संपादकीय

 दुख पीड़ा हर ले…!

दिवाली का आनंदमय और जीवंत त्योहार शुरू हो गया है। १८ अक्टूबर को धनतेरस मनाया गया। घर-घर में धन और धन्वंतरि की पूजा की गई। आज अभ्यंगस्नान नरक चतुर्दशी मनायी गयी। कल से तीन दिनों तक लक्ष्मी पूजा, पड़वा और भाई दूज भी उसी उत्साह के साथ मनाया जाएगा। इस वर्ष दिवाली पांच दिनों की है इसलिए ये पांच दिन रोशनी, कंदील (आकाशदीप), आतिशबाजी, नए सामान, कपड़ों की खरीदारी, बाजारों में रौनक और उद्योग-धंधों से जगमगाते रहेंगे। दिवाली एकमात्र ऐसा त्योहार है, जो अमीर से लेकर गरीब तक और बंगलों से लेकर झोपड़ियों तक, हर जगह समान उत्साह के साथ मनाया जाता है। अमीर हों, नौकरीपेशा हों या दिहाड़ी मजदूर गरीब, सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार दिवाली मनाते हैं, लेकिन सभी का उत्साह कम या ज्यादा नहीं होता। इसीलिए दिवाली हिंदू त्योहारों में अद्वितीय असाधारण है। वास्तव में, देश और महाराष्ट्र में सब कुछ ऑल-वेल है, खुशियां ही खुशियां हैं, ऐसे हालात नहीं हैं। महंगाई ने आम आदमी के लिए अपने परिवार की गाड़ी खींचना मुश्किल बना दिया है। हालांकि, सरकार रोजगार पर नए आंकड़े दे रही है, लेकिन वास्तविकता में बेरोजगारी की
ज्वलंत सच्चाई से
युवाओं के जीवन में अंधकार छा गया है। ऐसी अनगिनत समस्याओं के साथ, महाराष्ट्र पर इस वर्ष भीषण अति वृष्टि का संकट भी टूट पड़ा है। इसमें कृषि और किसान पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। इस आपदा और राज्य सरकार के नाकारेपन का साया इस वर्ष की दिवाली पर भी पड़ा है। एक ओर आसमानी तो दूसरी ओर राज्य सरकार का सुलतानी प्रशासन दोहरे संकट में अन्नदाता की दिवाली फंस कर रह गई है। खरीफ की फसल, जो हाथ में आनेवाली थी, भारी बारिश में बह गई। लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि बह जाने के बाद रबी की फसल, खरीफ के लिए लिए गए ऋण वैâसे चुकाए जाएंगे और आनेवाले दिनों में परिवार का गुजारा वैâसे होगा? ऐसे बड़े सवाल आज अन्नदाता के सामने मुंह बाए हैं। जिस सरकार को इन सवालों के जवाब देने थे, उन्हें इस भयानक संकट से उबारने में मदद करनी थी, वह केवल आर्थिक मदद की घोषणाएं और वादे कर रही है इसलिए, सरकार की यह घोषणा कि ‘भारी बारिश से प्रभावित प्रत्येक किसान को दिवाली से पहले मुआवजा दिया जाएगा’ कोरी गप साबित हुई है तो दिवाली वैâसे मनाएं? यह सवाल
अन्नदाता के सामने
खड़ा है, लेकिन आमजनों में एकमात्र दिवाली ही यह उम्मीद और ऊर्जा जगाती है कि कम से कम इन पांच दिनों में कुटुंब-परिवार परिजनों के छोटे-मोटे बच्चों का मुंह मीठा कराया जाए तो अतिवृष्टि से प्रभावित बलिराजा भी इसका अपवाद वैâसे हो सकता है, लेकिन इन अक्षम शासकों की क्या बात करें? उस केंद्र सरकार का क्या जिक्र करें, जिसने इस संकट के समय महाराष्ट्र को आर्थिक सहायता नहीं दी? अगर सरकार ने वादे के मुताबिक, दिवाली से पहले किसानों को मुआवजा दे दिया होता तो राज्य के २९ जिलों के लाखों किसानों को ‘उधार लेकर- मांगकर’ दिवाली मनाने की नौबत ही नहीं आती। लेकिन जो सरकार खुद ही नौ लाख करोड़ रुपये के ‘कर्ज’ पर चल रही है वह राज्य के किसानों और आम लोगों की दिवाली वैâसे मीठी बना सकती है? भले ही अन्नदाता ने ‘उघारी’ तेल पर घर के दीये जलाकर इस साल की दिवाली ‘उज्ज्वल’ कर दी हो, लेकिन आगामी रबी का मौसम वैâसा होगा? सरकार का मुआवजा कब मिलेगा? ऐसे अनगिनत सवाल बने ही हैं, लेकिन हुक्मरानों के जवाब का इंतजार किए बिना जैसे-तैसे खुद ही अपने त्योहार में मिठास घोलना, ऐसा कब तक चलता रहेगा? यह दिवाली अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बने! यह दिवाली महाराष्ट्र की किसान विरोधी सरकार हर ले और यहां अन्नदाता का सच्चा राज लाए!

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