विकास यात्रा में बड़ी बाधा है अवैध प्रवासन

भारतीय शासन को ‘आप्रवास एवं विदेशी विषयक विधेयक 2025’ को इसकी नियामकीय शर्तों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करना चाहिए। यदि भारत में आप्रवासन की स्थितियां-परिस्थितियां विधेयक के कठोर नियमों का अतिक्रमण करते हुए अत्यधिक संकटमुखी हो चुकी हैं, तो केंद्रीय शासन को अवैध प्रवास रोकने के लिए वैसे ही कार्य करने चाहिए, जैसे नक्सली समस्याओं के निवारण के लिए कर रही है। यह देखना गर्व एवं आनंद का विषय है कि वर्तमान केंद्रीय शासन अपने निर्धारित संकल्प के अनुरूप क्रांतिकारी ढंग से नक्सली समस्या का समाधान कर रही है। ऐसी ही दिशादृष्टि अवैध प्रवास रोकने को चाहिए…
राष्ट्रीय समस्याएं कई स्तर पर कई विकृत व विसंगत स्वरूपों में हल हुए बिना ही परिव्याप्त हैं। जब तक इन समस्याओं का युद्धस्तर पर, क्रांतिकारी ढंग से, सुनियोजित व सुशासकीय विधिपूर्वक समाधान नहीं हो जाता, तब तक मूल भारतीय निवासियों का जीवन कितनी ही आधुनिक प्रगतियों के उपरांत भी असंतुष्ट, अशांत व दु:खी बना रहेगा। ऐसी ही समस्याओं में से एक है देश में अवैध प्रवासन। औपचारिक रूप में स्वतंत्र होने के बाद से लेकर अब तक अवैध प्रवासन वर्ष-प्रतिवर्ष नई-नई चुनौतियों के साथ बढ़ता रहा है। केंद्र व राज्यों में स्थापित रहे पहले के शासन ने इस ओर समस्या की दृष्टि के साथ ध्यान ही नहीं दिया। विपरीत ऐसे शासन ने अवैध रूप में भारत में रहे लोगों को अपने-अपने राजनीतिक दलों के लिए अवैध मतदाताओं के रूप में इस्तेमाल किया। सत्तारूढ़ होने के लिए ऐसे दलों का यह राजनीतिक अभ्यास आज भी चल रहा है। चौदह वर्ष पूर्व केंद्र में सत्तासीन राजग के शासनकाल में यह दुष्प्रवृत्ति पहचानी गई। इसके निवारण हेतु राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक प्रयास किए गए। गत चौदह वर्षों से इस दिशा में सैद्धांतिक स्तर पर तो शासकीय-प्रशासकीय कार्य अवश्य हो रहे हैं, किंतु धरातल पर क्रांतिकारी व त्वरित कार्यों का निष्पादन नहीं हो पा रहा है। वर्तमान केंद्रीय शासन ने अवैध प्रवासन पर प्रभावी नियंत्रण हेतु गत मार्च के प्रथम सप्ताह में संसद में एक विधेयक पारित किया था, किंतु विधेयक का धरातली प्रभावपूर्ण क्रियान्वयन आज तक भी आरंभ नहीं हो सका है। गत अप्रैल में पहलगाम नरसंहार हुआ था। नरसंहार के दोषी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों को कठोर दंड देने के संकल्प के साथ ही भारतीय शासन ने पाकिस्तान के साथ व्यापार समेत अनेक स्तरीय संबंध समाप्त कर दिए थे।
पाकिस्तानी नागरिकों को कुछ दिनों में भारत छोडऩे के लिए कह दिया गया था। इसी क्रम में वाघा अटारी सीमा भी बंद कर दी गई थी। परिणामस्वरूप देशभर में पाकिस्तान समेत अनेक अन्य सीमावर्ती देशों के अवैध व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें भारत से बाहर निकालने का अभियान आरंभ हुआ। समय बीतने पर पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों व आतंकवादियों को समाप्त करने के बाद प्रतिशोधवश किए गए पाक के सैन्य दुस्साहस को ध्वस्त करने हेतु भारत-पाकिस्तान के मध्य अल्प समयावधियों के दो युद्ध भी हुए। भारत ने ये युद्ध पहलगाम नरसंहार में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से ऑपरेशन सिंदूर अभियान के अंतर्गत किए थे, जिनमें पाकिस्तान गिड़गिड़ाते हुए घुटनों पर आ गया और उसने अपने सैन्य परिचालन निदेशक के माध्यम से अपने भारतीय समकक्ष के साथ फोन वार्ता कर युद्ध रुकवाने का अनुरोध किया। इतना सब होने की समयावधि में भारत का केंद्रीय प्रजातंत्र पाकिस्तान व बांग्लादेश समेत अन्य देशों के अवैध व्यक्तियों को देश से बाहर करने के लिए अतिसक्रिय दिखाई दिया था। किंतु ज्यों ही भारत व पाकिस्तान का युद्ध थमा, ट्रंपप्रेरित टैरिफ के उतार-चढ़ावों से भारत देश प्रभावित होने लगा तथा भारतीय शासन अन्य देशी-विदेशी कार्यों व योजनाओं में व्यस्त हुआ, त्यों ही अवैध प्रवासन पर नियंत्रण की शासकीय-प्रशासकीय गतिविधियां शिथिल पडऩे लगीं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, अफगानिस्तान, नेपाल जैसे भारत के पड़ोसी देशों के अतिरिक्त अन्य देशों के अवैध रूप में रह रहे व्यक्तियों को शासकीय अभिरक्षा में लेकर अनिवार्य कार्रवाई करते हुए उन्हें देश से निकाले जाने के कार्य रुक गए। अवैध व्यक्तियों को भारत से बाहर करने की कार्रवाइयां तब तक होती रहनी चाहिए, जब तक कि एक-एक अवैध व्यक्ति को बाहर नहीं कर दिया जाता तथा भविष्य में किसी भी तरह उत्पन्न हो सकने वाली अवैध प्रवासन की परिस्थितियों के लिए एक पूर्वनिवारक निष्ठावान प्रभावी सुरक्षा तंत्र विकसित नहीं कर दिया जाता। यह सुनिश्चित है कि भारत में पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों के न्यूनतम दस-बीस करोड़ अवैध व्यक्ति तो रह ही रहे हैं। इन करोड़ों अवैध लोगों का रहन-सहन सीधा-साधा व सादा नहीं है। ये लोग भारतीय अर्थव्यवस्था, राजव्यवस्था, समाजव्यवस्था में कोई सकारात्मक योगदान नहीं देते। इनकी उपस्थिति चहुंमुखी अराजकता उत्पन्न करती है। प्राय: ये लोग हरसंभव अवैध कार्यों में लिप्त पाए जाते हैं। इनके कारण मूल भारतीय निवासियों के अधिकारों का हनन होता है। मूलनिवासी अनेक स्तरीय असुरक्षा से घिरते हैं। अवैध प्रवासन की स्थितियां राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र तक अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करती हैं। भारत की राजधानी दिल्ली एवं विशाल महानगर ही नहीं, अपितु सुदूर के छोटे-छोटे उप नगरों एवं गांवों तक में अवैध व्यक्ति उपस्थित हैं।
देश में सार्वजनिक अपराधों के होने में भी अवैध व्यक्तियों की संलिप्तता अत्यधिक है। ऐसे लोग जिन देशों के मूल नागरिक होते हैं, उनके लिए भी भारत विरोधी जासूसी व अन्य कार्य करते हैं। कुछ दिन पूर्व चीन में बंद कार में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन एवं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो विस्तृत वार्ता की थी, उसमें यही उल्लेख था कि कैसे अमेरिकी सीआईए का एक कार्यकर्ता नरेंद्र मोदी की हत्या करने के षड्यंत्र से बांग्लादेश की राजधानी ढाका के एक होटल में ठहरा हुआ था। भारत के सौभाग्य से वह षड्यंत्रकारी होटल में मृत पाया गया। इस प्रकरण में भारतवासी यह प्रसन्नता अनुभव कर सकते हैं कि रूस, भारत व चीन की गुप्तचर एजेंसियों ने मिलकर सीआईए एजेंट के षड्यंत्र को विफल कर उसे मार दिया, किंतु इस आधार पर भारत के केंद्रीय शासन को बांग्लादेश की ओर से भारत में होने वाली अवैध घुसपैठ समेत समस्त अन्य गतिविधियों पर नवीन कठोर नियंत्रण लगाने होंगे।
साथ ही भारत में पड़ोसी देशों तथा सुदूर के दूसरे देशों से होने वाले अवैध प्रवासन पर कठोर से भी कठोर नियंत्रण लगाने की अति आवश्यकता है। भारतीय शासन को ‘आप्रवास एवं विदेशी विषयक विधेयक 2025’ को इसकी नियामकीय शर्तों के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करना चाहिए। यदि भारत में आप्रवासन की स्थितियां-परिस्थितियां विधेयक के कठोर नियमों का अतिक्रमण करते हुए अत्यधिक संकटमुखी हो चुकी हैं, तो केंद्रीय शासन को अवैध प्रवास रोकने के लिए वैसे ही कार्य करने चाहिए, जैसे नक्सली समस्याओं के निवारण के लिए कर रही है। गत पांच वर्षों में यह देखना अति गर्व एवं आनंद का विषय है कि वर्तमान केंद्रीय शासन अपने निर्धारित संकल्प के अनुरूप क्रांतिकारी ढंग से नक्सली समस्या का समाधान कर रही है। ऐसी ही शासकीय कार्यगत दिशादृष्टि अवैध प्रवास के रोकथाम तथा एक-एक अवैध व्यक्ति को देश से बाहर करने के लिए भी जाग्रत होनी चाहिए। विकसित भारत के संकल्प को सुव्यवस्थित ढंग से साधने के लिए जिन-जिन समस्याओं का प्रमुखता के आधार पर निवारण होना चाहिए, उनमें अवैध प्रवास सबसे पहले है। अत: केंद्रीय शासन को इस दिशा में बिना रुके निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है। कार्य योजनाओं को प्रतिदिन परिष्कृत करने की आवश्यकता है।
विकेश कुमार बडोला




