झूठ की पोल खुलने के बाद

अंतत: अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप के झूठ की कलई खुल गई। अमरीका के चंपू देश पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने ही राष्ट्रपति टं्रप को बेनकाब कर दिया कि युद्धविराम को लेकर भारत ने तीसरे देश की मध्यस्थता मंजूर नहीं की थी। भारत ने इसे द्विपक्षीय मामला माना। ‘अल जजीरा’ के साथ साक्षात्कार के दौरान पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री मुहम्मद इशाक डार ने कहा था-‘10 मई को जब रूबियो (अमरीका के विदेश मंत्री) के जरिए सीजफायर का प्रस्ताव आया था, तो मुझे बताया गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तटस्थ जगह पर बातचीत होगी। लेकिन जब 25 जुलाई को वॉशिंगटन में रूबियो से मुलाकात हुई, तो मैंने पूछा कि बातचीत का क्या हुआ? तो उन्होंने कहा-भारत इसे द्विपक्षीय मामला मानता है।’ इस साक्षात्कार से ही साफ है कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम में अमरीकी राष्ट्रपति की कोई भूमिका नहीं थी। यह भी स्पष्ट हो गया कि भारत द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे की मध्यस्थता न तो स्वीकार करता है और न ही उसकी नीति है। बेशक 10 मई से लेकर हालिया दिनों तक राष्ट्रपति टं्रप लगातार दावा करते रहे हैं कि उनके प्रयास से युद्धविराम हो गया। दोनों देशों ने समझदारी और बुद्धिमानी से काम किया और संभावित ‘न्यूक्लियर वॉर’ टल गया। भारत ने लगातार इस बड़बोलेपन का खंडन किया। संसद के भीतर भी इन दावों को खारिज किया गया। शायद यही बुनियादी वजह हो सकती है कि राष्ट्रपति टं्रप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच 90 दिनों तक कोई संवाद नहीं हुआ। 17 जून के बाद यह अबोला टूटा और टं्रप ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन पर जन्मदिन की बधाई दी। यह भी कहा कि वह बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने जवाब में जो कुछ कहा, वह उन्होंने साझा किया है-‘मेरे मित्र, राष्ट्रपति टं्रप, मेरे जन्मदिन पर आपके फोन कॉल और गर्मजोशी भरी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद। आपकी तरह, मैं भी भारत-अमरीका व्यापक और वैश्विक साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हूं।’ बहरहाल झूठ की कलई तो नेपथ्य में चली गई, लेकिन दो विश्व नेताओं की आपसी बातचीत ने संबंधों के रास्ते फिर साफ किए हैं। भारत पर अमरीका के 50 फीसदी टैरिफ के बाद ‘व्यापार समझौते’ की बातचीत भी बंद हो गई थी, लेकिन 16 सितंबर, मंगलवार, को अमरीका के व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच नई दिल्ली में थे। उन्होंने केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के विशेष प्रतिनिधि राजेश अग्रवाल के साथ करीब 7 घंटे तक बातचीत की। दोनों ने बातचीत को ‘सकारात्मक’ करार दिया। तय है कि ‘व्यापार समझौते’ की बातचीत पटरी पर आ गई है। हालांकि इसे समझौते के आधिकारिक संवाद का छठा चरण घोषित नहीं किया गया है। लेकिन इन तमाम बदलावों से अमरीका का नरम रुख और सकारात्मक साझेदारी की एक और शुरुआत स्पष्ट हुई है। यदि अमरीकी प्रतिनिधि वॉशिंगटन से उड़ कर नई दिल्ली में आया है, तो कमोबेश गपशप करने या हल्की-फुल्की बातें करने तो नहीं आया है। लिहाजा हम इस बातचीत को भी महत्वपूर्ण मानते हैं। हालांकि अमरीका का लक्ष्य अब भी वही है, जो मई-जून-जुलाई के संवाद-चरणों के दौरान उजागर हुआ था। अमरीका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक का सवाल समझ में आता है-‘भारत के 140 करोड़ से अधिक लोग अमरीकी मक्का का एक बुशेल, यानी 32 सेर, क्यों नहीं खरीद सकते? अमरीका भारत के कृषि क्षेत्र में व्यापार की अनुमति लगातार मांग रहा है। यह व्यापार समझौते का एक बड़ा पेंच भी है। भारत लगातार इंकार कर रहा है, क्योंकि उसे अपने किसानों, डेयरीवालों की चिंता है। टैरिफ के बावजूद भारत का निर्यात 7 फीसदी बढ़ा है और आयात 10 फीसदी कम हुआ है। टैरिफ से भारत बिल्कुल प्रभावी नहीं है, ऐसा नहीं है। आंध्रप्रदेश में झींगा मछली के कारोबारियों को करीब 25,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है, क्योंकि उनके निर्यात के 50 फीसदी ऑर्डर रद्द कर दिए गए हैं। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने यह मुद्दा केंद्र के साथ साझा किया है कि झींगा निर्यातकों की मदद की जाए। बहरहाल भारत-अमरीका के बीच जो खिडक़ी खुली है, उससे अब ठंडी हवा ही आनी चाहिए। नेतागण अनाप-शनाप दावे करते रहे हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंध बिगडऩे नहीं चाहिए।




