुपर हीरो’ से फैन्स रूबरू क्यों नहीं हो पाए? यह आयोजन के छिद्र हैं, उन्हें दुरुस्त किया जाना चाहिए।




