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सुनियोजित है हरियाणा का विकास मॉडल

बेशक हर राज्य विकास के दावे करता है जो पूरी तरह निराधार भी नहीं होते, पर सतत और टिकाऊ विकास तभी सुनिश्चित हो सकता है, जब योजनाएं संतुलित और सुनियोजित हों। इस दृष्टि से, आकार में छोटा होने के बावजूद, हरियाणा का विकास मॉडल हर कसौटी पर खरा उतरता है। पंजाब से अलग होकर 1 नवंबर, 1966 को अस्तित्व में आए हरियाणा को स्वाभाविक ही उन तमाम चुनौतियों से रू-ब-रू होना पड़ा, जिनसे कोई भी नया राज्य होता है लेकिन चुनौतियों के साथ-साथ अपनी विशेषताओं को पहचानते हुए संतुलित विकास माडल से उसकी राह आसान होती गई।

बेशक पंजाब से पृथक राज्य बने हरियाणा की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार भी कृषि ही रहा है लेकिन उसकी अपनी सीमाएं भी जगजाहिर हैं। परिवार के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसके साथ ही रोजगार के अवसरों की मांग भी बढ़ती है और समग्र विकास की भी जबकि कृषि योग्य भूमि लगातार कम होती जाती है। इन भावी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ही हरियाणा ने कृषि के साथ-साथ औद्योगिक विकास को भी अपने विकास माडल का आधार बनाया। इसमें उसे अपनी कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति के साथ ही किसानों की प्रगतिशील सोच और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से निकटता का लाभ भी मिला। यह सच है कि देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं के तीन ओर बसा होने जैसी भौगोलिक विशिष्टता किसी अन्य राज्य को प्राप्त नहीं है लेकिन उसका सही और पूरा लाभ उठाने के लिए जो विकास दृष्टि चाहिए, वह हरियाणा की सरकारों ने दिखाई है। जाहिर है, श्रेय की लड़ाई अक्सर राजनीति में फंस कर रह जाती है लेकिन वास्तव में विकास एक सतत प्रक्रिया है। हां, उसकी दिशा और रफ्तार अवश्य तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर करती है। 

चौधरी बंसीलाल को आधुनिक हरियाणा का निर्माता कहा जाता है। इस सच से शायद ही कोई इन्कार कर पाए कि दिल्ली से राज्य की नजदीकी और तत्कालीन केंद्रीय सत्ता में अपनी पहुंच को ध्यान में रखते हुए बंसीलाल ने ही आधुनिक हरियाणा का रोडमैप बनाया। बाद की सरकारों ने अपनी-अपनी समझ और प्राथमिकताओं के अनुसार उस पर अमल किया। चौधरी देवीलाल को शासन करने का ज्यादा समय नहीं मिला। उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी एक बार ही अपना मुख्यमंत्रित्वकाल पूरा कर पाए  लेकिन भजनलाल और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को शासन और विकास पर अपनी छाप छोडऩे का पूरा मौका मिला। इन दोनों के ही मुख्यमंत्रित्वकाल में हुए विकास को नकार तो कोई नहीं सकता, हां अपने जनाधार वाले क्षेत्र पर विशेष फोकस के चलते क्षेत्रवाद के आरोप अक्सर लगाए जाते रहे हैं। आदर्श स्थिति का तकाजा तो यही है कि प्रदेश या देश के मुखिया को जाति, धर्म या क्षेत्रीय संकीर्णता से मुक्त होकर संतुलित और समग्र विकास की दृष्टि रखनी चाहिए,पर सत्ता केंद्रित राजनीति में आदर्शों का लगातार क्षरण ही हम देख रहे हैं।

इस दृष्टि से 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन को हरियाणा में व्यवस्था परिवर्तन भी माना जा सकता है। पहली बार बहुमत के साथ भाजपा खुद हरियाणा की सत्ता में आई और मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया। एक तो काडर आधारित भाजपा में नेता व्यक्तिगत जनाधार की सोच और दबाव से मुक्त रहते हैं, दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए नारे, ‘एक भारत- श्रेष्ठ भारत’ का असर। मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी ‘हरियाणा एक- हरियाणवी एक’ की सोच के साथ आगे बढ़े। हरियाणा में ‘लालों’ की राजनीति की अक्सर चर्चा होती है, पर राजनीति की चाल असल में चौथे लाल यानी मनोहर लाल ने ही बदली। किसी भी नई सरकार के समक्ष चुनौतियां स्वाभाविक ही हैं लेकिन किसी संकीर्णता या राजनीतिक प्रतिशोधवश काम करने का आरोप भाजपा सरकार पर नहीं लगा। विकास योजनाओं से लेकर सरकारी नौकरियों तक में अक्सर जातिवाद और क्षेत्रवाद के आरोप झेलते रहने वाले हरियाणा की राजनीति और शासकीय प्राथमिकताओं में यह एक नया प्रयोग अंतत: सफल भी साबित हुआ। कह सकते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों की क्षमताओं और संभावनाओं को पहचानते हुए सरकार संतुलित और समग्र विकास की राह पर आगे बढ़ी। मनोहर लाल लगभग 9 साल मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद से यह दायित्व नायब सिंह सैनी संभाल रहे हैं। 

सुनियोजित विकास मॉडल का ही परिणाम है कि आज हरियाणा कृषि के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र में भी लगातार आगे बढ़ रहा है। कृषि क्षेत्र की राष्ट्रव्यापी चुनौतियां किसी से छिपी नहीं हैं लेकिन सर्वाधिक 14 फसलों की खरीद एम.एस.पी. पर सुनिश्चित करते हुए कई योजनाओं के जरिए किसानों को सशक्त बनाने की कोशिश की गई है। अब गुरुग्राम, मानेसर और फरीदाबाद से इतर भी शहरों में औद्योगीकरण की संभावनाओं के द्वार खोले गए हैं। इसके वांछित परिणाम भी सामने आ रहे हैं। कृषि क्षेत्र में रोजगार के सीमित होते अवसरों की चुनौतियों का समाधान औद्योगीकरण की तेज रफ्तार के साथ-साथ सेवा क्षेत्र के विस्तार में भी खोजा जा रहा है। रोजगार के नए अवसरों के अनुरूप युवाओं को तैयार करने के लिए कौशल विकास पर भी जोर है। 

जाहिर है, सुशासन की दिशा में की गई इन पहल के परिणाम भी सामने आए हैं। अब हर छोटे-मोटे सरकारी काम के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती तो सरकारी नौकरियां भी मैरिट पर ही मिलने का जन विश्वास मजबूत हो रहा है। बेशक व्यवस्थागत बदलाव का यह सफर जारी रहना जरूरी है। अपने इस विकास माडल के जरिए ही हरियाणा अब अपने बड़े भाई पंजाब से भी आगे निकल गया है। भविष्य के लिए भी दीर्घकालीन योजनाओं पर काम चल रहा है। 180 किलोमीटर लंबे के.एम.पी. कॉरिडोर के साथ पंच ग्राम योजना के तहत 5 अत्याधुनिक नए शहर बसाए जाएंगे। 2050 तक 75 लाख आबादी के लिए ये शहर बसाने की योजना है। विजन-2047 के तहत एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने और 50 नए रोजगार अवसर सृजित करने का भी लक्ष्य हरियाणा ने रखा है।-राज कुमार सिंह 

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