पीओके में ‘जय हिंद’

पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आजकल नारे लगाए जा रहे हैं-‘जय हिंद, जय हिंद।’ वहां के लोग पाकिस्तान की हुकूमत और फौज से इतने आजिज आ चुके हैं कि वे अब भारत में विलय चाहते हैं। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। पीओके में रोजी-रोटी, आम जिंदगी, रोजगार, महंगाई और संसाधनों की लूट के मद्देनजर आंदोलन चलाए जाते रहे हैं। हुकूमत को ज्ञापन भी दिए गए हैं, लेकिन अब वहां की अवाम विद्रोह पर उतर आई है। ऐसे भी नारे लगाए जा रहे हैं-‘यह जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है।’ विद्रोहियों ने फौज और पुलिस के वर्दीधारियों पर प्रतिघात भी किए हैं। बलूचिस्तान में फौज का अस्तित्व लंबे वक्त से बलूच लड़ाकों के रहम-ओ-कर्म पर है। हाल ही में क्वेटा में एक ताकतवर बम विस्फोट किया गया, जिसमें 10 मौतें हो गईं और कई घायल हुए। अब आसार पुख्ता होने लगे हैं कि पाकिस्तान का विभाजन अपरिहार्य है। पीओके और बलूच के अलावा खैबर और सिंध में भी आजादी के आंदोलन जारी हैं। पीओके के विद्रोही ‘आजाद’ होने पर आमादा हैं। बलूच अपनी ‘आजादी’ के लिए लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे अपने बेशकीमती खनिजों का सौदा, पाकिस्तानी हुकूमत के द्वारा, अमरीका या चीन के साथ, करने का धुर विरोध कर रहे हैं। बलूच इन प्राकृतिक संसाधनों को अपनी स्वाभाविक, अमूल्य संपदा मानते रहे हैं, लिहाजा सौदेबाज हुकूमत और फौज के चेहरों पर जानलेवा प्रहार भी करते रहे हैं। पीओके के संदर्भ में 1994 से कई बार हमारी संसद प्रस्ताव पारित कर चुकी है कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला कश्मीर भी हिंदुस्तान का अविभाज्य हिस्सा है। पाकिस्तान उसे लौटा दे। यह मुद्दा प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान भी उठाते रहे हैं। दरअसल भारत सैन्य कार्रवाई को ‘अंतिम विकल्प’ मानता है। पीओके स्वतंत्र भारत की सुबह में ही तत्कालीन सत्ताधीशों की ऐतिहासिक गलतियों की भी डरावनी याद को ताजा करता है।
यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अचानक युद्धविराम का फैसला नहीं करते, तो पीओके अस्तित्व में ही नहीं आता। नतीजतन करीब 72,935 वर्ग किमी क्षेत्रफल का भूभाग पाकिस्तान के कब्जे में ही रहा, जो आज भी यथावत है। बल्कि 42,735 वर्ग किमी का भूभाग आज भी चीन अधिकृत कश्मीर कहलाता है। उसमें अक्साई चिन आदि के क्षेत्र आते हैं। भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर 1,06,566 वर्ग किमी में है, जबकि इससे दोगुने क्षेत्र का विलय भारत में हुआ था। बहरहाल उस गलती के 78 लंबे साल गुजर चुके हैं। हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जयशंकर समय-समय पर बयान देते रहे हैं कि पीओके के निवासी, अपने विद्रोह के बूते, अपने आप हमारी तरफ लौट आएंगे। यह भरोसा भावुक और कहानीमय तो हो सकता है, लेकिन हम इसे बिल्कुल भी आसान नहीं मानते, क्योंकि वहां के क्षेत्रों में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बनाया जा रहा है। चीन अरबों रुपए खर्च कर चुका है और अपने इंजीनियरों और कर्मचारियों को भी मरवा चुका है। चीन के मंसूबे विस्तारवादी भी हैं। लिहाजा पीओके को बहुत मुश्किल लड़ाई लडऩी पड़ेगी। बेशक पाकिस्तान के पास सशस्त्र सेना भी है। वह आज भी बम गिरा कर या गोलीबारी में अपने ही मुल्क के लोगों को मार रहा है। याद रहना चाहिए कि अक्तूबर, 1947 में पाकिस्तान के फौजियों ने, कबायली के मुखौटे पहन कर, तत्कालीन कश्मीर रियासत पर हमला बोल दिया था। महाराजा हरिसिंह ने भारत सरकार से सुरक्षा की गुहार की थी, लिहाजा तय शर्तों के मुताबिक अक्तूबर, 1947 के अंत तक महाराजा ने विलय-पत्र पर दस्तखत कर दिए और जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। उस दौर में देश की 550 से ज्यादा रियासतों ने भी भारत में ही अपने विलय कर दिए थे। इस तरह भारत संघ की रचना हुई और देश में संप्रभुता, एकता, अखंडता का माहौल बना। अब पीओके भारत में विलय के लिए तड़प रहा है, लेकिन वहां हिंदुओं की आबादी मात्र 1000-1500 मानी जाती है। शेष आबादी मुसलमानों की है। कानूनन पीओके का शासन किसी के भी अधीन हो, लेकिन वहां 100 फीसदी दखल पाकिस्तान का है। यदि भारत को हस्तक्षेप करना पड़ा, तो तय मानिए कि युद्ध के हालात जरूर बनेंगे। बहरहाल आंदोलन को भारत का परोक्ष समर्थन तो है। यह सत्य है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर पीओके में स्थानीय लोगों पर हिंसा कर रहे हैं और इस क्षेत्र का अपने हित में उपयोग कर रहे हैं।




