महिलाओं ने बदल दी बिहार चुनाव की तस्वीर

बिहार चुनाव में वोटिंग का बढऩा, जाति की बजाय मुद्दों के आधार पर मतदान, महिलाओं की चुनाव में बढ़ती भागीदारी, ये सब भारत में मजबूत होते लोकतंत्र के द्योतक हंै…
बिहार चुनाव में एग्जिट पोल से पहले तक एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही थी। ऐसे कयास भी लगाए जा रहे थे कि शायद बिहार की जनता परिवर्तन के नाते नीतीश कुमार के स्थान पर तेजस्वी यादव को सत्ता सौंप सकती है। नीतीश कुमार की आयु, एंटी इनकुंबेंसी, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता आदि जैसे तर्क भी दिए जा रहे थे। लेकिन चुनाव में गिनती के बाद जब महागठबंधन की करारी हार हुई और कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ हो गया, तो चुनाव विश्लेषक सोचने को मजबूर हो रहे हैं कि आखिर इन परिणामों के पीछे क्या कारण रहा? चुनाव विश्लेषक एनडीए की जीत के पीछे एक बड़ा श्रेय महिलाओं के भारी समर्थन को दे रहे हैं। यह सच है कि इस चुनाव में महिलाओं ने अभूतपूर्व ढंग से वोटिंग की है। 2024 के संसदीय चुनाव में 59.4 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला, जबकि पुरुषों का वोट प्रतिशत 53.3 ही रहा था, जबकि 2019 के आम चुनावों में यह प्रतिशत क्रमश: 59.9 और 53.3 प्रतिशत था। लेकिन 2025 के विधानसभा में महिलाओं ने कहीं ज्यादा 71.8 प्रतिशत की रिकॉर्ड वोटिंग की, जबकि पुरुषों का वोट प्रतिशत 63 प्रतिशत रहा। यानी लगभग 9 प्रतिशत बिंदु का अंतर। विभिन्न विधानसभा क्षेत्र का विश्लेषण बताता है कि यह अंतर कई स्थानों पर 10 प्रतिशत से 21 प्रतिशत का भी रहा। पहले चरण में जहां महिला और पुरुष वोटों का प्रतिशत क्रमश: 69 और 61.6 का रहा। लेकिन दूसरे चरण में तो महिलाओं ने और अधिक जोर से वोट डाले और महिला वोट 74.6 प्रतिशत तक पहुंच गए और पुरुष वोट 64.4 तक ही पहुंच पाए।क्यों बढ़ा महिलाओं का वोट प्रतिशत : चूंकि महिलाओं द्वारा पूर्व की तुलना में भारी मात्रा में वोट डाले गए, तो यह समझना जरूरी हो जाता है कि इसका क्या कारण रहा होगा? विपक्षी दल इसके पीछे एनडीए सरकार द्वारा चुनाव घोषित होने से थोड़ा पहले मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 75 लाख महिलाओं को 10000 रुपए की राशि अंतरित करने को कारण मानते हैं। हालांकि इसे झुठलाया नहीं जा सकता कि इस योजना के कारण भी महिलाओं ने एनडीए को समर्थन देने का मन बनाया होगा। लेकिन केवल 10000 रुपए की राशि का अंतरण ही महिलाओं को समर्थन का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि महागठबंधन ने तो चुनाव प्रचार में महिलाओं को 2500 रुपए देने का वादा किया था। इसके साथ-साथ महागठबंधन ने कई और वादे भी किए थे। लेकिन शायद महागठबंधन महिलाओं को अपने वादों से आश्वस्त नहीं कर पाया और महिलाओं ने एनडीए पर अधिक विश्वास जताया। मात्र राशि दिए जाने से यदि जनता का विश्वास जीता जाता हो तो इससे पूर्व कई अन्य राज्यों में लैपटॉप का वितरण, अन्य कई प्रकार की मुफ्त योजनाओं के बावजूद वहां की सत्तारूढ़ सरकारें पुनरावृत्ति नहीं कर पाई थी। इसलिए मात्र 10000 रुपए की एकमुश्त राशि दिया जाना ही एनडीए सरकार को महिलाओं के समर्थन का कारण नहीं हो सकता। हमें इस संबंध में महिला सशक्तिकरण और कल्याण के संदर्भ में नीतीश सरकार के लगभग 20 वर्षों का लेखा-जोखा लेना होगा। इसके साथ ही बिहार के आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के प्रयासों का भी आकलन करना होगा।
लालू शासन के जंगल राज का डर : लालू शासन में सामान्य जनता लचर कानून और व्यवस्था से त्रस्त थी। बलात्कार, अपहरण और फिरौती, हत्याएं और अन्य प्रकार के अपराध बिहार में सामान्य बात थी। इन अपराधों की त्रासदी अधिकांशत: महिलाओं को ही झेलनी पड़ती थी। महिलाओं को यह डर सता रहा था कि यदि तेजस्वी यादव चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनते हैं तो इस जंगल राज्य की वापसी हो सकती है। महिलाओं ने नीतीश शासन में महिला सुरक्षा, कानून और व्यवस्था में बेहतरीन सुधार का स्वाद चख लिया था। ऐसे में वे लालू शासन के जंगल राज्य की पुनरावृत्ति नहीं होने देना चाहती थीं।
शराबबंदी : नीतीश सरकार के दौरान लागू नशाबंदी ने जिसे सर्वाधिक सुकून दिया वो महिला ही थी। भारत के सर्वाधिक पिछड़े राज्य में शराब महिलाओं के उत्पीडऩ का सबसे बड़ा कारण थी। महिलाओं को यह भी लगता था कि किसी अन्य दल के शासन के आने से शराबबंदी का कानून निरस्त भी हो सकता है। जहां लालू यादव के शासनकाल में बिहार राज्य की जीडीपी में प्रतिवर्ष 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हो रही थी यानी जब पूरे देश में जीडीपी 6 से 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी, बिहार में जीडीपी वास्तव में सिकुड़ रही थी। विकास के अभाव में पलायन जोरों पर था, कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार खराब हो रही थी। डॉक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी सभी बिहार को छोड़ रहे थे। ऐसे में जब नीतीश सरकार ने आकर बिहार की जनता को न केवल बेहतर शासन दिया, बल्कि विकास की शुरुआत भी की और जनकल्याणकारी योजनाएं भी शुरू कर दी। सुशासन बाबू के नाम पर उनकी छवि बनी और उसके बाद से उनकी लोकप्रियता लगातार बरकरार रही।
डबल इंजन सरकार की कल्याणकारी योजनाएं : नीतीश कुमार के पहले 10 साल की सरकार में तो विकास, सुशासन और कल्याणकारी योजनाओं के चलते बिहार की जनता को राहत मिली ही थी, 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार आने के बाद तो कल्याणकारी योजनाएं व्यवस्थागत रूप धारण कर गर्इं। सबसे पहले जनधन खातों का खुलना और तदुपरांत सीधे लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), शौचालय का निर्माण, प्रधानमंत्री ग्रामीण शहरी आवास योजना के तहत घरों का निर्माण, 100 प्रतिशत बिजली की पहुंच और विद्युत आपूर्ति की निरंतरता, हर घर नल से जल के माध्यम से पेयजल की पहुंच, आयुष्मान भारत योजना से स्वास्थ्य सुरक्षा बेहतर, आंगनबाड़ी सुविधा, उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडरों का मुफ्त वितरण जैसे उपायों से आम बिहारी के जीवन में बड़ा बदलाव आया। देखने में आया है कि अब पलायन रुक गया है और बिहार के मूल निवासी अपने गांव की ओर भी लौटने लगे, जिससे बिहार में विकास की संभावनाएं और बेहतर होने लगी हैं। डबल इंजन की सरकार के दौरान महिलाओं के लिए लखपति दीदी, ड्रोन दीदी, आशा और आंगनबाड़ी महिलाओं के लिए बेहतर वेतन और स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के लिए बेहतर योजनाओं ने समाज में महिलाओं को आत्मनिर्भर बना कर न केवल उनका जीवन बेहतर किया बल्कि उनके परिवार और समाज में सम्मान में भी उत्तरोत्तर वृद्धि की है।
जाति नहीं विकास बना महत्वपूर्ण मुद्दा : कहा जाता है कि बिहार की राजनीति में जाति समीकरण हावी रहते हैं। चुनाव में जाति और बिरादरी के आधार पर वोट डाले जाते हैं। राजनीति को जातिगत समीकरणों के आधार पर आंका जाता है। कहा जा रहा था कि तेजस्वी यादव, यादव और मुस्लिम वोटों के धुव्रीकरण से जीत हासिल कर सकते हैं। लेकिन इस बार महिलाओं ही नहीं, पुरुष वोटरों ने भी जातिगत विचार से इतर विकास और सुशासन पर वोट डाला और पुन: एनडीए को सत्ता सौंप दी है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का ध्यान अधिक महिला वोटिंग पर अधिक है, लेकिन समझना होगा कि महिलाओं ने ही नहीं, पुरुषों ने भी वोटिंग पहले से ज्यादा की है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक रिकॉर्ड वोटिंग है। बिहार चुनाव में वोटिंग का बढऩा, जाति की बजाय मुद्दों के आधार पर मतदान, महिलाओं की चुनाव में बढ़ती भागीदारी, ये सब भारत में मजबूत होते लोकतंत्र के द्योतक हैं। विपक्षी दलों के लिए भी यह एक चेतावनी है कि वे किसी वर्ग विशेष के तुष्टीकरण, मुफ्त योजनाओं के वादे, जाति समीकरणों के आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति से बाहर आकर, सुशासन, जन कल्याण और विकास की राजनीति करें तो उनके लिए संभावनाएं बेहतर हो सकंेगी। इस तरह बिहार चुनाव की तस्वीर बदलने में महिलाओं ने भूमिका निभाई।
डा. अश्वनी महाजन




