रिश्वतवीर जिंदाबाद…

अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगता है, जब कोई रिश्वतवीर रिश्वत लेता है। रिश्वतवीरों को लाख रुपए वेतन के उतनी शांति नहीं देते जितना हजार पांच सौ रिश्वत के दे जाते हैं। रिश्वतवीर को देख नैतिकता का ढोंग करने वालों की छाती पर सांप लोटते हों तो लोटते रहें, पर मेरी छाती तो फूल कर अस्सी हो जाती है। वाह! कितना गजब का रिश्वतवीर है! सारी शर्म हया त्याग लाख वेतन लेने पर भी हजार पांच सौ को हाथ फैला रहा है। आजकल के पेट गजब के पेट हो गए हैं जनाब! जो वेतन से कम, रिश्वत से अधिक भरने लगे हैं। आदमी जब जब रिश्वत लेता है अपने को भरापूरा महसूस करता है। वेतन बदबू मारता है। रिश्वत खुशबू फैलाती है। लेकिन जब कोई रिश्वतवीर रिश्वत लेता हुआ किसी एंटी सोशल एलीमेंट के कर कमलों से कानून का शिकार बनवाया जाता है तो उस एंटी सोशल एलीमेंट के लिए मन से इतनी बद्दुआएं निकलती हैं, इतनी बद्दुआएं निकलती हैं कि उसको बद्दुआएं देते देते गला सूख जाए तो सूख जाए, मुझे इसकी कतई परवाह नहीं होती।
ये भी कोई बात होती है भाई साहब कि जब समाज का रिश्वत नित्य प्रति का व्यवहार बन गया हो तो रिश्वतवीरों को मुफ्त में कोसा जाए? आज बहुमत से रिश्वत को सभ्य सामाजिकों द्वारा भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं, शिष्टाचार की श्रेणी में शुमार कर लिया गया है। इसलिए जो रिश्वत लेते हैं, वे दुराचारी नहीं, सभ्यचारी कहलाने के हकदार हैं। सदाचारी कहलाने के हकदार हैं। मैं तो कहता हूं कि रिश्वतवीरों को समाज में सम्मानित किया जाना चाहिए। रिश्वत लेने वाले समाज में गालियों के नहीं, सम्मान के अधिकारी हैं। क्या हुआ जो वे व्यभिचारी हैं। क्या हुआ जो वे दुराचारी हैं। व्यभिचारी यहां कौन नहीं? दुराचारी यहां कौन नहीं? एक पत्थर उखाड़ो तो बीसियों तथाकथित संस्कारी मैं भी व्यभिचारी, मैं भी दुराचारी का पाठ करते मुस्कुराते निकल आएंगे। असल में व्यभिचार में ही सभ्य समाज के संस्कार निहित हैं। दो बूंद रिश्वत की बड़ों बड़ों की नैतिकता की हवा टाइट कर देती है। दुराचार में ही सभ्य समाज का परिष्कार निहित है। अच्छा, एक चीज तो बताना भाई साहब! ये संस्कार होते किस खेत की मूली हैं? नहीं पता न! इसलिए हर रिश्वतवीर को ईमानदारी के हर मंच पर पुरस्कृत किया जाना चाहिए ताकि उनके रिश्वत लेने के हौसले भविष्य में और बुलंद हों। आम जनता के रुके कामों के होने में गति आए। ऑफिसों की पेंडेंसी खत्म हो।
मित्रो! रिश्वत में इतनी घनिष्ठता होती है उतनी तो खून से लेकर जुनून के रिश्तों में भी नहीं होती। रिश्वत लेने और रिश्वत देने वाले के बीच इतने मजबूत रिश्ते होते हैं कि इतने मजबूत तो खून के रिश्ते भी नहीं होते। रिश्वत लेने वाला रिश्वत देने वालों की उसी तरह बाट जोहता रहता है जिस तरह मंदिर में भगवान अपने भक्तों की बाट जोहते रहते हैं। भक्त आएं तो उनका होना सार्थक हो। अब इससे आगे क्या कहूं, आप शेर के मुंह में मेहनत का पूरा बकरा डालने के बदले बस, तरबूज का टुकड़ा भर रिश्वत डाल दीजिए। फिर देखिए, वह किस तरह अपने पद की गरिमा को लात मार आपके आगे पीछे अपनी दुम हिलाने को विवश हो जाएगा। विश्वास न हो तो एक बार आजमा कर देख लीजिए। बरसों को आजमाया नुस्खा है। सफल न हों तो आपका जूता और मेरा…।




