आयुध पाकर गणपति हुए प्रसन्न

भगवान गणेश देवों के देव महादेव और माता पार्वती के पुत्र हैं। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। श्रीगणेश के स्मरण मात्र से ही समय शुद्ध हो जाता है व अनुकूल हो जाता है। बाल गणेश की बाल लीलाएं भी भगवान कृष्ण के समान ही हैं। श्रीगणेश ने कई लीलाएं ऐसी की हैं, जो कृष्ण की लीलाओं से मिलती-जुलती हैं। इन लीलाओं का वर्णन मुद्गलपुराण, गणेशपुराण, शिवपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।
एक बार महादेव कैलाश त्यागकर वन में जाकर रहने लगे, तब महादेव से मिलने विश्वकर्माजी आए। उस समय बाल गणेश की आयु मात्र छह वर्ष थी। विश्वकर्माजी को देख बाल गणेश ने उनसे सवाल किया कि आप मुझसे मिलने आए हो तो मेरे लिए क्या उपहार लेकर आए हो? इस पर विश्वकर्माजी ने बड़ी सरलता से उत्तर दिया कि भगवन, मैं आपके लिए क्या उपहार ला सकता हूं। आप तो स्वयं सच्चिदानंद हो। इतना कह कर विश्वकर्माजी ने गणेश का वंदन किया और उनके समक्ष एक तीखा अंकुश, पाश और पद्म भेंट स्वरूप प्रस्तुत कर दी, जो उनके हाथ से बनी हुई थी। ये आयुध पाकर गणपति को बहुत प्रसन्नता हुई। भविष्य में इन्हीं आयुधों से सबसे पहले छह साल के बाल गणेश ने अपने मित्रों के साथ खेलते हुए एक दैत्य वृकासुर का संहार किया था।
गणेश पुराण में गणेशजी के अनेकानेक रूप कहे गए हैं। सतयुग में कश्यप ऋषि के पुत्र रूप में वह विनायक हुए और सिंह पर सवार होकर देवातंक-निरांतक का वध किया। त्रेता में मयूरेश्वर के रूप में वह अवतरित हुए। धर्म शास्त्रों में भगवान गणेश के २१ गण बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- गजास्य, विघ्नराज, लंबोदर, शिवात्मज, वक्रतुंड, शूर्पकर्ण, कुब्ज, विनायक, विघ्ननाश, वामन, विकट, सर्वदैवत, सर्वातनाशी, विघ्नहर्ता, ध्रूमक, सर्वदेवाधिदेव, एकदंत, कृष्णपिंड्ग, भालचंद्र, गणेश्वर और गणप। ये २१ गण हैं और गणेशजी की पूजा के भी २१ ही विधान हैं।




