राजनीति

अदालत पर दबाव बनाना चाहती है तमिलनाडु सरकार! मंदिर के पक्ष में फैसला आने पर महाभियोग की कोशिश क्यों?

मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी. आर. स्वामीनाथन के विरुद्ध विपक्ष द्वारा संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की पहल अभूतपूर्व और दंग करने वाली है। किसी जज के निर्णय या आदेश पर उसके खिलाफ महाभियोग लाने के लिए हमारे माननीय सांसद इस तरह एकजुट हो जाएंगे, इसकी कल्पना नहीं थी। अब इसके विरुद्ध 56 पूर्व जज सामने आ गए हैं, जिन्होंने एक खुले पत्र में इसे अदालत पर राजनीतिक, वैचारिक दबाव बनाने की कोशिश कहा है।

तीन अहम पहलू: इस प्रकरण के तीन प्रमुख पहलू हैं। पहला, न्यायमूर्ति स्वामीनाथन द्वारा दिया गया फैसला और उसकी पृष्ठभूमि। दूसरा, संबंधित विवाद की सच्चाई। तीसरा, महाभियोग प्रस्ताव के पीछे की सोच या विचारधारा। न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने तिरुप्परनकुंद्रम मंदिर पर दीप जलाने का एक आदेश 1 दिसंबर को दिया और फिर प्रशासन द्वारा उसका पालन न किए जाने पर तीखे शब्दों में दूसरा आदेश 4 दिसंबर को दिया।

पुरानी परंपरा: दरअसल, तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित अरुलमिघु सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर से संबंधित पत्थर स्तंभ-दीपथून पर दीपक जलाकर कार्तिगई दीपम त्योहार मनाने की पुरानी परंपरा है। तमिल महीने कार्तिगई (नवंबर-दिसंबर) में मनाए जाने वाले ‘कार्तिगई दीपम’ उत्सव के तहत, हमेशा की तरह उच्ची पिल्लैयार मंदिर के मंडपम में दीप जलाने के लिए जब लोग जाने लगे तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया। तिथि के अनुसार 3 दिसंबर को दीप जलाया जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हो सका। इसके बाद यह बड़ा मुद्दा बन गया और न्यायालय के समक्ष अवमानना याचिका डाली गई जिसके तहत यह आदेश आया।

17वीं सदी की दरगाह: तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी तमिलनाडु राज्य के मदुरै शहर से 10 किमी दूर है जिस पर यह मंदिर है। हिंदू मान्यताओं में यह भगवान मुरुगन या कार्तिकेय के छह निवास स्थानों में एक है। विवाद की मुख्य वजह पहाड़ी के ऊपरी भाग पर स्थित सिकंदर वधुसाह की दरगाह है। मंदिर समर्थकों की मान्यता है कि यह पूरी पहाड़ी शिवलिंग है जिसके बीच में भगवान मुरुगन का मंदिर है। सिकंदर वधुशाह की दरगाह 17वीं शताब्दी में बनी थी जबकि मंदिर का उल्लेख छठी शताब्दी तक मिलता है।

नाम बदलने का आंदोलन: DMK के संस्थापक ईवी रामास्वामी नायकर यानी पेरियार की पूरी सोच सनातन या हिंदू धर्म के विरुद्ध थी। DMK की राजनीति इस हिंदू धर्म के विरोध पर टिकी है, जिसे कुछ लोग नास्तिकतावाद भी कहते हैं। हालांकि विडंबना देखिए कि उस नास्तिकतावाद में इस्लाम या ईसाइयत का विरोध नहीं है। तिरुप्परनकुंद्रम विवाद पिछले दिनों तब ज्यादा गहराया जब कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसे सिकंदर मलाई पहाड़ी नाम देने की मांगकर आंदोलन शुरू किया।

प्रशासन की रोक: इन कारणों से वहां तनाव की स्थिति बनी और मंदिर के सामान्य पूजा पाठ को छोड़ अन्य गतिविधियों को प्रशासन ने लगभग रोक दिया। ऐसा नहीं होता तो कार्तिकेय दीपम के लिए अदालत जाने की आवश्यकता ही नहीं होती। दक्षिण में भगवान मुरुगन सर्वाधिक पूजे जाने वाले देवताओं में है और इनको मानने वाले में समाज के पिछड़े वर्ग की संख्या ज्यादा है।

अन्य विकल्प: पूरे विवाद को निष्पक्षता से देखने के बाद कौन क्या निष्कर्ष निकालता है, यह उसका अपना मामला है। किंतु कोई सरकार या पार्टी न्यायाधीश के फैसले से असहमत भी है तो क्या उसका रास्ता महाभियोग होगा ? उच्च न्यायालय की एकल पीठ के विरुद्ध बड़ी पीठ में जाया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट का रास्ता भी खुला है । उस सबको छोड़कर महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश से लगता है कि तमिलनाडु सरकार ऐसा दबाव बनाना चाहती है जिससे आगे कोर्ट इस तरह के फैसले देने से डरे।

लोकतंत्र के लिए खतरनाक: महाभियोग न्यायपालिका की ईमानदारी की रक्षा करने के लिए है, न कि जजों पर दबाव डालने या बदला लेने के लिए। महाभियोग को दबाव बनाने के हथियार की तरह इस्तेमाल करना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है । DMK की संकीर्ण एकपक्षीय तमिलवाद की अपनी राजनीति है लेकिन कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और तृणमूल कांग्रेस आदि का इस सवाल पर उसके साथ आना आने वाले समय में इन दलों के लिए और प्रतिकूल साबित हो सकता है।-अक्षय श्रीवास्तव

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