संपादकीय

मोदी का ‘नबीन’ प्रयोग

प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर नितिन नबीन की नियुक्ति से राजनीतिक पंडितों और पार्टी के अधिकांश नेताओं को एक बार फिर चौंकाया है। बेशक पार्टी संसदीय बोर्ड का हवाला देती रहे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व और संवैधानिक पदों पर नियुक्तियां प्रधानमंत्री मोदी ही तय करते हैं। कुछ मामलों में गृहमंत्री अमित शाह की सलाह भी ली जाती है। आरएसएस की सहमति भी अनिवार्य है, लेकिन बुनियादी तौर पर चयन मोदी ही करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की चर्चा, इस नियुक्ति की घोषणा से मात्र दो दिन पहले, संसदीय बोर्ड में की गई थी, लेकिन उस दौरान कोई नाम सामने नहीं था। संसदीय बोर्ड के अधिकांश सदस्यों की राय थी कि पार्टी का भावी अध्यक्ष अपेक्षाकृत युवा हो, सवर्ण जाति का हो और हिंदी पट्टी के राज्य से हो। इन्हीं आधारों पर बिहार के 5वीं बार विधायक एवं मंत्री नितिन नबीन का चयन किया गया। वैसे भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, एक-दो अपवाद को छोड़ कर, सवर्ण जाति के ही रहे हैं। बेशक राज्यों में पिछड़े और दलित समुदाय के नेताओं को भी नेतृत्व सौंपा जाता रहा है। नितिन नबीन सवर्ण उपजाति-कायस्थ समुदाय- के नेता हैं और 45 साल उम्र है, लिहाजा वह भाजपा के सबसे युवा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। कुछ समय बाद वह जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी के तौर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे। बेशक नितिन नबीन भाजयुमो में अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता में राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर काम कर चुके हैं, कुछ राज्यों के प्रभारी और सह-प्रभारी भी रहे हैं, लिहाजा संगठन की आत्मा और अपेक्षाओं को वह बखूबी जानते हैं। जब नड्डा पार्टी अध्यक्ष बने थे, तब उनकी उम्र 52 साल थी। अमित शाह 49 साल के थे। राजनाथ सिंह भी 52-53 साल के रहे होंगे। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की आयु भी 55-58 साल की रही होगी, जब वे पहली बार भाजपा अध्यक्ष बने थे, लिहाजा उम्र शीर्ष नेतृत्व का कोई मानदंड नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का यह ‘नबीन’ प्रयोग चुनौतीपूर्ण जरूर है। उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर मोहन चरण माझी, मोहन यादव, भजनलाल शर्मा, बिप्लव देब, भूपेंद्र पटेल, पुष्कर सिंह धामी, नायब सिंह सैनी आदि को विराजमान कर भाजपा की नई पीढ़ी को नेतृत्व सौंपा था। इन्हीं नेताओं की तरह नबीन भी भाजपा की चौथी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं। अलबत्ता उनकी पहचान कभी ‘राष्ट्रीय’ नहीं रही। बहरहाल अब नितिन नबीन भी उसी शृंखला की नई कड़ी बन गए हैं, जिसे अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह से लेकर जेपी नड्डा तक ने स्थापित किया और भाजपा को विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का सम्मान दिलाया। उस वर्चस्व, ओहदे और गरिमा को बरकरार रखना भी नितिन नबीन की चुनौती है।

उनके सामने राजनीतिक और चुनावी चुनौती यह है कि 2026 में असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल में विधानसभा चुनाव होने हैं और 2027 में उप्र के महाचुनाव सामने होंगे। केरल में तिरुवनंतपुरम के स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत हुई है और उसने वाममोर्चे के 45 साल पुराने किले को ढहा दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि विधानसभा चुनाव में भी जनता भाजपा-एनडीए को कमोबेश एक मौका जरूर देगी, लेकिन तमिलनाडु में आज भी भाजपा ‘शून्य’ है। बेशक अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन से उसे कुछ सीट हासिल हो जाएं, लेकिन तमिल के हिंदुओं ने अभी भाजपा को स्वीकार नहीं किया है। प्रधानमंत्री मोदी बार-बार वहां के राम मंदिरों में जाकर और पूजा कर प्रयास कर रहे हैं कि जनता की स्वीकृति मिल सके। वैसे परिणाम चुनाव के बाद ही स्पष्ट होंगे। नबीन के सामने 2028-29 की राजनीतिक चुनौतियां भी गंभीर होंगी, क्योंकि 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद संभवत: मोदी प्रधानमंत्री बनना नहीं चाहेंगे, लिहाजा एक वैकल्पिक चेहरे की आवश्यकता होगी। उसकी तैयारी भी 2026 से शुरू करनी पड़ेगी। बहरहाल पहली बार कोई बिहारी नेता राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पद पर पहुंचा है, लिहाजा बिहार का गदगद होना स्वाभाविक है। नबीन की छवि शालीन और जुझारू नेता की रही है। यह भाजपा में ही संभव है कि कोई अज्ञात, अनजान या कम चर्चित चेहरा भी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पहुंच सकता है। नए अध्यक्ष का जिस तरह स्वागत हो रहा है, उससे पता चलता है कि पार्टी में नई नियुक्ति को लेकर काफी उत्साह है। अमित शाह, जगत प्रकाश नड्डा के अलावा कई पार्टी नेताओं ने नए अध्यक्ष को बधाई दी है। यहां तक कि दूसरे दलों में राष्ट्रीय जनता दल ने भी उनको बधाई दी है। नबीन संगठनात्मक अनुभव रखने वाले नेता हैं। आने वाले समय में कई राज्यों में चुनाव होने हैं। इन चुनावों में उनकी पहली परीक्षा होगी।

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