संपादकीय

त्योहारों पर नफरत-हिंसा क्यों?

मंगलवार को मां दुर्गा महाष्टमी का पर्व था, तो आज पवित्र, पूजनीय नवमी का त्योहार है। पूजा-अर्चना, शांति-स्थिरता, मर्यादा, समावेशी और भाईचारे के पर्व….लेकिन जो तूफान, नफरत और उग्रता ‘आई लव मुहम्मद’ अथवा ‘आई लव महादेव, महाकाल’ सरीखे पोस्टरों के साथ पसरी थी, वह इन पवित्र पर्वों के बावजूद अब भी जारी है। यदि पोस्टरों के जरिए अपनी आस्था, श्रद्धा, भक्ति और इबादत का इजहार करना था, तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी, लेकिन प्यार का इजहार तो राजनीतिक दलों के नेताओं के प्रति होने लगा, तो यह मानसिक बौनापन और चापलूसी थी। ईश्वर या खुदा से एक अदद नेता की तुलना घोर क्षुद्रता है। वह किसी भी अर्थ में आस्था, श्रद्धा नहीं है। फिर पोस्टर फाड़े जाने लगे। बहरहाल हमारा बेहद चिंतित सवाल है कि ‘आई लव’ का सिलसिला शहरों में अशांति फैलाने, हिंसा, गोलीबारी, पत्थरबाजी तक क्यों फैल गया? जो सिलसिला कानपुर के एक इलाके से शुरू हुआ, उसने बरेली में सांप्रदायिक हिंसा क्यों भडक़ाई? यह नफरती और ‘सर तन से जुदा’ की आग उत्तराखंड के देहरादून, महाराष्ट्र के बीड और अहिल्या नगर तथा बिहार के वैशाली तक किसने सुलगाई और उसे प्रचंड रूप दिया? बरेली के एक मौलाना हैं-तौकीर रजा। वह तन, मन, मंसूबों से हिंदू-विरोधी क्यों हैं? बरेली की सांप्रदायिक हिंसा के सबसे कट्टरवादी चेहरा वही हैं। अतीत गवाह है कि कई और मुद्दों पर वह मुसलमानों को भडक़ाते रहे हैं, नतीजतन हर बार एक हथियारबंद भीड़ सडक़ों पर उतर आती है। मौलाना फिलहाल जेल में हैं, लेकिन ऐसे चेहरों का अब पक्का इलाज करना देशहित में है। प्रशासन को बरेली में ही मौलाना की 38 कथित अवैध संपत्तियों को सील क्यों करना पड़ा। अब उन पर बुलडोजर चलाने की तैयारी है।

मौलाना के पास करोड़ों की संपत्तियां कहां से आईं? उसके करीबी लोगों की 70 से अधिक दुकानें क्यों सील करनी पड़ीं? किराएदारों को फटाफट अपना सामान समेटना पड़ा। इन तमाम सवालों के जवाब शायद जांच के बाद सामने आएं! हमारा बेहद चिंतित सरोकार यह भी है कि हिंदू पर्वों, त्योहारों के दौरान ही माहौल विषाक्त करने की साजिशें क्यों की जाती रही हैं? हम ऐसा लगातार देखते रहे हैं। यदि पोस्टर फाड़े गए या जमीन पर पैगंबर मुहम्मद को लेकर रंगोली बना दी गई अथवा किसी नास्तिक ने सोशल मीडिया पर कोई विवादित टिप्पणी कर दी, तो हर बार सडक़ों पर हथियारबंद, हिंसक जन-सैलाब उमड़ता रहेगा क्या? कानपुर में ही मौलाना सज्जाद नोमानी को यह बयान क्यों देना पड़ा कि मुसलमानों को भाजपा-आरएसएस से डर लगता है। वे खौफ में जी रहे हैं! क्यों…क्या भाजपा-आरएसएस ‘आदमखोर’ हैं? मौलाना बार-बार तबदीली की बात कर रहे हैं। कैसी तबदीली? अवाम क्या चाहती है, यह तय करने वाले आप कौन हैं? हमारा देश लोकतंत्र है, उसका एक निश्चित संविधान है, संसद है और चुनाव आयोग चुनाव संपन्न कराता है। चुनाव से ही सत्ताएं तबदील और तय की जाती रही हैं और आगे भी यही व्यवस्था चलेगी। दरअसल कुछ खास मौलाना, मुल्ले, मौलवी, मुफ्ती और इमाम हैं, जो खासकर हिंदूवादी जमात और हुकूमत के खिलाफ भडक़ाते रहते हैं। शायद यही उनकी रोजी-रोटी है! अकेली बरेली हिंसा के संदर्भ में ही तौकीर रजा समेत 55-60 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं, 3225 अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं, नामजद वाले भी 100 से अधिक हैं। यह सिर्फ उप्र का यथार्थ है, जहां के शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 19.5 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में यह दर 13.5 फीसदी है। राज्य में 29,000 शिक्षकों की नियुक्तियां, अदालत के आदेश के बावजूद, आज भी लटकी हैं। यदि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सख्त कार्रवाई के आदेश देते हैं और कुछ आपत्तिजनक, अमर्यादित भाषा भी बोल जाते हैं, तो देश और राजनीति का एक अच्छा-खासा तबका है, जो उन्हें निशाने पर लेकर ‘सांप्रदायिकता’ का शोर मचाने लगता है। उप्र में चुनाव 2027 में होने हैं, करीब डेढ़ साल शेष है, आरोपित किया जा रहा है कि यह ‘आई लव’ वाला योगी और भाजपा का तय एजेंडा है और चुनाव जीतने के लिए उस पर काम शुरू किया जा चुका है। हथियारबंद भीड़ के मद्देनजर यह कुतर्क ही हो सकता है, क्योंकि नफरत और हिंसा को लेकर मौलाना बिरादरी ही जवाबदेह है। ऐसे समय में जबकि हम गांधी जयंती मनाने जा रहे हैं, हिंसा किसी भी पक्ष की ओर से हो, उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। हिंसा फैलाने वालों पर जहां ठोस कानूनी कार्रवाई हो, वहीं ऐसे तत्वों का सामाजिक बहिष्कार भी होना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button