संपादकीय

ट्रंप ने फोड़ा परमाणु बम!

नोबेल शांति पुरस्कार की चाहत रखने वाले और तमाम झूठ-प्रपंच का सहारा लेने वाले अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप क्या सार्वजनिक बयान देकर दुनिया को बताएंगे कि अमरीका ने एक और परमाणु बम परीक्षण किया है? परमाणु परीक्षण 19-21 अगस्त के बीच किया गया, जबकि अलास्का में 15 अगस्त को राष्ट्रपति टं्रप और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात हुई और लंबी बातचीत भी हुई, लेकिन 14 नवंबर को यह खबर सामने क्यों लाई गई कि अमरीका ने नेवादा के मरुस्थली रेत वाले टोनोपा टेस्ट रेंज में परमाणु बम का परीक्षण किया? तीन महीने तक परीक्षण को छिपा कर क्यों रखा गया? परीक्षण किए गए बम को बी 61-12 ग्रेविटी परमाणु बम नाम दिया गया है। यह जापान के हिरोशिमा पर 1945 में गिराए गए एटम बम से 24 फीसदी अधिक ताकतवर बम बताया जा रहा है। हिरोशिमा बम हमले में 1.40 लाख लोग मारे गए थे। करीब 38,000 बच्चों की भी अकाल मौत हुई थी। 1945 के बाद एक बेहद लंबा वक्त बीत चुका है। क्या अमरीका ने परमाणु परीक्षण कर एक बार फिर परमाणु हथियारों की होड़ शुरू कर दी है और दुनिया को ‘परमाणु युद्ध’ के मुहाने पर ला खड़ा किया है? बीते दिनों रूस ने बुरिवेस्निक और पोसाइडन सरीखी विनाशकारी मिसाइलों के परीक्षण किए थे, तो राष्ट्रपति टं्रप ने कड़ी आलोचना की थी और अमरीका द्वारा परमाणु परीक्षण करने की लगातार धमकी दी थी। राष्ट्रपति टं्रप ने यहां तक बयान दिया था कि रूस, चीन, उत्तरी कोरिया, पाकिस्तान जैसे देश लगातार परमाणु परीक्षण कर रहे हैं और ये परीक्षण भूमि के नीचे किए जाते हैं। यदि जमीन हिलती है, तो उसे भूकंप करार दिया जाता है। बहरहाल यह सच अब सामने आया है कि अमरीका तो अगस्त में ही परमाणु बम का परीक्षण कर चुका है और परीक्षण के वीडियो ‘पेंटागन’ को भेजे गए हैं। यह परीक्षण राष्ट्रपति टं्रप की अनुमति के बाद ही किया गया है। यह कथित परमाणु बम एफ-35 लड़ाकू विमान से गिराया गया और एरिया-51 में ‘सीक्रेट टेस्ट’ किया गया, जो पूर्णत: सफल रहा। यही नहीं, एटम बम के उपकरणों के भी परीक्षण किए गए। अमरीका ने 1992 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। उससे पहले 1990 में सोवियत संघ परमाणु परीक्षण कर चुका था।

1996 में चीन और फ्रांस ने अपने परमाणु परीक्षण किए। भारत और पाकिस्तान ने मई, 1998 में परीक्षण किए। उसी दौर में परमाणु परीक्षण पर व्यापक और आंशिक प्रतिबंध लगाने वाली संधियां हुईं, हालांकि भारत ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए। बहरहाल अमरीका के पास तो 1945 में ही ऐसा एटम बम था, जिसने हिरोशिमा और नागासाकी सरीखे जापानी शहरों को मिट्टी-मलबा बना दिया था। लाखों मासूम और अकाल मौतें हुईं और कई पीढिय़ों तक उस परमाणु हमले के प्रभाव देखे गए। पीढिय़ां विकलांग और बीमार पैदा होती रहीं, लिहाजा सवाल बेहद गंभीर और संवेदनशील है कि यदि 33 लंबे सालों के बाद अमरीका ने परमाणु बम का परीक्षण किया है, तो मौजूदा दौर में परमाणु बम कितना विनाशकारी, नरसंहारी साबित हो सकता है? सन्नाटे और रेत के मैदानों के बीच किए गए इस परीक्षण को ‘ऑपरेशन शैडो ड्रॉप’ कूटनाम दिया गया। सवाल है कि क्या अमरीका ने तमाम परमाणु अप्रसार संधियों को ठेंगा दिखाया है? आंशिक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (एलटीबीटी), व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) मुख्य संधियां हैं। अमरीका और रूस ने इन पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि भारत ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि वह संधि को भेदभावपूर्ण मानता रहा है। रूस ने 2023 में सीटीबीटी से अपना समर्थन वापस ले लिया था। 1945 से लेकर 1996 तक 2000 से अधिक परमाणु परीक्षण किए गए, जिनमें अमरीका ने 1032 और सोवियत संघ ने 715 परीक्षण किए। 1996 के बाद संयुक्त राष्ट्र ने भी सीटीबीटी को अपनाया। इस पर 187 देशों ने हस्ताक्षर किए और 178 देशों ने इसका अनुमोदन किया। जब तक 44 विशिष्ट देश संधि का अनुमोदन नहीं करते, तब तक यह लागू नहीं हो सकती। अभी तक विशिष्ट 8 देशों ने इसका अनुमोदन नहीं किया है, लिहाजा यह संधि आज भी अधूरी है।

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