राजनीति

बिहार की सियासत में नीतीश कुमार ने खींच दी एक बड़ी लाइन, जिसे छोटा करना आसान नहीं!

विधानसभा चुनाव 2025 में उनकी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की, जदयू की सीटें लगभग दोगुनी बढ़ीं और एनडीए को 202 सीटों का बहुमत मिला। इसके बाद उन्होंने मंत्रिमंडल में गठबंधन सहयोगियों को संतुलित स्थान देने का निर्णय लिया। उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए कई बार सरकार भंग की और गठबंधन बदला, जिससे उनकी सियासी मजबूती बनी रही।

कभी सुप्रसिद्ध समाजवादी विचारक किशन पटनायक ने कहा था कि विकल्पहीन नहीं है दुनिया, लेकिन बिहार की सियासत में नीतीश कुमार ने साबित कर दिया है कि कोई लाख चिल्ल-पों मचा ले, परंतु बिहार में मुख्यमंत्री बनने के लिए उनका कोई विकल्प नहीं है। ऐसा इसलिए कि बिहार के जागरूक मतदाताओं को भ्रष्टाचार के आरोपों से बेदाग, सुशासन पसंद और राजनीतिक परिवारवाद के धुर विरोधी नीतीश कुमार का नेतृत्व ही पसंद है। 

नीतीश कुमार एक बार बिहार के मुख्यमंत्री बने और 20 नवंबर 2025 को उन्होंने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जो एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। इस बार उन्हें अभूतपूर्व जनादेश मिला है, जिससे तमाम कयासों को धत्ता बताकर वे पुनः मुख्यमंत्री बने हैं। इस प्रकार बिहार की सियासत में नीतीश कुमार ने एक वैसी बड़ी लाइन खींच दी है, जिसे छोटा करना उनके सियासी विरोधियों के लिए कतई आसान नहीं है।

हालांकि, अपने इस रिकॉर्ड को कायम करने के लिए उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई बार गठबंधन बदले हैं, जिसमें बीजेपी और महागठबंधन दोनों के साथ शामिल हुए हैं। वाकई नीतीश कुमार की राजनीति का मूल मंत्र व्यावहारिकता, लचीला गठबंधन और प्रशासनिक सुधार है, जिसके चलते वे बिहार की राजनीति के केन्द्रीय पात्र बने हुए हैं। 

नीतीश कुमार के राजनीतिक बदलाव मुख्य रूप से सत्ता की भूख, सामाजिक परिवर्तन की इच्छा, गठबंधन रणनीति, और बिहार की जटिल राजनीतिक परिस्थितियों के कारण हुए हैं, जिन्होंने उन्हें बिहार की प्रमुख राजनीतिक शख्सियत बनाया है। नीतीश कुमार की राजनीति व्यावहारिकता, गठबंधन-केन्द्रित रणनीति और सुशासन के एजेंडे पर आधारित रही है, जहाँ वे विभिन्न दलों के साथ बार-बार गठबंधन बदलते हुए भी कई बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं।

यही वजह है कि नीतीश कुमार को बिहार में ‘इच्छा शासन’ का स्तंभ माना जाता है, और उन्होंने बिहार में सत्ता के महत्वपूर्ण मंत्रालयों पर नियंत्रण बनाए रखा है। यह सभी तथ्य नीतीश कुमार के राजनीतिक गाम्भीर्य और प्रशासनिक कौशल को दर्शाते हैं, विशेष रूप से बिहार की राजनीति में उनकी भूमिका को दिखाते हैं। इनके प्रमुख फैसले लगातार गठबंधन राजनिति में संतुलन बनाना और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना रहे हैं।

बहरहाल, 2024 में वह बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन कर एनडीए के तहत मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। उनके राजनीतिक फैसलों में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ कर महागठबंधन में शामिल होना, फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना प्रमुख रहे। उन्होंने अपने प्रशासनिक फैसलों में सत्ता नियंत्रण बनाए रखने के लिए कई बार रणनीति बदली, जैसे गृह मंत्रालय अपने पास रखने का अभियान। 

विधानसभा चुनाव 2025 में उनकी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की, जदयू की सीटें लगभग दोगुनी बढ़ीं और एनडीए को 202 सीटों का बहुमत मिला। इसके बाद उन्होंने मंत्रिमंडल में गठबंधन सहयोगियों को संतुलित स्थान देने का निर्णय लिया। उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए कई बार सरकार भंग की और गठबंधन बदला, जिससे उनकी सियासी मजबूती बनी रही। 

देखा जाए तो नीतीश कुमार के प्रमुख राजनीतिक बदलाव उनके राजनीतिक कैरियर में उनके रणनीतिक फैसलों, गठबंधन परिवर्तन, और समाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप उनके दृष्टिकोण में बदलावों का परिणाम रहे हैं।

इसलिए मुख्य राजनीतिक बदलाव और कारण को हम यहां पर गिना रहे हैं:- 

पहला, शुरुआती राजनीति और जेपी आंदोलन से उदयनीतीश कुमार का राजनीतिक सफर जनता दल (यूनाइटेड) के सदस्य से शुरू हुआ, और उन्होंने अपने शुरुआती करियर में समाजवादी विचारधारा को अपनाया। 1990 के दशक में उन्होंने जनता पार्टी / जनता दल के साथ मिलकर लोकशिक्षा व सामाजिक बदलाव पर फोकस किया।

दूसरा, पहली बार मुख्यमंत्री बनना (2000): तत्कालीन और भौतिक राजनीतिक माहौल में बिहार में शांति व विकास के रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने बिहार में पहली बार मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन मात्र 7 दिनों के लिए सीएम बने थे।

तीसरा, महागठबंधन बनाम भाजपा समर्थक नीति: 2005 में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के साथ गठबंधन किया, लेकिन 2013 में बीजेपी से नाता तोड़ सरकार से अलग हो गए, क्योंकि उन्हें लगा कि उनके सामाजिक-आर्थिक एजेंडे पर भाजपा की नीतियों में बाधाएँ आ रहीं हैं। इसके बाद, उन्होंने जदयू को महागठबंधन, विशेष रूप से राजद (लालू प्रसाद यादव) के साथ शामिल किया, जो उनकी राजनीतिक रणनीति में बड़ा बदलाव था।

चतुर्थ, भाजपा के साथ फिर से संधि और वापस सरकार में आना: 2017 में, नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसका मुख्य कारण सत्ता का स्थायित्व और बिहार में राजनीतिक स्थिरता था। इस निर्णय का कारण उनके दिल्ली और बिहार में होने वाले राजनीतिक दबाव, गठबंधन की राजनीतिक स्थिति, और बिहार में विकास की जरूरतें मानी जाती हैं।

पंचम, समाजिक सुधार और प्रशासनिक बदलाव: व्यक्तिगत व्यवहार में सुधार, सामाजिक बदलाव, और प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा देना उनके बदलाव का एक अहम पहलू रहा है, जिससे वे समाज में अपनी छवि को मजबूत करते गए हैं। कारण: राजनीतिक मजबूरियां, सत्ता बनाए रखना, सामाजिक आधार का विस्तार, और बिहार की जटिल राजनीतिक परिस्थितियों ने उनके इन बदलावों को प्रेरित किया। भीड़-भाड़ वाले पहले गठबंधन से संवाद और वफादारी की कमी, और सियासी विकल्पों का ढलान, उन्हें नए राजनीतिक समीकरण बनाने पर मजबूर किया।

# नीतीश कुमार के प्रमुख राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले एवं उनकी नीतियां निम्नलिखित हैं:

नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की विकास नीतियों का प्रभाव समग्र रूप से सकारात्मक और व्यापक रहा है। उन्होंने ‘न्याय के साथ विकास’ के सिद्धांत पर काम करते हुए राज्य के विकास के पहिये को तेजी से घुमाया है, खासकर समाज के कमजोर वर्गों को मुख्यधारा में लाने और महिलाओं को सशक्त बनाने पर जोर दिया गया है। इससे बिहार राज्य में आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।

उनकी पॉलिसियों के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के विकास, जैसे गांवों को जोड़ना, बुनियादी सुविधाओं का विस्तार, और योजना लाभों का व्यापक वितरण हुआ है। प्रशासनिक स्तर पर जन-केंद्रित नीतियों और पारदर्शिता के उपायों से भ्रष्टाचार कम करने और सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता बेहतर बनाने में मदद मिली है।

आर्थिक दृष्टिकोण से, बिहार ने खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था के अलावा उद्योग और सेवा क्षेत्रों में भी विकास का रास्ता अपनाया है, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक स्थिरता बढ़ी है। जीएसटी जैसे सुधारों का समर्थन कर राज्य ने वित्तीय अनुशासन बनाया और बहुआयामी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा है। हालांकि बिहार लंबे समय तक राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और संसाधनों की कमी की चुनौतियों से जूझता रहा, नीतीश कुमार की सरकारों ने इसे दूर करने के लिए कई सुधार लागू किए जिनका असर अब दिखने लगा है।

आज बिहार में सड़क निर्माण, सिंचाई योजनाओं और सामाजिक सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार की गति तेज हुई है।इस प्रकार कहा जा सकता है कि नीतीश कुमार की नीतियों ने बिहार के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की है, और राज्य वर्तमान में विकास एवं आत्मनिर्भरता के पथ पर प्रभावी रूप से अग्रसर है। यह प्रभाव 2025 में भी चुनाव परिणामों और विकास परियोजनाओं में स्पष्ट दिखाई देता है। 

# नीतीश कुमार की सियासत को समझने के लिए निम्नलिखित कुछ पहलुओं को समझना बेहद जरूरी है:-

पहला, गठबंधन आधारित राजनीति: नीतीश कुमार ने पिछले दो दशकों में भाजपा (NDA), राजद-कांग्रेस (महागठबंधन) और अन्य दलों के साथ कई बार गठबंधन बदले हैं। वे जिस भी खेमे में जाते हैं, वहाँ सत्ता का केंद्र बन जाते हैं और सरकार बना लेते हैं; इसका उद्देश्य सत्ता में बने रहना और अपनी पार्टी की प्रासंगिकता बनाए रखना है।

दूसरा, सुशासन और सामाजिक न्याय: उनकी छवि “सुशासन बाबू” की रही है, जहाँ कानून व्यवस्था, महिलाओं के सशक्तिकरण, पब्लिक सर्विस डिलीवरी व सामाजिक-आर्थिक विकास पर बल दिया गया। पंचायत चुनावों में अति पिछड़ा वर्ग आरक्षण, महिला आरक्षण और कानून व्यवस्था के लिए तेज रिफॉर्म लागू किए। आधारभूत ढांचे का विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार और अमल उनकी मुख्य उपलब्धियां हैं।

तीसरा, विचारधारा और नेतृत्व शैली: नीतीश समाजवादी विचारधारा से निकले नेता हैं, लेकिन उनकी राजनीति जमीनी समझ, समय के अनुसार रणनीति बदलने और वास्तविकता पर टिकी है। विपक्ष की तुलना में वे लचीले, समन्वयकारी और हमेशा प्रासंगिक बने रहने को प्राथमिकता देते हैं। 

यही नहीं, अपने शासन में उन्होंने बिहार में विकास योजनाओं पर जोर दिया है और संविदाकर्मियों को राज्यकर्मी का दर्जा देने जैसी पहल की है। प्रशासनिक स्तर पर अपनी कैबिनेट का आकार छोटा रखा है लेकिन भविष्य में विस्तार की बात कही है और मंत्रिमंडल में नए चेहरों को जिम्मेदारी देने का संकेत दिया है। 

नीतीश कुमार की राजनीतिक चालाकी और गठबंधन प्रबंधन ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर कई बार बनाए रखा, साथ ही भाजपा के लिए बिहार में सत्ता की मजबूती का रास्ता खोला। दोनों के बीच संतुलन बना रहना बिहार की राजनीतिक स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक माना जाता है।इस तरह, नीतीश कुमार का सुशासन और सामाजिक गठबंधन पर जोर और भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व वाली मजबूत संगठनात्मक रणनीति ने बिहार में सामूहिक चुनावी सफलता और राज्यों में सत्ता की स्थिरता सुनिश्चित की है। 

सच कहूं तो भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति और लाभ बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। नीतीश कुमार की रणनीति में सबसे प्रमुख था “सुशासन” का एजेंडा, जो 2005 से लेकर अब तक उनके राजनीतिक अभियान की पहचान बना। उन्होंने कानून व्यवस्था, बुनियादी ढांचे, और सामाजिक कल्याण पर जोर देकर खुद को एक सुदृढ़ और भरोसेमंद प्रशासक के रूप में स्थापित किया।

 उनके समय में जातीय गठबंधन और सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर राजनीति को सफलतापूर्वक संचालित किया गया, जिसमें अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और गैर-यादव OBC समुदायों को मुख्य आधार बनाया गया। नीतीश कुमार ने गठबंधन राजनीति में लचीलापन दिखाते हुए बीजेपी और महागठबंधन के बीच अपनी पार्टी के हितो की रक्षा की, जिसे राजनीतिक चतुराई के तौर पर देखा जाता है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार में मोदी-नीतीश की जोड़ी को चुनावी रणनीति का केंद्र बनाया। भाजपा ने गठबंधन सहयोगियों को मजबूत किया और बूथ प्रबंधन से लेकर प्रचार तक कड़े रणनीतिक कदम उठाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और विकास एजेंडा का समुचित इस्तेमाल कर भाजपा ने बिहार में मजबूत राजनीतिक पकड़ बनाई। भाजपा ने महिलाओं, युवाओं और किसानों के मुद्दों को प्रमुखता दी, जिससे व्यापक जनसमर्थन प्राप्त हुआ। गठबंधन में तालमेल बनाए रखने की क्षमता भाजपा की बड़ी जीत का कारण रही।

– कमलेश पांडेय

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