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ग्रामीण आर्थिकी मजबूत करेगा जी राम जी

औपचारिक ऋणों के लिए बेहतर प्रोत्साहन और डिजिटल उपकरणों से लैस बैंक प्रतिनिधियों को ग्रामीण परिवारों और संस्थानों के बीच समन्वय का माध्यम बनाया जाना होगा। नए कानून से ग्रामीण आर्थिकी मजबूत होने की उम्मीद है…

यकीनन इस समय देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए दो महत्वपूर्ण परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहे हैं। एक, ग्रामीण भारत में बढ़ती हुई आमदनी और बढ़ती हुई खपत के बीच ग्रामीण गरीबी में लगातार कमी आ रही है। दो, हाल ही में 16 दिसंबर को सरकार के द्वारा संसद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को रद्द करने और इसकी जगह ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार ऐंड आजीविका मिशन (ग्रामीण), यानी वी बी जी राम जी नामक नया ग्रामीण रोजगार कानून लाने संबंधी स्वीकृत किया गया विधेयक कानून बनने के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हुए दिखाई देगा। गौरतलब है कि इस समय ग्रामीण भारत भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रहा है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में ग्रामीण भारत का योगदान बढ़ता जा रहा है। भारत ने 2024-25 में 35.77 करोड़ टन अनाज पैदा करके एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया है। पिछले दस सालों में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 10 करोड़ टन बढ़ा है। ये खेती में आत्मनिर्भरता और गांवों के विकास की तरफ देश की लगातार बढ़ती प्रतिबद्धता को दिखाता है। हाल ही में 11 दिसंबर को राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के द्वारा जारी आठवें चरण के ग्रामीण आर्थिक स्थिति एवं भावना सर्वेक्षण (आरईसीएसएस) में बताया गया है कि देश में पिछले एक साल में ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढऩे से खर्च करने की क्षमता और इच्छा दोनों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। सर्वे के मुताबिक 80 फीसदी ग्रामीण परिवारों के द्वारा पिछले एक साल में अपनी खपत में वृद्धि की सूचना दी गई है। नाबार्ड के सर्वे में यह उभरकर सामने आया है कि अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में खपत इतनी तेज रफ्तार से कभी नहीं बढ़ी है।

सर्वे यह भी बताता है कि निवेश और औपचारिक ऋण में भी रिकॉर्ड तेजी दर्ज की गई है जो बढ़ती आय के समानुपातिक मानी जा सकती है। 29.3 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने पिछले एक साल में पूंजीगत निवेश (खेती और गैर-खेती दोनों क्षेत्रों में) बढ़ाया है। केवल औपचारिक स्त्रोतों (बैंक, सहकारी संस्थाएं आदि) से कर्ज लेने वाले परिवारों का हिस्सा 58.3 फीसदी हो गया, जो सितंबर 2024 के 48.7 फीसदी था। वस्तुत: ग्रामीण भारत में बढ़ती क्रयशक्ति, वास्तविक आय वृद्धि, जीएसटी सुधार, कम महंगाई और मजबूत सरकारी समर्थन का संयुक्त परिणाम है। नि:संदेह गांवों में सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं। गांवों में भविष्य की आर्थिक स्थिति को लेकर विश्वास बढऩे, ग्रामीण गरीबी में कमी, छोटे किसानों की साहूकारी कर्ज की निर्भरता में कमी, ग्रामीण खपत में वृद्धि, किसानों का जीवन स्तर बढऩे जैसी विभिन्न अनुकूलताओं से ग्रामीण भारत मजबूती की राह पर आगे बढ़ रहा है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) रिसर्च के द्वारा गरीबी पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है। जहां वर्ष 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 प्रतिशत और शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घटकर 4.86 प्रतिशत और शहरी गरीबी घटकर 4.09 प्रतिशत पर आ गई है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि वर्ष 2019 से शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना देश के करोड़ों छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय मजबूती देते हुए दिखाई दे रही है। देश के गांवों में अप्रैल 2020 से शुरू की गई पीएम स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीणों को उनकी जमीन का कानूनी हक देकर उनके आर्थिक सशक्तिकरण का नया अध्याय लिखा जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिक ऋण व्यवस्था ने अच्छी प्रगति की है। गांवों में बैंक शाखाओं की संख्या मार्च 2010 के 33378 से बढक़र दिसंबर 2024 तक 56579 हो गई।

साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), कृषि इंफ्राक्ट्रक्चर फंड, सहकारी समितियों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था आदि प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। अब संसद में स्वीकृत किए गए वी बी जी राम जी विधेयक के कानून बनने के बाद ग्रामीण रोजगार योजना में बड़ा बदलाव आएगा। प्रत्येक परिवार के लिए रोजगार गारंटी कार्य दिवसों को 100 से बढ़ाकर 125 करने और मौजूदा फंडिंग संरचना को बदलने का प्रस्ताव है। केंद्र और राज्यों के बीच फंडिंग की हिस्सेदारी मौजूदा अधिकतम 90 : 10 अनुपात के मुकाबले 60 : 40 के अनुपात में होगी। मसौदा विधेयक में एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में कार्य कर रही मनरेगा को एक केंद्रीय क्षेत्र योजना में बदल दिया गया है। ग्रामीण रोजगार स्वाभाविक रूप से स्थानीय है और राज्यों को अब लागत और जिम्मेदारी साझा करनी होगी। ग्राम पंचायत योजनाओं के माध्यम से विकास योजनाएं, क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूप तैयार किए जाएं। राज्य सरकारें किसी वित्तीय वर्ष में 60 दिनों (दो महीने) की अवधि को, जो बोआई और कटाई वाले मौसम में होगा, पहले से अधिसूचित करेंगी और इस दौरान अधिनियम के तहत कोई काम नहीं किया जाएगा। इससे बोआई या कटाई के दौरान श्रम की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। साथ ही मजदूरी में वृद्धि को रोका जा सकेगा जो खाद्य कीमतों को बढ़ाती है। श्रमिकों को बाकी 300 दिनों में अब भी रोजगार के लिए 125 गारंटी वाले दिन मिलेंगे। इससे किसानों और श्रमिकों दोनों को लाभ होगा। निश्चित रूप से केंद्र सरकार अब जी राम जी के तहत ऐसे मॉडल की स्थापना करने जा रही है, जिससे गांव के स्तर पर विकास कार्यों की दिशा तय हो। जिन चार प्राथमिकताओं का जिक्र किया गया है, उनमें जल सुरक्षा मुख्य ग्रामीण बुनियादी ढांचा, आजीविका से जुड़े बुनियादी ढांचे और मौसमी घटनाओं के लिए विशेष कार्य शामिल हैं।

इनके तहत रोजगार और विकास कार्यों के क्षेत्र भी सुनिश्चित किए गए हैं। ऐसे में गांवों के लिए एकीकृत ढांचा तैयार करने से देशभर में उत्पादक, टिकाऊ, सुदृढ़ और बदलाव में सक्षम ग्रामीण परिसंपत्तियों का निर्माण सुनिश्चित होगा। विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं को ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम जैसी तकनीक का इस्तेमाल करके तैयार किया जाएगा और पीएम गति-शक्ति के साथ इस योजना को जोड़ा जाएगा। रोजगार योजना में मजदूरों के बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन और निगरानी, मोबाइल-आधारित रिपोर्टिंग के साथ सोशल ऑडिट तंत्र शामिल हैं। प्रत्येक स्तर पर गड़बड़ी रोकने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग किया जाएगा। लेकिन जीराम जी के कानून बनने के बाद भी हमें ग्रामीण भारत के विकास और किसानों की प्रगति के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। गांवों में साहूकारों और अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता घटाने के लिए बैंक शाखा विस्तार के अलावा नई रणनीति के तहत दूसरे कदम उठाने की जरूरत है। सरकार ने किसानों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए जो कानून बनाए हैं, उन कानूनों के पर्याप्त परिपालन पर ध्यान देना होगा। छोटे ऋणों और कम अवधि के ऋण वाली कई योजनाएं तैयार करके साहूकारों पर निर्भरता कम की जाना होगी। ग्रामीण ऋण लागत कम करने और विश्वास बढ़ाने के लिए तकनीक का लाभ उठाया जाना होगा। औपचारिक ऋणों के लिए बेहतर प्रोत्साहन और डिजिटल उपकरणों से लैस बैंक प्रतिनिधियों को ग्रामीण परिवारों और संस्थानों के बीच समन्वय का माध्यम बनाया जाना होगा। नए दौर की कौशल युक्त शिक्षा तथा ग्रामीण बेरोजगारी जैसी चुनौतियों के निराकरण के लिए अधिक रणनीतिक प्रयास किए जाने होंगे। उम्मीद करें कि सरकार ग्रामीण भारत में बढ़ती हुई आमदनी और बढ़ती हुई खपत के सुकूनदेह परिदृश्य के बीच जो कानून लाने जा रही है, उससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकेगी।

डा. जयंती लाल भंडारी

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