संपादकीय

राम ही सनातन नहीं

अयोध्या के भव्य, दिव्य श्रीराम मंदिर के शिखर पर धर्म-ध्वजा फहराने के साथ ही मंदिर की शास्त्रीय प्रक्रिया परिपूर्ण हो गई। राम मंदिर संपूर्ण और सार्थक हो गया। प्रधानमंत्री मोदी का कथन उचित है कि सदियों के घाव और दर्द अब भर रहे हैं। सदियों की वेदना आज विराम पा रही है, क्योंकि 500 साल पुराना संकल्प आखिर पूरा हुआ है। यकीनन यह राम मंदिर के संकल्प रूपी यज्ञ में पूर्णाहुति की बेला है। यह सनातन धर्म की ध्वजा पुनर्जागरण की पताका है। प्रधानमंत्री ने अयोध्या को नए भारत के प्रतीक के तौर पर परिभाषित किया है। बेशक राम मंदिर बनने से अयोध्या का सब कुछ निखर गया है। अब अयोध्या अराजकता, अमावस की कालिमा, सांप्रदायिक टकराव का शहर नहीं, बल्कि उप्र और भारत के आर्थिक विकास की भी ध्वजा लहरा रहा है। अब अयोध्या सूर्यवंश, इक्ष्वाकु वंश, रघुकुल की ध्वजा लहरा रहा है। राम भारत के सांस्कृतिक, सनातनी संघर्ष के एक हिस्से के किरदार हैं। राम कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि मूल्य, अनुशासन, मर्यादा, दिशा के प्रतीक-पुरुष हैं। यकीनन राम ही भारत हैं और देश आज राममय है, प्रधानमंत्री मोदी के ये शब्द एकांगी और अधूरे हैं। भारत राममय के साथ-साथ शिवमय, कृष्णमय, गणेशमय, जैनमय, बौद्धमय, सिखमय, यीशूमय भी है। देश में बड़ी आबादी इस्लाममय भी है। जब भारत में इस्लाम और ईसाई धर्म नहीं थे, तब भी राष्ट्र का अस्तित्व था। उसकी सभ्यता-संस्कृति वैदिक काल-सी प्राचीनतम है। इन देवताओं और भगवानों में आस्था, श्रद्धा और भक्ति-भाव रखने वाले श्रद्धालु भी असंख्य हंै।

वे श्रीराम के साथ अपने आराध्य को भी ‘पूजनीय’ मानते हैं। जिस राष्ट्र में 33 करोड़ देवताओं की कल्पना की गई है और उनमें से कुछ की प्रतिमाएं राम मंदिर के परिसर में ही स्थापित की गई हैं, उनके खूबसूरत मंदिर भी बनाए गए हैं, उस राष्ट्र में राम की ही चिंता करना, उन्हें ही महिमामंडित करना एकांगी ही है। सभी देवता और भगवान प्रभु श्रीराम में ही निहित नहीं हैं। उनके अस्तित्व और उनकी मान्यता भिन्न हैं। प्रधानमंत्री मोदी भारत को ‘राममय’ ही चित्रित नहीं कर सकते। अन्य भगवानों के अस्तित्व भी ‘राममय’ नहीं हैं। अभी सदियों के घाव टीस रहे हैं, दर्द भी शांत नहीं हुआ है, क्योंकि सनातन के ध्वज-पुरुष राम ही नहीं हैं। छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, अहिल्या बाई होलकर, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर गुरु तेगबहादुर तक कई भारत मां के जांबाज सपूत रहे हैं, जिन्होंने मुगलों, आक्रांताओं के खिलाफ, सनातन और हिंदू धर्म की रक्षा की, लड़ाइयां लड़ीं, बलिदान दिए, भारत को कलंकित या झुकने नहीं दिया। उनका सांस्कृतिक और राष्ट्रीय योगदान प्रभु श्रीराम से कमतर नहीं है। उनके भी महामंदिर बनाए जाएं। उनके शिखरों पर भी केसरिया ध्वजा फहराई जाए। खुद प्रधानमंत्री सिख गुरु तेगबहादुर के ‘शहीदी दिवस’ के मौके पर कुरुक्षेत्र गए थे। सिख गुरु के सनातनी संघर्ष और बलिदान का उन्होंने उल्लेख भी किया था, लेकिन प्रधानमंत्री ने ‘गुरुमय’ शब्द का प्रयोग नहीं किया। चूंकि प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश के ‘कार्यकारी प्रमुख’ हैं, शासनाध्यक्ष हैं, लिहाजा ‘राममय’ को ही सनातन मान लेना उनकी भेदभावी सोच है। प्रधानमंत्री के लिए सभी धर्म, इस्लाम भी, समान, गरिमामय और महत्वपूर्ण हैं। बेशक बहुत कम मुसलमान प्रधानमंत्री की पार्टी भाजपा को वोट देते हैं। बहरहाल अयोध्या में प्रभु राम का भव्य मंदिर बना है, तो अर्थव्यवस्था की ही कायापलट हो गई है। अब अयोध्या पंचतारा होटलों, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे वाला शहर है। सिर्फ अयोध्या का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ही 10,000 करोड़ रुपए से अधिक है। अयोध्या की पर्यटन अर्थव्यवस्था 2028 तक 18,000 करोड़ रुपए से अधिक के राजस्व वाली होगी। जून, 2025 तक 23.82 करोड़ पर्यटक और रामभक्त अयोध्या जा चुके थे। रामलला की प्रतिमा स्थापित करने के दिन से 45 करोड़ से ज्यादा भक्त प्रभु राम के दर्शन कर चुके हैं।

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