लेख

अरुणाचल में ‘ओजु’ प्रोजेक्ट को मंजूरी, मोदी ने चीन के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी

देखा जाये तो यह महज़ ऊर्जा उत्पादन की परियोजना नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक योजना का हिस्सा है। क्योंकि यह इलाका सीधे चीन की सीमा से सटा हुआ है। ऐसे में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह कदम चीन के ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जा रहे बाँधों के जवाब में है?

भारत की ऊर्जा और सामरिक सुरक्षा से जुड़ा एक बड़ा कदम हाल ही में तब सामने आया जब पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने अरुणाचल प्रदेश के अपर सुबनसिरी ज़िले में प्रस्तावित 2,220 मेगावॉट के ओजु जलविद्युत परियोजना को मंजूरी दे दी। लगभग 25,000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली यह परियोजना भारत की तीसरी सबसे बड़ी हाइड्रो पावर परियोजना होगी, जिसे पूरा होने में कम से कम पाँच वर्ष लगेंगे। इससे पहले दिबांग (2,880 मेगावॉट) और एतालिन (3,087 मेगावॉट) परियोजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है।

देखा जाये तो यह महज़ ऊर्जा उत्पादन की परियोजना नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक योजना का हिस्सा है। क्योंकि यह इलाका सीधे चीन की सीमा से सटा हुआ है। ऐसे में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह कदम चीन के ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जा रहे बाँधों के जवाब में है? और क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अरुणाचल यात्रा के महज़ दो दिन बाद इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिलना कोई साधारण संयोग है?

हम आपको बता दें कि चीन लंबे समय से ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो) पर बड़े-बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट बना रहा है। उसकी योजना वहाँ दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट खड़ा करने की है। भारत के लिए यह चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि ब्रह्मपुत्र की धारा तिब्बत से निकलकर अरुणाचल और असम से होते हुए बांग्लादेश पहुँचती है। यदि चीन ऊपरी धारा पर पानी रोकता है या दिशा मोड़ता है, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और असम की कृषि, पारिस्थितिकी और लोगों के जीवन पर गहरा असर पड़ सकता है।

भारत अब इस खतरे को मूक दर्शक बनकर नहीं देखना चाहता। ओजु जैसी परियोजनाएँ दरअसल यह संदेश देती हैं कि भारत भी अपनी नदी संसाधनों पर अधिकार जताने और उन्हें सामरिक हथियार की तरह उपयोग करने के लिए तैयार है। यह परियोजना न केवल ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करेगी, बल्कि चीन के जल-राजनीति (Water Politics) को संतुलित करने का साधन भी बनेगी।

हम आपको यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी दो दिन पहले ही अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर गए थे, जहाँ उन्होंने कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया और राज्य की सामरिक महत्ता पर ज़ोर दिया। उनकी यात्रा के मात्र दो दिन बाद ओजु प्रोजेक्ट की मंजूरी सामने आना केवल संयोग नहीं माना जा सकता। यह एक सोचा-समझा सामरिक संकेत है— भारत चीन को यह बताना चाहता है कि अरुणाचल पर उसके दावे किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हैं।

दरअसल, चीन लगातार अरुणाचल को ‘दक्षिण तिब्बत’ बताकर दावा करता रहा है। भारत का यहाँ बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा और ऊर्जा परियोजनाएँ खड़ी करना इस दावे को व्यावहारिक रूप से निष्प्रभावी बना देता है। यह कदम यह संदेश भी देता है कि भारत केवल सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि सीमा से लगे इलाकों में विकास की नई धारा बहाएगा। देखा जाये तो यह प्रोजेक्ट भारत की आत्मविश्वासी छवि का प्रतीक है। अब भारत केवल रक्षात्मक मुद्रा में नहीं है, बल्कि आक्रामक विकास और सामरिक कदमों के जरिए चीन की चालों को संतुलित करने में जुटा है।

हम आपको यह भी बता दें कि ओजु प्रोजेक्ट से भारत को कई स्तरों पर लाभ होगा। जैसे- 2,220 मेगावॉट उत्पादन पूर्वोत्तर राज्यों को आत्मनिर्भर बनाएगा और राष्ट्रीय ग्रिड को भी मज़बूत करेगा। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन होगा और आधारभूत ढाँचे का विकास होगा। साथ ही यह परियोजना चीन को यह संदेश देगी कि भारत भी जल संसाधनों का उपयोग सामरिक हथियार की तरह कर सकता है। वहीं भारत अपने विकासशील राष्ट्र के एजेंडा के तहत यह दिखा सकेगा कि वह पर्यावरणीय सतर्कता के साथ बड़े प्रोजेक्ट पूरे कर सकता है।

हम आपको बता दें कि विशेषज्ञ समिति ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी देते समय कई शर्तें भी जोड़ी हैं— जैसे ग्लेशियर झील फटने (Glacial Lake Outburst Flood) के खतरे को ध्यान में रखना, रीयल-टाइम अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाना और पाँच साल बाद पर्यावरणीय असर की समीक्षा करना। यह जरूरी है, क्योंकि हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय और पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील है। यदि संतुलन नहीं रखा गया तो लाभ से ज़्यादा नुकसान भी हो सकता है।

बहरहाल, ओजु जलविद्युत परियोजना केवल एक ऊर्जा प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत का भू-राजनीतिक बयान है। यह बताता है कि भारत अब चीन की जल-राजनीति का जवाब अपने दम पर देने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री मोदी की अरुणाचल यात्रा के बाद यह फैसला यह संदेश देता है कि भारत अपनी सीमाओं और संसाधनों पर किसी भी बाहरी दावे या दबाव को स्वीकार नहीं करेगा। भारत अब उस आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहा है जहाँ विकास और सुरक्षा दोनों हाथ में हैं। चीन की चुनौती का जवाब केवल सैन्य मोर्चे पर नहीं, बल्कि जलविद्युत और विकास के मोर्चे पर भी दिया जाएगा।-नीरज कुमार दुबे

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button