संपादकीय

नीतीशे सरकार, भ्रष्टाचार की बहार!

हम एक मुद्दत से बिहार के चुनावी हालात का विश्लेषण करना चाह रहे थे। बिहार में संभवत: नवम्बर में विधानसभा चुनाव होने हैं। कई मुद्दे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की दिवंगत मां को लेकर राजद के कार्यकर्ता 3-4 बार गालियां दे चुके हैं। कैसे लोग हैं? दो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और राहुल गांधी-‘वोट चोरी’ और बिहार के कथित अधिकार सरीखे मुद्दों पर यात्राएं संपन्न कर चुके हैं। बिहार देश का सबसे गरीब और पिछड़ा राज्य है, लेकिन राजनीतिक तौर पर बेहद सचेत और परिपक्व है। जातियों और सांप्रदायिकता में पूरी तरह विभाजित है। बिहार पर करीब 3.16 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। औसत प्रति व्यक्ति आय 3000 रुपए माहवार है। यानी 100 रुपए रोजाना…! यह तो गरीबी-रेखा से निचले और भी निचले स्तर की आय है। ऐसे राज्य में एक मंत्री पर 200 करोड़ रुपए के जमीन घोटाले के आरोप लगें और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खामोश रहें। जांच एजेंसियां निष्क्रिय रहें और एक अदद प्राथमिकी भी दर्ज न की जाए, तो आश्चर्य और क्षोभ की कोई सीमा नहीं रह जाती। ‘जन सुराज पार्टी’ के संस्थापक प्रशांत किशोर ने मंत्री अशोक चौधरी पर 200 करोड़ रुपए की जमीन के मामले में हेराफेरी के गंभीर आरोप लगाए हैं। पैसे और दस्तावेजों का उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट और बेटी के नाम किस तरह हस्तांतरण किया गया, उसके ब्यौरे भी प्रशांत ने दिए हैं। कमाल है, किसी आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की नींद नहीं टूटी? मंत्री ने प्रशांत किशोर को 100 करोड़ रुपए की मानहानि का कानूनी नोटिस भिजवाया है। अदालत में 17 अक्तूबर को पेशी है। गंभीर आरोप भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर भी लगाए गए हैं कि उन्होंने एक मेडिकल कालेज पर कब्जा किया है। नीतीश सरकार में भाजपा कोटे के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर एक कांग्रेस नेता की हत्या के छींटे अब भी हैं। प्रशांत ने खुलासा किया है कि उनका असली नाम राकेश कुमार है। फिर नाम बदल कर सम्राट कुमार मौर्य किया गया और अब सम्राट चौधरी है। आखिर यह फ्रॉड क्यों करना पड़ा? मंत्री मंगल पांडे पर भी कर्ज लेने के घपले का आर्थिक आरोप है।

दिलचस्प यह है कि जनता दल-यू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार और भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह समेत एनडीए के कुछ नेताओं ने आरोपित मंत्रियों को सार्वजनिक तौर पर सफाई देने की मांग की है। अलबत्ता वे अपने पद छोड़ दें। ये बेहद गंभीर राजनीतिक बयान हैं। नीरज कुमार ने इसे ‘अग्निपरीक्षा’ का दौर माना है। सरकार, अदालत और आलाकमान क्या कार्रवाई करेंगे, यह दीगर बात है, लेकिन भ्रष्टाचार अचानक बिहार चुनाव का ‘धुरी मुद्दा’ बन गया है। नीतीश कुमार ‘सुशासन’ की राजनीति के प्रतीक माने जाते रहे हैं, लेकिन अब विपक्षी राजद कैग की रपट के आधार पर उनकी सरकार के खिलाफ 71,000 करोड़ रुपए की गड़बड़ के आरोप चस्पां कर रहा है। भाजपा पलटवार कर प्रशांत किशोर को बिहार का सबसे बड़ा ‘नटवरलाल’ करार दे रही है। एनडीए और इंडिया गठबंधन वाले दल एक-दूसरे को ‘जंगलराज’ का पर्याय करार दे रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी उद्घोष करते रहे हैं-‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा।’ वह एनडीए के शीर्षस्थ नेता हैं। चुनाव से ऐन पहले भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर आरोप लगे हैं, लिहाजा उनकी कार्रवाई की अपेक्षा यह देश करता है। बिहार में अदाणी समूह को 1000 से अधिक एकड़ ज़मीन मात्र 1 रुपए की लीज पर आवंटित की गई है। विपक्ष इसे भी बड़ा भ्रष्टाचार मान कर प्रचार कर रहा है। कमोबेश जनता को खुलासा किया जाए कि ऐसी जमीनें 1 रुपए की लीज पर क्यों दी जाती हैं? 1940 के बाद कांग्रेस ने अपनी सर्वोच्च संस्था ‘कांग्रेस कार्यसमिति’ की बैठक बिहार में की है और भ्रष्टाचार को भी ‘वोट चोरी’ की बुनियाद करार दिया है। यदि बिहार का चुनाव भ्रष्टाचार और बेरोजगारी पर ही लड़ा गया, तो हम इसे सकारात्मक, क्रांतिकारी, परिवर्तनकारी चुनाव मानेंगे। इनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, महंगाई, गरीबी सरीखे मुद्दे भी जोड़ दिए जाएं, तो बेशक कुछ सामाजिक बदलाव के आसार बन सकते हैं। अब देखना होगा कि इस चुनाव का क्या परिणाम निकलता है।

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