संपादकीय

लद्दाख कितना ‘जेन जी’

लेह-लद्दाख जैसे शांत और शीतल क्षेत्र में अचानक आगजनी, पत्थरबाजी, सरकारी वाहनों का दहन और उत्तेजित-भडक़ाऊ नारे…! अचानक यह हिंसक माहौल देख-सुन कर देश चौकन्ना हो गया होगा! लद्दाख 2250 मीटर से 7742 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ऐसा क्षेत्र है, जहां रूहानियत और सुकून बसते हैं। यह सीमावर्ती क्षेत्र भी है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आसपास भारत और चीन के हजारों सशस्त्र सैनिक, कुछ समय पहले तक, तैनात थे। अब सेनाएं काफी पीछे हट चुकी हैं, क्योंकि दोनों देशों के बीच समझौता-वार्ता के दौर जारी हैं। पहले तो युद्ध-सा माहौल था। लद्दाख में जिस तरह विरोध-प्रदर्शन किए गए, उन्हें देख कर चीन की निगाहें भी फैल गई होंगी! बेशक आमरण अनशन पर 15 दिन से बैठे सोनम वांगचुक ने विरोध-प्रदर्शन की तुलना अरब स्प्रिंट और नेपाल के ‘जेन ज़ी’ विद्रोह से की, लेकिन यह देश-विरोधी बयान है, क्योंकि युवा इससे और भी ज्यादा भडक़ सकते हैं। सोनम ने अपना अनशन भी वापस ले लिया और शांति की अपील भी की। यह कैसा दोगलापन है! लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र का दर्जा मोदी सरकार ने ही दिया था, अलबत्ता यह क्षेत्र दशकों से जम्मू-कश्मीर की छाया तले अपने स्वतंत्र अस्तित्व के विकास और विस्तार के लिए तरस रहा था। 2019 के बाद अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों ही केंद्रशासित क्षेत्र हैं। आंदोलन हिंसक क्यों हुआ, जिसमें 4-5 मौतें हो गईं और 70 से अधिक लोग घायल हो गए? प्रशासन को कफ्र्यू लगाना पड़ा, इंटरनेट की सप्लाई रोकनी पड़ी और 4 या उससे अधिक लोगों के एकत्र होने पर पाबंदी चस्पां करनी पड़ी। अर्थात लेह-लद्दाख में अब रैलियों, विरोध-प्रदर्शनों और जलसे-जुलूस पर फिलहाल पाबंदी है। पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े, लाठियां भांजनी पड़ी और प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय भाजपा दफ्तर को फूंक दिया। भाजपा नेतृत्व ने इस हिंसक आयोजन के पीछे स्थानीय कांग्रेस पार्षद की साजिश का आरोप लगाया है।

बेशक सोनम वांगचुक लद्दाख के एक विख्यात चेहरा हैं। वह अभियंता, नवाचारी और शिक्षा सुधारक हैं और जलवायु परिवर्तन पर भी उनके खास सरोकार हैं। वह भी क्षुब्ध बताए जा रहे हैं, क्योंकि हिंसक आंदोलन उनकी मानसिकता के अनुरूप नहीं था। वह इसके पक्षधर नहीं हैं, लिहाजा उन्होंने अनशन भी तोड़ा। यह भी बताया जाता है कि लद्दाख के युवाओं और छात्रों के भीतर, बीते कुछ समय से, एक उबाल हिलोरें मार रहा था। वे लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और उसे छठी अनुसूची में रखने की मांग लगातार कर रहे थे। हालांकि 2019 में जब लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र बनाया गया, तो पूर्ण राज्य बनाने का कोई राजनीतिक और प्रशासनिक आश्वासन नहीं दिया गया था। लद्दाख बहुत छोटा क्षेत्र है। उसकी आबादी करीब 2.75 लाख है। क्षेत्रफल 59,146 वर्ग किमी. है। राजधानी लेह के जिले में 113 छोटे-छोटे गांव हैं। कारगिल जिले में भी 98 गांव बताए जाते हैं। लद्दाख में बौद्ध धर्म सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। सभ्यता-संस्कृति भी काफी प्राचीन है। क्या भारत सरकार उसे पूर्ण राज्य का दर्जा देगी, जबकि जम्मू-कश्मीर और दिल्ली के ऐसे मांग-पत्र अब भी विचाराधीन हैं। केंद्र और लेह शीर्ष निकाय के बीच चार माह के अंतराल के बाद 6 अक्तूबर को बैठक तय थी, लेकिन उससे पहले ही यह हिंसक विरोध-प्रदर्शन कर दिया गया। हमारे सूत्रों की जानकारी है कि सरकार चाहती है कि सोनम वांगचुक को केंद्र-लेह की वार्ताओं से बाहर रखा जाए, क्योंकि वह अभी तक बाधा साबित होते रहे हैं। दूसरी तरफ वांगचुक का दावा है कि गुरुवार को गृह मंत्रालय के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की उन्हें उम्मीद है। उनकी शिकायत है कि लोग निराश हैं, क्योंकि अगले चुनाव होने वाले हैं और केंद्र ने पिछले चुनावी वायदे अभी तक पूरे नहीं किए। सवाल है कि ‘जेन ज़ी’ की तर्ज पर छेड़े गए आंदोलन और हिंसक प्रदर्शन के जरिए लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया जा सकता है? भारत नेपाल के बीच जमीन-आसमान का अंतर है। हमें नहीं लगता कि लद्दाख जैसे छोटे-छोटे इलाकों में बसे क्षेत्र को एक स्वतंत्र राज्य बनाया जाए और फिर केंद्र सरकार अनुदान देकर उसे पालती-पोसती रहे।

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