ज्योतिष

Hanuman Chalisa Path: कब, कैसे और कितनी बार करें पाठ?

Hanuman Chalisa Path: हनुमान चालीसा का पाठ भक्तों के लिए आस्था और शक्ति का स्रोत माना जाता है. इसे कब, कैसे और कितनी बार पढ़ना चाहिए, इससे जुड़े नियम और मान्यताएं जानना जरूरी है. सही विधि से किया गया पाठ मानसिक शांति और संकटों से राहत दिलाने वाला माना जाता है.

 हनुमान चालीसा हिंदू धर्म में आस्था, शक्ति और विश्वास का प्रतीक मानी जाती है. तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा का नियमित पाठ भक्तों को मानसिक शांति, भय से मुक्ति और आत्मबल प्रदान करता है. धर्म ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार, सही समय, विधि और नियमों के साथ किया गया पाठ विशेष फल देता है.

हनुमान चालीसा पाठ का सही समय

 हनुमान चालीसा  का पाठ वैसे तो किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन कुछ समय विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं.

  • ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) में पाठ करने से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है.
  • मंगलवार और शनिवार को पाठ का विशेष महत्व है, क्योंकि ये दिन भगवान हनुमान को समर्पित हैं.
  • संकट या भय की स्थिति में रात को सोने से पहले भी पाठ किया जा सकता है.

हनुमान चालीसा पाठ की सही विधि

  • पाठ शुरू करने से पहले स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें.
  • पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें.
  • भगवान हनुमान की तस्वीर या मूर्ति के सामने दीपक जलाएं.
  • मन को शांत कर श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें.a
  • पाठ के दौरान उच्चारण शुद्ध रखने का प्रयास करें.

कितनी बार करें हनुमान चालीसा का पाठ?

  • सामान्य रूप से दिन में एक बार पाठ करना भी फलदायी माना गया है.
  • मानसिक शांति और भय से मुक्ति के लिए 3 या 7 बार पाठ किया जा सकता है.
  • विशेष मनोकामना पूर्ति या संकट निवारण के लिए 11, 21 या 108 बार पाठ करने की परंपरा भी है.
  • 40 दिनों तक लगातार पाठ करने को “चालीसा अनुष्ठान” माना जाता है.

हनुमान चालीसा पाठ के लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नियमित पाठ से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में आने वाली बाधाएं कम होती हैं. यही कारण है कि हनुमान चालीसा  को ‘संकटमोचक’ कहा गया है. आस्था और नियम के साथ किया गया हनुमान चालीसा पाठ जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है.

हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa)

॥ दोहा॥

श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि .
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार .
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥

॥ चौपाई ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर .
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा .
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी .
कुमति निवार सुमति के संगी ॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा .
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै .
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥

शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन .
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर .
राम काज करिबे को आतुर ॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया .
राम लखन सीता मन बसिया ॥८

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा .
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे .
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

लाय सजीवन लखन जियाए .
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई .
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं .
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥

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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा .
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते .
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना .
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना .
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु .
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं .
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥

दुर्गम काज जगत के जेते .
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०

राम दुआरे तुम रखवारे .
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना .
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै .
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै .
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४

नासै रोग हरै सब पीरा .
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥

संकट तै हनुमान छुडावै .
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा .
तिनके काज सकल तुम साजा ॥

और मनोरथ जो कोई लावै .
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८

चारों जुग परताप तुम्हारा .
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥

साधु सन्त के तुम रखवारे .
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता .
अस बर दीन जानकी माता ॥

राम रसायन तुम्हरे पासा .
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२

तुम्हरे भजन राम को पावै .
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई .
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥

और देवता चित्त ना धरई .
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥

संकट कटै मिटै सब पीरा .
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६

जै जै जै हनुमान गोसाईं .
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥

जो सत बार पाठ कर कोई .
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा .
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा .
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०

॥ दोहा ॥

पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप .
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥

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