पाक यूनिवर्सिटी में संस्कृत की गूंज, आजादी के 77 साल बाद लाहौर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का बनी हिस्सा

एजेंसियां — इस्लामाबाद
पाकिस्तान की मशहूर लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (एलयूएमएस) के क्लासरूम में इन दिनों एक ऐसी भाषा गूंज रही है, जिसे सुनकर पहले तो यकीन करना मुश्किल लगता है। जी हां… आजादी के 77 साल बाद पहली बार इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान में संस्कृत आधिकारिक तौर पर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गई है। वे देववाणी, जिसे भारत में तो सदियों से पढ़ा जा रहा है, अब पाकिस्तानी छात्र बड़े शौक और जिज्ञासा से सीख रहे हैं। महज एक वीकेंड वर्कशॉप से शुरू हुई यह यात्रा अब चार क्रेडिट वाले पूर्ण कोर्स तक पहुंच चुकी है और आगे महाभारत व भगवद्गीता के अलग कोर्स भी आने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक एलयूएमएस अब महाभारत और भगवद्गीता पर भी अलग कोर्स शुरू करने की योजना बना रहा है।
गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर डा. अली उस्मान कासमी कहते हैं कि उम्मीद है इससे नई दिशा मिलेगी। 10-15 साल में पाक में पैदा हुए और पले-बढ़े गीता-महाभारत के अपने विद्वान देखने को मिलेंगे। उन्होंने बताया कि शुरू में सिर्फ वीकेंड प्रोग्राम था, जो स्टूडेंट्स, रिसर्चरों, वकीलों से लेकर आम लोगों तक सबके लिए खुला था। रिस्पॉन्स देखकर इसे नियमित डिग्री कोर्स बना दिया गया। अभी स्टूडेंट्स की तादाद कम है, लेकिन अगले कुछ सालों में बढऩे की पूरी उम्मीद है। आदर्श रूप से 2027 के वसंत ऋतु तक हम इसे एक साल का पूरा कोर्स बना देंगे।
शास्त्रीय भाषाओं में इनसानियत का ज्ञान छिपा
बताया गया कि इस पूरे प्रयास के केंद्र में फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज के सोशियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डा. शाहिद रशीद हैं। उनकी संस्कृत में दिलचस्पी एलयूएमएस के संपर्क करने से काफी पहले से थी। वह बताते हैं कि शास्त्रीय भाषाओं में इनसानियत का बहुत बड़ा ज्ञान छिपा है। मैंने पहले अरबी-फारसी सीखता रहा, फिर संस्कृत की तरफ आया।




