शिक्षण संस्थानों में बढ़ती अश्लीलता

शिक्षण संस्थान हमारे भविष्य के शिल्पकार हैं, इसलिए इनका वातावरण पवित्र, अनुशासित और संस्कृति-सम्मत और भारतीय संस्कृति के अनुरूप होना चाहिए। आधुनिकता जरूरी है, परंतु आधुनिकता का अर्थ कभी भी असंयम या अश्लीलता नहीं होता…
भारत की शिक्षा व्यवस्था सदियों से ज्ञान, संस्कार और संस्कृति का संगम मानी जाती रही है। स्कूल और कॉलेज केवल पढ़ाई के स्थान नहीं होते, बल्कि ये वह स्थल हैं जहां व्यक्तित्व का निर्माण होता है, जहां युवा अपने जीवन के मूल्य, आदर्श और आचरण सीखते हैं। हाल ही के दिनों में उत्तर भारत के कुछ शिक्षण संस्थानों में फेयरवेल पार्टियों के नाम पर अश्लील डांस ने लोगों के बीच में एक नई बहस को जन्म दिया है कि भारतीय संस्कृति के विपरीत इस प्रकार की गतिविधियां कहां तक उचित हैं। शिक्षण संस्थानों में बढ़ती अश्लीलता न सिर्फ शिक्षा के माहौल को मैला करती है, बल्कि युवा पीढ़ी के संस्कार, संवेदनशीलता और चरित्र निर्माण पर भी गंभीर चोट पहुंचाती है। आधुनिकता और मनोरंजन के नाम पर प्रस्तुत किए जा रहे ये नृत्य केवल मंच पर हो रहे प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहते हैं, बल्कि युवा मन पर अमिट प्रभाव छोड़ते हैं। जब शरीर प्रधान, उत्तेजक और कामुकता से भरपूर केंद्रित प्रस्तुतियां शैक्षणिक परिसरों में सहजता से स्वीकार की जाने लगें, तो यह केवल अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पतन का संकेत भी बन जाती हैं।




