सिर्फ नोबेल के युद्धविराम

गाजा में 10 दिन में ही युद्धविराम टूट गया, लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप का दावा है कि युद्धविराम नहीं टूटा है। इसी मानसिकता के साथ वह यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर युद्धविराम का दबाव डाल रहे हैं। बल्कि जेलेंस्की ने यूक्रेन के नक्शे वाला जो दस्तावेज राष्ट्रपति टं्रप के सामने रखा था, उसे टं्रप ने फाड़ दिया। इतना अहंकार…! रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ फोन पर 2 घंटे की जो लंबी बातचीत हुई थी, राष्ट्रपति टं्रप उसे लेकर फुलफुला रहे थे, लिहाजा उन्होंने जेलेंस्की की सामरिक मदद करने से साफ इंकार कर दिया। विध्वंसक मिसाइल ‘टॉमहॉक’ हासिल करने की जेलेंस्की की उम्मीदें, एक वार्तालाप के साथ ही, ध्वस्त हो गईं। टं्रप की भाषा में कहें, तो उन्होंने यूक्रेन को आत्मसमर्पण करने की नसीहत दी है। राष्ट्रपति जेलेंस्की अपने देश के बचे-खुचे लोगों को क्या जवाब देंगे? यूक्रेन के 15-16 फीसदी क्षेत्र पर रूस का कब्जा है, क्या जेलेंस्की उसे जाने देंगे? पुतिन ने एक और झटका टं्रप को दिया है। उन्होंने न जाने क्या कहा है कि ‘व्हाइट हाउस’ को घोषणा करनी पड़ी कि हंगरी के बुडापेस्ट में टं्रप-पुतिन की जो मुलाकात होनी थी, उसे रद्द कर दिया गया है। फिलहाल अगली मुलाकात अनिश्चित है। हालांकि बुडापेस्ट की प्रस्तावित मुलाकात पर फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने आग्रह किया था कि उस बैठक में यूरोप और यूक्रेन के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए। यूरोप और नाटो रूस के खिलाफ बड़े युद्ध की तैयारियां भी कर रहे हैं। बहरहाल संवाद और मुलाकात का यह अध्याय फिलहाल बंद हो गया है, लेकिन गाजा पर राष्ट्रपति टं्रप का विरोधाभास आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि उनके शांति-प्रयास और समझौते तथा थोपे गए युद्धविराम सिर्फ नोबेल शांति पुरस्कार पाने के मद्देनजर ही हैं, लिहाजा वे सार्थक और दीर्घकालीन साबित नहीं हो पा रहे हैं। गाजा में करीब 65,000 लोग हताहत हो चुके हैं। शहर, स्कूल, अस्पताल लगभग खंडहर बने हैं।
फिर न जाने क्या उकसाहट और उल्लंघन सामने आए कि इजरायल ने गाजा के एक स्कूल, हमास आतंकियों के ठिकानों, हथियार-डिपो और सुरंगों पर विनाशकारी हवाई हमले किए। एक बार फिर चारों ओर धुआं ही धुआं दिखाई दिया। ऐसी रपटें हैं कि इजरायल सेनाओं ने 24 घंटे में ही 153 टन बारूद का इस्तेमाल कर गाजा को दहला दिया। जहां ऐसा विनाश, विध्वंस और जंगी हालात हों, वहां युद्धविराम की कल्पना करना ही बेवकूफी है। न जाने किन आधारों पर राष्ट्रपति टं्रप दावा कर रहे हैं कि युद्धविराम अभी टूटा नहीं है। यह दावा ही हास्यास्पद् है। अमरीकी राष्ट्रपति शेष दुनिया को न जाने किस ‘दृष्टि’ से देखना चाहते हैं। गाजा में युद्धविराम थोपा हुआ था। शायद इसीलिए वह बंधकों और कैदियों की आपसी रिहाई तक ही सीमित रहा! बाद में हमास ने भी कत्लेआम शुरू कर दिया और अब इजरायल की सेनाओं ने विनाशकारी हमला बोल दिया। कहा जा रहा है कि हमास ने 47 से अधिक उल्लंघन किए थे, लिहाजा इजरायली सेनाओं को लौट कर हमले करने पड़े। अमरीकी राष्ट्रपति ने भी हमास को चेतावनी दी है कि वे युद्धविराम को कबूल करें और शिद्दत से लागू करें, नहीं तो उन्हें मिटा दिया जाएगा। ऐसे स्वर और धमकियां क्या शांति-प्रयासों के हिस्से हो सकते हैं? यकीनन यह युद्ध की भाषा है। गाजा और रूस-यूक्रेन के अलावा, पाकिस्तान, तालिबान, बलूचिस्तान में गहरा तनाव पसरा है। शायद राष्ट्रपति टं्रप इन इलाकों में संपूर्ण रूप से अप्रासंगिक हैं, लिहाजा हस्तक्षेप नहीं कर पा रहे हैं। पाकिस्तान तो अमरीका का पि_ू देश है, जहां आम सब्जियां 100-150 से 400-500 रुपए किलो के भाव बेची जा रही हैं। यहां अवाम में भरपूर गुस्सा और असंतोष है। लावा कभी भी फूट सकता है। इन तीनों ही इलाकों की बुनियादी संस्कृति कबीलाई है, लिहाजा वे एक-दूसरे को कभी भी मार सकते हैं। यहां शांति और स्थिरता की बहुत दरकार है, क्योंकि प्रकृति ने इन इलाकों को बेशकीमती खनिज दिए हैं, लेकिन ये फिर भी गरीब, फटेहाल हैं, क्योंकि उन संसाधनों का उचित तौर पर दोहन नहीं किया जा रहा। बुनियादी लड़ाई खनिजों पर कब्जे को लेकर है। मुक्ति, आजादी तो सतही जुमले हैं। यदि टं्रप नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अपनी दावेदारी ठोस और सशक्त करना चाहते हैं, तो शांति और युद्धविराम के प्रति ईमानदारी बरतें। वास्तविक अर्थों में युद्धविराम होना चाहिए। एक ओर शांति के लिए काम करने का दिखावा और दूसरी ओर युद्ध की धमकियां एक बड़ा विरोधाभास है।




