संपादकीय

‘रेवडिय़ों’ के साझेदार पीएम

प्रधानमंत्री मोदी ने 16 जुलाई, 2022 को पहली बार यह संवेदनशील बयान दिया था कि जो दल और नेता ‘रेवडिय़ां’ बांट कर वोट बटोरने में लगे हैं, इनसे एक दिन देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो सकती है। प्रधानमंत्री के कथन के भाव यही थे, बेशक शब्द अलग थे। उसके बाद प्रधानमंत्री ने दसियों बार इस बयान को दोहराया है। प्रधानमंत्री व्यापक संदर्भ में बिल्कुल सही कहते रहे हैं, क्योंकि देश पर करीब 225 लाख करोड़ रुपए के कर्ज का बोझ है। विश्व बैंक ने दुनिया के सबसे कर्जदार देशों का आकलन दिया है। बेशक भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है, लेकिन कर्ज का ब्याज चुकाने में ही 3.25 लाख करोड़ रुपए निकल जाते हैं। यकीनन यह बहुत बड़ी राशि है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने देश पर कर्ज का कभी खुलासा नहीं किया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सभी के भीतरी यथार्थ जानती हैं। विडंबना यह है कि 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने और अंतत: गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री (कुल तीसरी बार) बनने के बाद वह अपने ही कथन को झुठलाते हुए विभिन्न विधानसभा चुनावों में, राज्य सरकारों द्वारा लगातार ‘रेवडिय़ां’ घोषित करने और बांटने में साझेदार रहे हैं। यह चारित्रिक और वैचारिक विरोधाभास है। ताजातरीन मामला बिहार का है, जहां ‘महिला रोजगार योजना’ के तहत 10,000 रुपए एकमुश्त प्रधानमंत्री ने 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में ट्रांसफर किए हैं। अभी 25 लाख और महिलाओं को भी यह राशि दी जानी है। यानी कुल 10,000 करोड़ रुपए प्रधानमंत्री और बिहार की एनडीए सरकार ने उस रणनीति के तहत बांटे हैं, ताकि महिलाओं के अधिकाधिक वोट हासिल किए जा सकें। इस संदर्भ में एक और यथार्थ सामने आया है कि यह राशि या तो बैंक ही कर्ज की किस्त के तौर पर काट लेगा अथवा सूदखोर अपना ब्याज लेने धमक पड़ेगा अथवा कोई और कारण होगा कि बहुधा महिलाएं ‘खाली हाथ’ ही रहेंगी! इस योजना पर 2.10 लाख करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है। सवाल है कि पैसा कहां से आएगा? पैसा पेड़ों पर उगता है क्या? खुद प्रधानमंत्री मानते रहे हैं, लेकिन ऐसी ‘रेवडिय़ों’ से नागरिकों को ‘परजीवी’ क्यों बनाया जा रहा है? बिहार में आर्थिक विरोधाभास गजब का है कि राज्य का बजट 3.16 लाख करोड़ रुपए का है और कर्ज 3.70 लाख करोड़ रुपए का है। बीते दिनों अखबारों में हरियाणा सरकार का विज्ञापन छपा था। अब हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी करीब 22 लाख ‘लाडो लक्ष्मी’ को 2100 रुपए प्रति माह देने की घोषणा की है। हरियाणा सरकार पर भी मार्च, 2025 तक 3.17 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज था।

तय है कि कर्ज बढ़ रहा होगा! पंजाब में फरवरी, 2022 में चुनाव हुए थे। तब आम आदमी पार्टी ने प्रत्येक पात्र महिला को 1000 रुपए प्रति माह देने की ‘रेवड़ी’ की घोषणा की थी। अब सितंबर, 2025 समाप्ति की ओर है, लेकिन ‘आप’ सरकार अपना वायदा पूरा नहीं कर पाई है, क्योंकि वर्ष 2025-26 में उस पर 4.17 लाख करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज का अनुमान है। महाराष्ट्र में भी भाजपा नेतृत्व की सरकार है। वहां चुनावी मुद्दा बना-‘लाडली बहिना।’ बेशक वहां की सरकार 2100 रुपए प्रति माह पात्र महिलाओं को दे रही है, लेकिन घाटे का बजट होने के कारण 26.34 लाख महिलाओं के नाम काटने पड़े। महाराष्ट्र सरकार पर मार्च, 2026 तक 9.3 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो सकता है। आकलन है कि देश के 11 राज्य कर्ज लेकर ‘रेवडिय़ां’ बांट रहे हैं। नतीजतन देश की अर्थव्यवस्था कहां तक जाएगी, आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है। ये कर्जदार राज्य, अंतत:, केंद्र सरकार से पैसा मांगेंगे और केंद्र का भी कर्ज बढ़ता रहेगा। क्या ऐसी अर्थव्यवस्था के साथ भारत विश्व की ‘आर्थिक महाशक्ति’ बन सकता है? प्रधानमंत्री इस स्थिति पर गौर करें और ‘रेवड़ीहीन’ राजनीति की पहल खुद करें। बिहार में जो 10,000 रुपए दिए गए हैं, उससे कौनसा रेहड़ी-पटरी वाला धंधा भी शुरू किया जा सकता है, कृपया बताएं। देश की आर्थिकी विश्व में चौथे स्थान पर है, इसमें उनका योगदान महत्वपूर्ण है, जिन्होंने लगातार कर की अदायगी की है। उनका मेहनत का पैसा ‘रेवडिय़ों’ में न फूंका जाए। दिल्ली की बात हो, पंजाब की बात हो या किसी अन्य राज्य की बात हो, हर जगह रेवडिय़ां बांट कर ही सरकारें बन रही हैं। इसके बजाय होना तो यह चाहिए कि हर वर्ग को वास्तविक रूप में सशक्त बनाने की ठोस योजना बननी चाहिए। सभी वर्गों, खासकर युवाओं को काम देकर उनका सशक्तिकरण किया जाना चाहिए। महिलाओं को भी निठल्ला बनाने के बजाय स्वरोजगार के लिए व्यवस्था करना श्रेयस्कर रहेगा। यह पहल प्रधानमंत्री स्तर पर ही हो, तो बेहतर रहेगा।

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