कई ‘रावण’ जिंदा हैं!

रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद के पुतले जला कर ‘विजयादशमी’ का त्योहार मनाया गया। आम आदमी प्रसन्न है। नई पोशाकें पहनी गईं, पटाखे छोड़े गए, मिठाइयां खाई गईं। यह खुशी किस बात की है। क्या वाकई असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई, रावणत्व पर रामत्व की जीत हुई? यह हमारा मुगालता है। कुंभकर्ण और मेघनाद के भीतर भी ‘रावण’ की चेतना थी। रावण का अहंकार था। रावण का वर्चस्ववाद था। एक खलनायकत्व भी था, हालांकि लंकापति रावण त्रिकालदर्शी था, प्रकांड पंडित था। यह प्रभु राम ने भी उस पर विजय हासिल करने के बाद स्वीकारा था। हम रावण के पुतले आज भी जलाकर छद्म संतुष्टि और विजय के भ्रम में हैं। दरअसल हम रावण को भूल नहीं सकते। भूलना भी नहीं चाहते, लिहाजा आज कई रावण जिंदा हैं। उनके रूप, रंग, योनि, नस्ल और कर्म अलग-अलग हैं। सरसंघचालक मोहन भागवत ने आतंकवाद और नक्सलवाद का जिक्र अपने ‘दशहरा संबोधन’ में किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी कुछ शक्तियों, साजिशों का उल्लेख किया, जो संघ को कुचलने, नष्ट करने में संलग्न रहीं। ये ‘रावण’ नहीं, तो और क्या हैं? भागवत ने पहलगाम नरसंहार के संदर्भ में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख किया। आतंकियों ने धर्म पूछ कर 26 मासूम, बेगुनाह जिंदगियों पर विराम लगा दिया था। उनकी हत्या कर दी थी। यह ‘रावणत्व’, राक्षसी व्यवहार नहीं, तो और क्या था? नतीजतन राम रूपी भारतीय सेना को पाकिस्तान के 11 एयरबेस, रनवे, रडार सिस्टम आदि की ‘लंका’ को विनष्ट करना पड़ा। आज विश्व में कई युद्ध जारी हैं और परमाणु युद्ध के आसार पुख्ता होते जा रहे हैं। धमकियां दी जा रही हैं। विमान, बॉम्बर आसमान में उड़ते दिखाई दे रहे हैं और समंदर में भी उथल-पुथल जारी है। इनके मायने क्या हैं? गाजा पट्टी के इलाके में इजरायल की सेना ने 65,000 से अधिक मासूमों, आम औरतों और बच्चों को मार दिया, लाखों को विस्थापित होना पड़ा, भुखमरी के आत्र्तनाद सुने जा सकते हैं और चारों ओर खंडहर, मलबे के ढेर दिखते हैं। यह विनाश किसने कराया और क्यों कराया? वह 21वीं सदी का ‘राक्षस रावण’ है, जो सिर्फ अपहरण के जरिए बहन के अपमान का प्रतिशोध नहीं लेता, बल्कि कई दुनियाओं का अस्तित्व ही मिट्टी में मिला देता है।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन आज भी, साढ़े तीन साल बाद भी, यूक्रेन पर विनाशकारी हमले करवा रहे हैं। उनके आदेश पर, उनकी सेना, एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र को अस्तित्वहीन करने पर क्यों आमादा है? वहां भी आम लोगों की हत्याएं की जा रही हैं। लोग विस्थापित होकर पड़ोस के देशों में शरण ले रहे हैं। हमले में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव गुटेरस भी बाल-बाल बचे हैं। रोटी मयस्सर नहीं है, लेकिन विध्वंसकारी हथियारों की सप्लाई निरंतर जारी है। यह रूस का कुल विस्तारवाद और वर्चस्व की मानसिकता का ‘रावण’ है। यह ‘रावण’ असली रावण से कहीं ज्यादा क्रूर और अमानवीय है। प्रभु राम के उपस्थित होने के बावजूद असली रावण ने उनकी सेना का व्यापक नुकसान किया था। राम के अनुज लक्ष्मण, नियति के हनुमान की बदौलत, बाल-बाल बच पाए थे। मौजूदा कालखंड में अमरीका, यूरोप बनाम रूस, चीन के समीकरणों के तहत परमाणु युद्ध की धमकियां क्यों दी जा रही हैं? बहरहाल इनके अलावा, कई कुप्रवृत्तियां और धंधे भी ‘रावण’ के अवतार के समान हैं। रावण के तो पुतले जला कर नकली खुशियां मनाई जा सकती हैं, लेकिन सडक़ों पर पाशविक युवा सरेआम जो हत्याएं कर रहे हैं, 3-4 साल की बच्चियों के साथ दुष्कर्म किए जाते हैं, पत्नियां पति को टुकड़े-टुकड़े कर मार रही हैं, तो प्रेमी भी लव इन प्रेमिका के टुकड़े-टुकड़े कर कहीं जंगल में फेंक आते हैं। जेल में कैद रखने से क्या होगा? जिंदगी तो खत्म कर दी गई। भ्रष्टाचार ऐसी मनोवृत्ति है, जिससे अर्थव्यवस्था भी बर्बाद हो सकती है। किसी का भविष्य और करियर भी तबाह हो सकता है। न्याय की हत्या होती रहती है। हम ईमानदारी से क्यों नहीं जी सकते? यदि दशहरा बुराई और असत्य पर जीत का पर्व है, तो ऐसी मनोवृत्तियां हमारे व्यवहार, समाज, देश में क्यों हैं? साफ मायने हैं कि ‘रावण’ अभी नहीं मरा। वह हर भाव, कर्मकांड में आज भी जिंदा है। उसका शोक मनाएं और खुद को बदलने की कोशिश करें। सचमुच यह विजय की दशमी का जश्न मनाने का वक्त अभी नहीं है। समूह समाज को चिंतन करना है कि क्या रावण को जलाने से सचमुच ही सारी बुराइयां खत्म हो जाएंगी। अगर ऐसा संभव हो पाता तो आज तक हम कई बार रावण जला चुके हैं, अब तक सभी बुराइयां खत्म हो जानी चाहिए थीं। कुछ ठोस करने की जरूरत है।




