महाराष्ट्र

सरकार के गले की फांस बनी लाडकी बहिन स्कीम, दूसरी योजनाओं के लिए नहीं बचा फंड… महाराष्ट्र के मंत्री ने कबूला

महाराष्ट्र के एक मंत्री ने पहली बार स्वीकार किया है कि ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन’ योजना के कारण दूसरे सरकारी योजनाओं पर असर पड़ रहा है। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने सोमवार को कहा कि राज्य सरकार के सभी विभाग फंड की कमी से जूझ रहे हैं।

मुंबई: महाराष्ट्र की महायुति सरकार के वरिष्ठ मंत्री और एनसीपी नेता छगन भुजबल ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने बयान देते हुए स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की महत्वाकांक्षी माझी लाडकी बहिन योजना के कारण राज्य की अन्य सरकारी योजनाओं पर सीधा असर पड़ा है। यह पहली बार है जब महायुति सरकार के किसी मंत्री ने सार्वजनिक रूप से इस योजना की वजह से वित्तीय संकट की बात मानी है। भुजबल ने कहा कि वर्तमान में राज्य के लगभग सभी विभाग धन के अभाव की स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस योजना पर भारी खर्च होने से अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए पर्याप्त धन नहीं बच पा रहा। लाडकी बहिन योजना पर लगभग 40,000 से 45,000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। ऐसे में जब इतनी बड़ी राशि एक ही योजना पर जाएगी, तो स्वाभाविक रूप से बाकी योजनाएं प्रभावित होंगी।


‘आनंदाचा शिधा’ योजना के भविष्य पर भी चिंता जताई
बता दें कि यह योजना पिछले वर्ष विधानसभा चुनावों से पहले शुरू की गई थी। इस योजना के तहत योग्य महिलाओं को प्रतिमाह 1,500 रुपये की वित्तीय सहायसे दी जाती है। हालांकि, सरकार ने चुनावी घोषणा पत्र में इस राशि को बढ़ाकर 2,100 प्रति माह करने का वादा किया था, लेकिन वित्तीय स्थिति कमजोर होने के कारण अभी तक यह वादा पूरा नहीं हुआ है। वहीं भुजबल ने अपने विभाग की लोकप्रिय ‘आनंदाचा शिधा’ योजना के भविष्य पर भी चिंता जताई। यह योजना 2022 में दिवाली के समय शुरू की गई थी, जिसके तहत केसरिया राशन कार्डधारकों को मात्र₹100 में चार आवश्यक खाद्य वस्तुओं का पैकेट उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना पर हर वर्ष लगभग 500 करोड़ का खर्च आता है और औसतन 1.6 करोड़ परिवार इससे लाभान्वित होते हैं। भुजबल ने कहा कि लाडकी बहिन योजना के भारी खर्च की वजह से इस बार ‘आनंदाचा शिधा’ योजना लागू करना कठिन लग रहा है।

‘शिव भोजन थाली’ भी संकट में
उन्होंने यह भी बताया कि उनके विभाग की एक अन्य योजना ‘शिव भोजन थाली’ भी संकट में है। इस योजना के तहत दो लाख जरूरतमंदों को हर दिन 10 रुपये में भोजन दिया जाता है। इसके लिए सालाना 140 करोड़ रुपये की जरूरत होती है, लेकिन हमें सिर्फ 70 करोड़ मिले हैं। ऐसे में आगे स्थिति सुधरेगी, इसकी उम्मीद कम है। शिव भोजन थाली में दो चपाती, एक सब्जी, एक दाल और एक कटोरी चावल दिया जाता है। शहरों में इसकी वास्तविक लागत 50 और ग्रामीण इलाकों में₹35 आती है, जिसका अंतर राज्य सरकार सब्सिडी के रूप में वहन करती है। राज्य के बजट आंकड़े भी भुजबल की चिंता की पुष्टि करते हैं। वित्त वर्ष 2025-26 के अनुसार, महाराष्ट्र का राजस्व घाटा 45,890.86 करोड़ पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष के अनुमानित घाटे 20,050.69 करोड़ से दोगुना है। वहीं, राजकोषीय घाटा 1,36,234.62 करोड़ तक जा पहुंचा है।

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