किडनी दान- हर साल 12 हजार से ज्यादा किडनी होती हैं ट्रांसप्लांट, डोनर-मरीज के शरीर पर क्या होता है असर?

लोग किडनी दान करें या न करें? क्या इससे डोनर की उम्र कम हो जाती है? क्या उनकी लाइफ सामान्य नहीं रहती? क्या है हकीकत और क्या है फसाना? देश के बेहतरीन डॉक्टरों से बातकर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती।
किसी ज़रूरतमंद को, अपने करीबी को किडनी की ज़रूरत हो और हम उसे दे सकते हों, लेकिन न दें तो क्या होगा? क्या फौरन ही उसकी जान चली जाएगी? इन सवालों के जवाब में ही छुपी है किडनी डोनेशन की अहमियत। किडनी ही नहीं, दूसरे अंगों के डोनेशन की भी अहमियत। दरअसल, जब भी हम किसी अंग दान की बात करते हैं तो दो स्थितियां बनती हैं: जीवित रहते हुए दान और मृत (ब्रेन डेड) होने के बाद कुछ घंटो में दान। जब कोई शख्स मेडिकली डेड हो जाता है यानी उसके दिल की धड़कन बंद हो जाती है और उसे ब्रेन डेड भी घोषित कर दिया जाता है तो अमूमन 6-12 घंटों तक में ही ज्यादातर अंगों का दान कर दिया जाता है। इस दान से उस मृत शरीर पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन किसी शख्स की ज़िंदगी बदल जाती है। अफसोस है कि हमारे देश में इस तरह का महादान भी बहुत कम किया जाता है।
अब बात दूसरे दान की यानी ज़िंदा रहते हुए दान करने की। यह दान शायद मृत्यु को प्राप्त करने के बाद हुए दान से भी बड़ा है। पर अहम बात यह कि इस दान में, खासकर किडनी दान करने से डोनर की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। जब भी किडनी डोनेशन यानी ट्रांसप्लांट की बात आती है तो यह समझना चाहिए कि किसी भी डॉक्टर का यह मकसद नहीं होता कि डोनर से किडनी लेकर उसे पेशंट बनाना है। वह ऐसे शख्स से किडनी लेते ही नहीं, जिसकी किडनी देने के बाद डोनर की सेहत पर कोई असर पड़े। लेकिन जब किसी शख्स को किडनी मिल जाती है तो उस शख्स की ही नहीं, बल्कि उस परिवार की भी ज़िंदगी बदल जाती है।
अमूमन किडनी ट्रांसप्लांट की स्थिति तब बनती है जब उस शख्स की दोनों किडनियां करीब-करीब फेल हो चुकी हों या इतना फिल्ट्रेशन भी न करती हों कि शख्स का काम किसी तरह चल सके। अगर डायलिसिस पर है तो हफ्ते में 2 से 4 दिनों तक डायलिसिस की ज़रूरत हो सकती है। डायलिसिस की पूरी प्रक्रिया और घर से आने-जाने का वक्त भी जोड़ लें तो 5 से 6 घंटे का वक्त तो लग जाता है। साथ ही परिवार के किसी शख्स को भी साथ जाना पड़ता है। परिवार में अक्सर तनाव का माहौल रहता है। लेकिन अगर वही शख्स बेहतर ज़िंदगी जीकर परिवार पर बोझ न बने, उसके घर वाले उसे हमेशा खुश देख सकें, इसके लिए ट्रांसप्लांट ज़रूरी हो जाता है।
एक डेटा के अनुसार, हमारे देश में हर साल 12000 से ज्यादा किडनी ट्रांसप्लांट होते हैं। वैसे सुनने में यह जितना सामान्य लगता है, प्रक्रिया उतनी ही जटिल होती है। यह जटिलता जितनी किडनी देने वाले या फिर लेने वाले के लिए होती है, उतनी ही डॉक्टर और उनकी टीम के लिए भी होती है। करीब 40-40 तरह के टेस्ट डोनर और किडनी पाने के इच्छुक, दोनों के कराए जाते हैं। इन टेस्ट के द्वारा यह देखा जाता है कि जो किडनी ज़रूरतमंद को लगाई जाएगी, उसे स्वीकार करने में शरीर को कोई समस्या तो नहीं होगी। साथ ही यह भी टेस्ट का अहम हिस्सा होता है कि डोनर को ट्रांसप्लांट के बाद अपनी आम ज़िंदगी जीने में परेशानी न हो। उसे 70-80 साल तक जीने में कोई दिक्कत न हो। सच तो यह है कि किडनी ट्रांसप्लांट में लेने वाले से ज्यादा अहम देने वाला होता है। डॉक्टर की पहली प्राथमिकता होती है डोनर की हेल्दी लाइफ पर जरा भी असर न हो। वह आगे सामान्य ज़िंदगी जिए। वहीं एक सवाल यह भी कि आखिर किडनी की अहमियत इतनी क्यों है?
किडनी है शरीर की छन्नी
‘गुर्दे को मजबूत कर लें।’ शायद आपने भी सुना हो। दरअसल, किडनी जिसे हिंदी में गुर्दा कहते हैं, पूरे शरीर में बनने वाले खराब पदार्थों को खून से साफ कर खून को शुद्ध करता है। यह भी हार्ट की तरह 24 घंटे काम करता रहता है। जब हम नींद में होते हैं तब भी यह खून को फिल्टर करता रहता है। दरअसल, किडनी ब्लड वेसल्स (खून की नलियों) का गुच्छा है। जो चीज़ें खून की नलियों के लिए खतरनाक हैं, वही चीज़ें किडनी के लिए भी नुकसानदायक हैं।
यह है किडनी का काम
- शरीर में 2 किडनी होती हैं। इनका आकार 10-11cm होता है। ये शरीर से यूरिन फिल्टर करती है।
- कोई सेहतमंद शख्स एक दिन में 4 से 5 बार यूरिन जाता है। रात में सोने के बाद नहीं जाता या ज्यादा से ज्यादा 1 बार जाता है। शरीर औसतन एक से डेढ़ लीटर यूरिन हर दिन शरीर से बाहर निकलता है।
डोनर की सेहत प्राथमिकता
इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि एक मरीज को ठीक करके दूसरे को मरीज नहीं बनाना है। इसी थीम पर काम किया जाता है। कई तरह के टेस्ट, फैमिली हिस्ट्री, आगे किस तरह की बीमारियों की आशंका है, डोनर इस ऑपरेशन के लिए तैयार है या नहीं, यह भी देखना होता है। सच तो यह है कि ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में अगर किसी शख्स की सेहत को डॉक्टर सबसे पहले रखते हैं तो वह है डोनर। डॉक्टर एक को बेहतर करने के चक्कर में दूसरे को बीमार नहीं करते। डॉक्टर इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि डोनर शुगर, बीपी आदि का पेशंट न हो। उसे कोई दूसरी परेशानी न हो। डॉक्टर यह भी कैलकुलेट करते हैं कि डोनर की उम्र कितनी है और आगे किस तरह की बीमारी का रिस्क हो सकता है? अगर डोनर 20 साल का हो तो यह भी देखना होता है कि कम से कम अगले 50 साल तक उसकी एक किडनी तो चलनी ही चाहिए। जब ऐसे तमाम सवालों के जवाब पॉजिटिव आते हैं तभी डोनर से किडनी डोनेट करने को कहा जाता है।
किसकी लाइफ कैसी
डोनर
- जितनी ज़िंदगी पहले से तय है। 70-80 साल या इससे भी ज्यादा ज़िंदगी रहेगी।
- सर्जरी के बाद अमूमन दवा बंद कर दी जाती है। हां, ऐंटीबायोटिक कुछ दिन और चल सकता है।
- साल में एक बार चेकअप से ही काम चल जाता है।
- डाइट सामान्य रखनी है। नशा, प्रोसेस्ड फूड से बचना है जो दूसरे लोगों के लिए भी नुकसानदायक हैं। मैराथन वाली लंबी दौड़ से बचने की ज़रूरत हो सकती है, बाकी बदलाव की ज़रूरत नहीं होती।
मरीज
- 8 से 10 साल या कई बार 20 साल से भी ज्यादा समय तक किडनी चल सकती है।
- सर्जरी के बाद भी कुछ महीने या फिर आगे भी दवाई खानी पड़ सकती है।
- रेग्युलर हेल्थचेकअप कराना ज़रूरी है। डॉक्टर के संपर्क में रहना है।
- डाइट में आगे भी परहेज की ज़रूरत होती है। कई चीज़ों को त्यागना पड़ता है।
- सामान्य तरीके से ही वॉक करना है।
अभी से सचेत होकर किडनी की परेशानी
से ऐसे बचें…
यह इंतजार नहीं किया जा सकता कि जब किडनी खराब हो जाएगी तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की तैयारी करेंगे। अगर अभी से कुछ बातों का ध्यान रखें तो चीज़ें बेहतर हो सकती हैं।




