तकनीकी

100 फीट दूर से चार्ज हो जाएगा फोन-लैपटॉप, बिना चार्जर चार्ज होंगे डिवाइस, भविष्य में कैसे काम करेगी वायरलेस चार्जिंग

कैसा हो कि आप एयरपोर्ट पर हैं और आपका फोन बिना किसी चार्जर से कनेक्ट हुए चार्ज हो रहा है। या फिर आप मॉल में घूम रहे हैं और उस दौरान भी फोन अपने आप लगातार चार्ज हो रहा है। कहने का मतलब है कि न तो फोन को चार्जिंग पर लगाने का झंझट और न ही बैटरी खत्म होने की टेंशन। हो सकता है यह किसी ख्याली पुलाव जैसा लगे लेकिन ऐसी टेक्नोलॉजी बनाई जा चुकी है और उसे भविष्य में चार्जिंग के तरीकों को बदलने के लिए तैयार किया जा रहा है। इसे आप मौजूदा वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी का एडवांस रूप मान सकते हैं। चलिए इसके बारे में डिटेल में बात करते हैं।

वायरलेस चार्जिंग कोई नई चीज नहीं है। आज भी हम वायरेलस चार्जर या वायरलेस चार्जिंग को सपोर्ट करने वाले पावरबैंक पर फोन रखकर उन्हें चार्ज करते हैं। हालांकि भविष्य में यह टेक्नोलॉजी पूरी तरह से वायरलेस होने जा रही है।

दरअसल आज की वायरलेस टेक्नोलॉजी कुछ इस तरह से काम करती है कि पहले वायरलेस चार्जर को किसी वायर्ड कनेक्शन से कनेक्ट रखना पड़ता है और उसके बाद फोन को भी वायरलेस चार्जिंग के पैड पर रखकर छोड़ना पड़ता है। ऐसे में यह टेक्नोलॉजी भले फोन को वायरलेस तरीके से चार्ज करती हो लेकिन यह पूरी तरह से वायरलेस नहीं है।

मगर भविष्य में आप कमरे में घुसेंगे और फोन चार्ज होने लगेगा। इसके लिए किसी वायरलेस चार्जिंग पैड पर फोन टिकाने की जरूरत होगी। रिपोर्ट के अनुसार,(REF.) कमरे के एक कोने में वायरलेस चार्जर मौजूद होगा और वह वहीं से कमरे में मौजूद हर डिवाइस को चार्ज कर देगा। कमाल की बात यह है कि इस टेक्नोलॉजी पर सिर्फ रिसर्च नहीं चल रही बल्कि यह असल में बनाई भी जा चुकी है। चलिए भविष्य की टेक्नोलॉजी के बारे में डिटेल में समझते हैं।

आज वायरलेस चार्जिंग के नाम पर जो टेक्नोलॉजी हम इस्तेमाल करते हैं, देखा जाए तो वह पूरी तरह से वायरलेस नहीं है। आज की वायरलेस टेक्नोलॉजी की समस्या यह है कि इसमें वायरलेस चार्जिंग पैड को तार से ही कनेक्ट करना पड़ता है। ऐसे में यह पूरी तरह से वायरलेस नहीं होता।

इसके अलावा फोन के वायरलेस चार्जिंग कॉइल का चार्जिंग पैड पर मौजूद चार्जिंग कॉइल से मैच करना भी जरूरी होता है। ऐसा न होने पर या तो फोन चार्ज ही नहीं होता या फिर स्लो चार्ज होता है।

बता दें कि साउथ कोरिया की सेजोंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी वायरलेस चार्जिंग सिस्टम विकसित किया है जो 30 मीटर यानी करीब 100 फीट की दूरी से भी आपके डिवाइस को चार्ज कर सकती है। इस टेक्नोलॉजी में चार्जिंग के लिए इन्फ्रारेड लाइट का इस्तेमाल होता है, जिसका बाकी दूसरी चीजों पर किसी तरह का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।

सेजोंग यूनिवर्सिटी की टीम द्वारा बनाई गई टेक्नोलॉजी को “डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर चार्जिंग” नाम दिया गया है। इस टेक्नोलॉजी के दो मुख्य हिस्से हैं। पहला ट्रांसमीटर यानी कि भेजने वाला और दूसरा एक रिसीवर यानी कि पाने वाला। इस टेक्नोलॉजी में ट्रांसमीटर और रिसीवर एक-दूसरे से कनेक्ट होते हैं और ट्रांसमीटर से रिसीवर की तरफ इन्फ्रारेड लाइट के रूप में पावर भेजता है। इसके बाद रिसीवर में मौजूद एक खास फोटोवोल्टेइक सेल इस लाइट को बिजली में बदल देता है।

इस रिसीवर की सबसे खास बात इसका साइज है, जो कि सिर्फ 10 स्क्वेयर मिलीमीटर का है। ऐसे में इसे किसी भी डिवाइस या सेंसर में आसानी से फिट किया जा सकता है।

वर्तमान में यह टेक्नोलॉजी 400 मिलीवॉट की लाइट पावर भेजने के लायक है। इससे IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) डिवाइसेस और छोटे सेंसर्स को चार्ज किया जा सकता है। इसके अलावा रिसीवर में लगा फोटोवोल्टेइक सेल लाइट को फिलहाल सिर्फ 85 मिलीवॉट बिजली में बदल पाता है। ऐसे में इसकी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है।

अगर वैज्ञानिक इस टेक्नोलॉजी में मौजूद चुनौतियों से पार पा लेते हैं, तो वो समय दूर नहीं जब फोन, लैपटॉप, टैबलेट और दूसरे डिवाइसेज में रिसीवर बिल्टइन आया करेगा और वह बिना डिवाइस चार्जर से कनेक्ट किए हमारे डिवाइसेज को चार्ज कर देगा। इस तरह के ट्रांसमीटर जगह-जगह मौजूद होंगे और हमारे डिवाइस लगातार चार्जिंग के स्टेज में ही रहेंगे। इससे न सिर्फ चार्जिंग की टेंशन खत्म होगी, बल्कि तारों का जाल भी साफ हो जाएगा।

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