संपादकीय

‘इंडिगो’ का बंधक देश

कैसा देश है यह? इसकी सरकार और व्यवस्था कैसी है? क्या एक विमानन कंपनी की मनमर्जी के सामने सरकार घुटने टेक सकती है और आम यात्री बंधक बनाया जा सकता है? विमानन कंपनी ‘इंडिगो’ की 800 से ज्यादा उड़ानें शनिवार को भी रद्द की गईं। प्रधानमंत्री दफ्तर ने कंपनी के सीईओ से बात की और चेतावनी दी। नागरिक विमानन मंत्रालय ने ‘इंडिगो’ के आला अधिकारियों के साथ बैठक की और नोटिस जारी किया कि रविवार, 7 दिसंबर, की रात 8 बजे तक प्रभावित यात्रियों को उनका किराया रिफंड सुनिश्चित किया जाए। हम देखेंगे कि इस अल्टीमेटम का क्या असर हुआ? संसदीय समिति भी गुस्से में थी। उसने मंत्रालय, डीजीसीए और ‘इंडिगो’ के अधिकारियों को तलब किया। क्या हुआ? ये तमाम सक्रियताएं तब सामने आईं, जब बीते 4 दिनों में ‘इंडिगो’ ने 2694 फ्लाइट रद्द की थीं, नतीजतन 4 लाख 83,600 से अधिक यात्री बेहाल, परेशान और हलकान हुए थे। यह कैसा तमाशा था? कोई हवाई अड्डे पर ही पसर गया, किसी को खाने-पीने का सामान नहीं मिला, किसी का सामान कहीं का कहीं चला गया। घोर अनिश्चितता, अराजकता…! फिर भी ‘इंडिगो’ को दंडित नहीं किया गया। आखिर क्यों? सरकार बेबस क्यों दिख रही है? लोकतंत्र में सरकार ही जवाबदेह है, क्योंकि देश ने उसे चुना है। ‘इंडिगो’ पर कम से कम 500 करोड़ रुपए का जुर्माना थोपना चाहिए था और वह राशि प्रभावित यात्रियों के खातों में जमा कराई जानी चाहिए थी। विमानन कंपनियां देश में मुनाफाखोरी के लिए ही नहीं हैं। वे हवाई सेवा प्रदान करने के लिए हैं और सरकार ने उन सेवाओं के किराए तय कर रखे हैं। यह कौन-सी कालाबाजारी है कि ‘इंडिगो’ की उड़ानें रद्द हुईं और अन्य एयरलाइंस ने कई गुना किराए बढ़ा दिए? कोई सरकार, मंत्रालय, अंकुश, कायदे-कानून इस देश में हैं अथवा नहीं? ‘इंडिगो’ ने 2024-25 में 7258 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है, तो इस देश के यात्रियों से ही कमाया है। फिर वही विमानन एयरलाइन देश के यात्रियों को ही ‘बंधक’ कैसे बना सकती है? ऐसी कंपनी को ‘अभयदान’ क्यों दिया जा रहा है? सरकार किससे डर रही है? जांच पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? किसी के घर में शादी थी, किसी को इंटरव्यू देने जाना था, किसी की बिजनेस बैठक थी, किसी को वीजा लेने जाना था और किसी के घर में बूढ़े मां-बाप बीमार थे अथवा मातम पसर गया था, ‘इंडिगो’ की मनमर्जी ने सब कुछ खत्म कर दिया।

सब कुछ बिखर गया। पैसा बर्बाद, लगातार आंसू, रुदन, आम यात्री और क्या कर सकता है? क्या एक एयरलाइन को इस हद तक ‘खलनायक’ बनने की छूट दी जा सकती है? विमानन के क्षेत्र में ‘इंडिगो’ की हिस्सेदारी 62 फीसदी से भी अधिक क्यों होने दी गई? सरकारी पार्टी को करोड़ों रुपए का चुनावी चंदा और बाजार पर एकाधिकार का लाइसेंस…! क्या देश में एयरलाइंस ऐसे ही काम करती रहेंगी? क्या यात्रियों को उड़ान भरने के सपने बेच कर और फिर बंधक बना कर देश ‘विकसित’ बन सकता है? ट्रिलियन डॉलर के मामले में भारत विकसित देश, बेशक, बन सकता है, लेकिन मानसिक, सामाजिक, सुविधा और पेशेवर दृष्टि से भारत ‘अविकसित’ देश ही रहेगा। चीन और अमरीका के उदाहरण सभी के सामने हैं। चीन की शीर्ष तीन विमानन कंपनियों की कुल हिस्सेदारी 60 फीसदी से कम है। अमरीका में शीर्ष 4 कंपनियों की हिस्सेदारी करीब 75 फीसदी है। किसी अकेली कंपनी की हिस्सेदारी 25 फीसदी को नहीं लांघती। विमानन की दृष्टि से ये देश, भारत की अपेक्षा, अधिक विकसित हैं। उनकी उड़ानों की संख्या भी अधिक है। ‘इंडिगो’ के सीईओ अब भी कह रहे हैं कि सामान्य उड़ानों के लिए कमोबेश 10 दिन चाहिए, लेकिन सरकार तुरंत सामान्य हालात का दबाव दे रहे हैं। दरअसल बुनियादी कारण पायलटों की भर्ती और अन्य नियम हैं, जो डीजीसीए ने जारी किए थे और ‘इंडिगो’ को पर्याप्त समय दिया गया था, लेकिन ‘इंडिगो’ ने नियम स्वीकार नहीं किए। डीजीसीए को अपना आदेश वापस लेना पड़ा। देश जानना चाहता है कि ऐसा क्यों किया गया? इसी सवाल में ‘इंडिगो’ की मनमर्जी छिपी है। दरअसल ‘इंडिगो’ का एकाधिकार तोडऩा चाहिए। यह विकसित देश की निशानी नहीं है। भारत को अमरीका और चीन से सीख लेते हुए इस कंपनी का एकाधिकार खत्म करना चाहिए और जिन यात्रियों को तकलीफ हुई है, उन्हें पर्याप्त मुआवजा दिलाना चाहिए। इस कंपनी पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है, क्योंकि यह कंपनी भारतीय यात्रियों से ही बड़ी कमाई करती है। इस मामले में सरकार को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए।

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