
एजेंसियां — कोलकाता
हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता पर आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने दो टूक कहा है कि राज्य कानून से चलता है, धर्म से नहीं। उनसे पूछा गया था कि धर्मनिरपेक्षता के ढांचे के भीतर हिंदुओं की रक्षा कैसे की जा सकती है, इस पर भागवत ने साफ शब्दों में कहा है कि सेक्युलरिज्म का अर्थ है धार्मिक रूप से तटस्थ होना। राज्य का काम कानून का पालन कराना है और समाज का काम आपसी भाईचारा बनाए रखना है। अगर राज्य कानूनके आधार पर चलेगा (किसी का तुष्टिकरण नहीं करेगा) और समाज अपने आचरण में धर्म (कर्तव्य) का पालन करेगा, तो सुरक्षा अपने आप सुनिश्चित हो जाएगी। उन्होंने हिंदुत्व को कर्मकांडों से अलग करते हुए युवाओं को यह संदेश दिया कि केवल मंदिर जाना ही हिंदू होना नहीं है, बल्कि आपका आचरण ही आपका असली धर्म है। मोहन भागवत ने धर्म को लेकर अक्सर होने वाले भ्रम को दूर करने की कोशिश की।
उन्होंने स्पष्ट किया कि सेक्युलरिज्म कोई पश्चिमी अवधारणा नहीं, जिसे थोपा गया हो, बल्कि यह शासन चलाने की एक व्यवस्था है। भागवत ने कहा कि सेक्युलरिज्म शासन की एक पद्धति है। राज्य की सत्ता चलाने वाली कोई भी व्यवस्था हमेशा से सेक्युलर रही है और राज्य सेक्युलर ही रहेगा। यह बात समझनी होगी। उनका यह बयान इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अक्सर हिंदुत्ववादी संगठनों पर संविधान के सेक्युलर ढांचे को चुनौती देने के आरोप लगते हैं, लेकिन संघ प्रमुख ने यहां स्पष्ट कर दिया कि राज्य का संचालन किसी विशेष उपासना पद्धति या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि कानून के आधार पर होता है। राज्य को पंथनिरपेक्ष होना ही चाहिए।
सरकार को न मंदिर बनाना चाहिए, न मस्जिद
मोहन भागवत ने एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार को न मंदिर बनाना चाहिए और न ही मस्जिद। राम मंदिर भी सरकार ने नहीं बनवाया है। इसे राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। मुझे पता है कि यह नियमों के खिलाफ है। इसके साथ ही उन्होंने बंगाल में बाबरी मस्जिद के लिए नींव डाले जाने पर कहा कि यह एक सियासी साजिश है। बाबरी मस्जिद फिर से बनाने का विवाद वोटों के लिए खड़ा किया जा रहा है। इससे न तो हिंदुओं का भला होने वाला है और न ही मुसलमानों का। मोहन भागवत ने कहा कि बहुत से लोगों की प्रवृत्ति रहती है कि संघ को भाजपा के चश्मे से समझना। यह बहुत बड़ी गलती होगी। संघ सिर्फ एक सर्विस ऑर्गेनाइजेशन नहीं है। संघ को समझना है, तो संघ को ही देखना पड़ता है। संघ का मकसद हिंदू समाज को संगठित करना है, यह किसी के खिलाफ नहीं है।




