संपादकीय

इस बार भी नीतीश सरकार

पटना  का ‘गांधी मैदान’ एक बार फिर ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी बना। राज्य में भाजपा-एनडीए सरकार ने शपथ ग्रहण की। नीतीश कुमार लगातार 10वीं बार मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 7वीं, 8वीं, 9वीं बार मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीते 19 साल 2 माह से मुख्यमंत्री पद पर हैं। भाजपा के सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री पद पर यथावत रखा गया है। कमोबेश यह दलबदल और अनिश्चित राजनीति के दौर का कीर्तिमान है। नई विधानसभा में भाजपा 89 सीटों के साथ जनता दल-यू के 85 विधायकों से आगे है। फिलहाल भाजपा के 14, जद-यू के 8, लोक जनशक्ति पार्टी (आर) के 2 और हम-राष्ट्रीय लोक मोर्चा के 1-1 मंत्रियों ने शपथ ग्रहण की है। भाजपा के 9 नए चेहरे मंत्री बनाए गए हैं। कुल 243 विधायकों में से 202 भाजपा-एनडीए के जीते हैं। जिस विपक्ष ने नीतीश कुमार की उम्र और उनके मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर भद्दी टिप्पणियां की थीं, उनमें राजद 25 सीट पर ही सिमट चुका है और कथित राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के हिस्से मात्र 6 सीट आई हैं। दरअसल इस बार भाजपा-एनडीए का जनादेश चुनौतीहीन है। नीतीश कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह में देश के प्रधानमंत्री मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा, एक दर्जन मुख्यमंत्री भी उपस्थित रहे। यह एनडीए का शक्ति-प्रदर्शन भी था और जनादेश की व्यापकता भी थी कि देश के 60 फीसदी से अधिक इलाके पर भाजपा-एनडीए का शासन है। अब भाजपा के विधायकों की कुल संख्या 1654 और एनडीए के विधायकों का आंकड़ा 2300 से अधिक है। जश्न, उल्लास और उत्साह वाकई चरम पर था। बेशक यह भाजपा-एनडीए की लोकतांत्रिक स्वीकार्यता भी है। बहरहाल नीतीश सरकार के बनते ही बिहार में चुनाव का दौर सम्पन्न हो गया, लेकिन सरकार के सामने वायदों की चुनौतियां असंख्य हैं। जिम्मेदारियां हिमालय-सी हैं। बिहार सरकार को यथाशीघ्र 28,000 करोड़ रुपए की दरकार है, ताकि वायदों को निभाने की शुरुआत की जा सके। ‘जनसुराज पार्टी’ के संस्थापक प्रशांत किशोर, बेशक, चुनाव हार गए, हिस्से में ‘बड़ा शून्य’ आया, लेकिन उनके आरोप बेहद अहम हैं कि भाजपा-एनडीए ने 29,000 करोड़ रुपए महिलाओं में बांटे और इस तरह उनके वोट खरीदे गए।

इस बार बिहार में 71.78 फीसदी महिलाओं ने वोट दिए और पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने 4 लाख से अधिक वोट डाले। यही भाजपा-एनडीए जनादेश की बुनियाद साबित हुई। प्रशांत का आरोप यह भी है कि नीतीश कुमार ने 40,000 करोड़ रुपए के वायदे भी किए हैं। उनमें महिलाओं को 2-2 लाख रुपए मुहैया कराने का भी वायदा है। यदि सरकार ने 6 माह के कार्यकाल में महिलाओं को 2 लाख रुपए नहीं दिए गए, तो वह इस मुद्दे पर अदालत में चुनौती देंगे। यह ‘वोट खरीद’ का स्पष्ट मामला है, जो लोकतांत्रिक चुनाव में ‘अवैध’ है। सवालिया यह भी है कि 1.80 लाख ‘जीविका दीदियों’ को सरकार द्वारा बूथों पर चुनाव ड्यूटी पर क्यों लगाया गया? उन्होंने भाजपा-एनडीए के पक्ष में वोट देने का प्रचार क्यों किया? चुनाव आयोग ने ‘आदर्श संहिता’ के बावजूद, चुनाव के दौरान ही, महिलाओं में 10,000 रुपए क्यों बंटने दिए? यदि यह कानूनन सही था, तो तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल, उप्र आदि के चुनावों में विभिन्न योजनाओं और नकदी बांटने पर चुनाव आयोग ने रोक क्यों लगाई थी? बेशक जवाबदेही चुनाव आयोग की है, लेकिन भाजपा-एनडीए भी हिस्सेदार हैं। अब 2026 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, केरल में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रियाएं जारी हैं, लेकिन सर्वोच्च अदालत में भी चुनौती दी गई है। बहरहाल इन राज्यों में भी भाजपा-एनडीए बिहार के ‘विजयी समीकरण’ को ही आजमाना चाहते हैं। बिहार में अर्थव्यवस्था, पलायन, रोजगार, गरीबी, औद्योगीकरण, आधारभूत ढांचा, बजट का विस्तार आदि सरकार की प्राथमिकताएं होनी चाहिए, लेकिन एक सवाल बार-बार चौंका रहा है कि क्या नीतीश कुमार पूरे पांच साल तक मुख्यमंत्री रहेंगे? यह सवाल चर्चा में क्यों है? क्या नीतीश को देश का अगला राष्ट्रपति बनाने पर भी विचार किया जा रहा है? वह ऐसे संवैधानिक पद से ही सेवानिवृत्ति के इच्छुक हैं, ऐसी चर्चाएं भी ताजपोशी के वक्त जारी रही हैं।

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