किसान की किडनी गई …महाराष्ट्र की आबरू गई!

देश में मोदी सरकार हमेशा ‘पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था’ के बड़े-बड़े शिगूफे छोड़ती रहती है। लेकिन महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले की एक खबर ने मन को सुन्न करते हुए इन शिगूफों की हवा निकाल दी है। एक किसान को साहूकार का कर्ज चुकाने के लिए अपनी किडनी बेचनी पड़ी। यह अमानवीय घटना विदर्भ क्षेत्र से आई है, जहां से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आते हैं। इस किसान का नाम रोशन सदाशिव कुडे है। रोशन के पास नागभिड़ तालुका के मिंधुर गांव में चार एकड़ जमीन है। उनका पूरा परिवार इसी जमीन पर गुजर-बसर करता है। कुछ साल पहले उन्होंने ब्रह्मपुर के एक साहूकार से सिर्फ एक लाख रुपए का कर्ज लिया था। हालांकि, वह ब्याज चुकाए जा रहा था, लेकिन मूलधन कम नहीं हो रहा था। आखिर एक लाख रुपए का कर्ज कितना बढ़ सकता है? यदि कुछ हजारों का ब्याज मान लिया जाए और उसे समय पर नहीं चुकाने पर १ लाख का कर्ज ज्यादा से ज्यादा कितना हो सकता है दो लाख या तीन लाख, लेकिन पैसे के लालची साहूकारों ने इस गरीब किसान पर भयानक चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर एक लाख के ऋण को ७४ लाख तक बढ़ा दिया। प्रकृति की अनियमितताओं के कारण खेती लाभदायक न होने के चलते, रोशन कुडे ने खेती के साथ पूरक व्यवसाय करने के लिए दो गायें खरीदीं। इसके लिए उसने साहूकारों से प्रत्येक गाय के लिए ५०-५० हजार का ऋण लिया था। रोशन का दुर्भाग्य था कि ये दोनों गायें थोड़े ही समय में मर गईं। खेत से कोई आमदनी नहीं हुई और गाय खरीदने के लिए लिया गया ऋण पहाड़ बन गया। साहूकार और उनके आदमी बार-बार घर आते और उसके साथ बदतमीजी करते। जब वह परिवार के सामने लगातार अपमान सहन नहीं कर सका, तो उसने अपने चार एकड़ खेत में से दो एकड़ बेच दिए और साहूकारों का ब्याज चुका दिया, लेकिन साहूकारों का लालच नहीं रुका। ट्रैक्टर और
घर के छोटे-बड़े सामान
अपनी सारी संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने के बाद भी साहूकारों के ब्याज का चाबुक रुका नहीं। साहूकार १ लाख रुपए पर प्रतिदिन १०,००० रुपए का भयानक ब्याज वसूलते रहे। किसान से लाखों रुपए वसूलने के बाद भी साहूकार संतुष्ट नहीं हुए। किसान को अपनी सख्ती के डर से मनचाहा ब्याज देते देख साहूकारों के भीतर राक्षस जाग उठा और उनमें से एक ने उसे गुर्दा बेचकर कर्ज चुकाने की सलाह दी। साहूकारों के डर से किसान गुर्दा बेचने को तैयार हो गया। पहले उसे एक एजेंट के माध्यम से कोलकाता ले जाया गया, जहां उसकी जांच की गई और फिर उसे देश से बाहर ले जाकर कंबोडिया में उसकी सर्जरी की गई, जहां उसका गुर्दा निकाल लिया गया। गुर्दा ८ लाख रुपए में बेचकर साहूकारों को देने के बाद भी साहूकार पैसे की मांग करते रहे। खेत गया। गुर्दा गया। लेकिन कर्ज और ब्याज के फंदे से साहूकार उसे छोड़ने को तैयार नहीं थे। तब किसान ने हताशा में कहा, ‘अब मैं अपने परिवार के साथ मंत्रालय में आत्मदाह करूंगा, तभी जाकर यह कर्ज का जाल मेरे पीछे से छूटेगा।’ उन्हें पहले पुलिस के पास जाने पर भी न्याय नहीं मिला। हालांकि, गुर्दा निकल जाने के बाद चंद्रपुर के पुलिस अधीक्षक ने किसान की शिकायत का संज्ञान लिया और चार साहूकारों- किशोर बावनकुले, लक्ष्मण उरकुडे, रामभाऊ बावनकुले और संजय बल्लारपुरे को गिरफ्तार किया। एक गरीब किसान का जीवन बर्बाद होने के बाद पुलिस जागी, लेकिन अगर पुलिस समय रहते जाग जाती और ‘भाईगीरी’ करनेवाले बावनकुले की सही वक्त पर
मुश्कें कस ली
होती तो किसान रोशन कुडे की किडनी बच जाती। कर्ज और ब्याज के बोझ तले किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आज देशभर में किसानों पर १२ लाख करोड़ रुपए का कर्ज है, जबकि महाराष्ट्र में किसानों पर ८ लाख ३८ हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। कर्ज चुकाने का दबाव शुरू होते ही किसान हताश हो जाते हैं और या तो वे फांसी लगा लेते हैं या जहरीली दवा का सेवन कर मौत को गले लगाते हैं। विडंबना देखिए, केंद्र सरकार, जिसने उद्योगपतियों के अरबों रुपए के कर्ज माफ किए हैं, किसानों को कर्ज माफी देकर इस संकट से बाहर निकालने में मदद नहीं कर रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने चुनाव से पहले महाराष्ट्र के किसानों के कर्ज माफ करने का वादा किया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री कर्ज माफी के बारे में भूल गए हैं। किसानों पर बैंक का कर्ज तो है; लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए सबसे बड़ा खतरा साहूकारों का है। बैंक से लिए गए कर्ज से भी ज्यादा, साहूकारों से लिए गए कर्ज ही किसानों की आत्महत्याओं का सबसे बड़ा कारण हैं। इसीलिए जब स्व. आर.आर. पाटील गृह मंत्री थे, तब उन्होंने किसानों को सताने वाले साहूकारों को जड़ से उखाड़ फेंकने का वादा किया था। लेकिन गृह मंत्रालय की यह धमक अब फीकी पड़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में साहूकारों का आतंक और चक्रवृद्धि ब्याज वसूली प्रणाली एक बार फिर बेकाबू हो गई है। मानवता को कलंकित करनेवाले साहूकारों ने किसान रोशन कुडे को ब्याज के लिए अपनी किडनी बेचने पर मजबूर कर दिया। एक लाख के कर्ज को ७४ लाख तक ले जाकर लूट करना घोर दरिंदगी काr हद है। यह महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्य के लिए कलंक है। ब्याज के लिए किसान की किडनी का बिकना, महाराष्ट्र की आबरू चले जाने जैसी है। क्या ‘खोकेशाही’ में लिप्त राज्य सरकार को इस पर शर्म नहीं आती?




