राजनीति

कांग्रेस के लिए गंभीर आत्मचिंतन का समय

हाल के बिहार चुनावों में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन, जहां वह 243 सीटों वाली विधानसभा में सिर्फ 6 सीटें जीत सकी, उसके नीचे जाने के पैटर्न का हिस्सा है, कभी-कभी कुछ छोटी-मोटी गड़बडिय़ों को छोड़कर, जो देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के फिर से उभरने के अलावा दूसरे कारणों से हो सकती हैं। वह पार्टी, जिसने आजादी के पहले 30 सालों तक बिहार पर राज किया और जिसे देश के सबसे पिछड़े राज्य के लिए एक मजबूत नींव रखनी चाहिए थी, अपने जनादेश का फायदा उठाने में नाकाम रही और उसने अभी-अभी अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है। 2020 के राज्य विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस को 19 सीटें मिलीं, जबकि 2015 में उसे 27 सीटें मिली थीं।

कांग्रेस ने महागठबंधन के हिस्से के तौर पर 61 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 6 सीटें ही जीत सकी। उसका वोट शेयर 8.46 प्रतिशत पर सीमित रहा, जबकि प्रशांत किशोर की नई आई जन सुराज पार्टी 3.44 प्रतिशत वोट शेयर हासिल कर सकी। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में जीत और हाल के लोकसभा चुनावों में थोड़े बेहतर प्रदर्शन को छोड़कर, पार्टी की लगातार गिरावट को देखते हुए उसे गंभीरता से आत्मनिरीक्षण और बदलाव के काम पर लग जाना चाहिए था। लेकिन, वह अभी भी रेत में सिर छिपाए हुए है और पार्टी में नई जान डालने की कोई सच्ची कोशिश नहीं कर रही है। अब तक पार्टी नेताओं को यह एहसास हो गया होगा कि उसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और अब लोकसभा में विपक्ष के नेता जो मुद्दे उठा रहे हैं, वे वोटरों को पसंद नहीं आ रहे। लोकसभा चुनावों से पहले उनकी पदयात्रा का कुछ असर हुआ था, लेकिन ऐसी कोशिशें कभी-कभार और बहुत कम होती हैं। वह लंबे समय से अंडरग्राऊंड हैं और पार्ट-टाइम पॉलिटिकल लीडर के तौर पर काम कर रहे हैं। उनके दिए गए नारे जैसे ‘चौकीदार चोर है’ और ‘वोट चोरी’ ज्यादा असरदार नहीं रहे और यह राष्ट्रीय बहस के गिरते स्तर को दिखाता है।

नरेंद्र मोदी पर कई आरोप लगाए जा सकते हैं, लेकिन ‘चौकीदार चोर है’ के नारे से उन्हें भ्रष्ट कहना एक बेवकूफी भरा विचार था। ऐसा लगता है कि उनकी अपनी पार्टी के अंदर ही नेताओं का एक बड़ा ग्रुप इस आरोप के साथ चुनाव कैंपेन चलाने के विचार के खिलाफ था। इसी तरह ‘वोट चोरी’ का आरोप भी वोटरों को समझाने में नाकाम रहा। भले ही राहुल गांधी ने इसे एक बेहतरीन जांच बताया, लेकिन वे वोटर लिस्ट में कथित गड़बडिय़ों को या तो नकली पोलिंग से जोडऩे में नाकाम रहे या यह नहीं बता पाए कि इससे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को कैसे मदद मिली। उनका तथाकथित हाइड्रोजन बम भी बेकार साबित हुआ। हालांकि उन्होंने एक ब्राजीलियन मॉडल की तस्वीरों वाली वोटर रोल की कॉपी दिखाईं, लेकिन वे यह साबित नहीं कर पाए कि असल में भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में नकली वोट डाले गए थे। असल में, अलग-अलग मीडिया प्लेटफॉर्म के पत्रकार, जो नकली वोटरों के आरोपों की जांच करने गए, उन्हें कोई भी नकली वोट नहीं मिला। भले ही इलैक्टोरल वोटर शीट पर मॉडल की फोटो थी, लेकिन उसी नंबर वाले वोटर पहचान पत्र पर असली वोटर की फोटो थी और उन्होंने अपना वोट डाला था।

कांग्रेस और राहुल गांधी ने यह प्रचार करने की कोशिश की कि बिहार के लिए बड़े पैमाने पर ‘वोट चोरी’ की योजना बनाई गई थी, लेकिन इस पर भी कुछ ही लोग यकीन कर पाए। राज्य में रिकॉर्ड वोटिंग और राजग को मिले बड़े जनादेश से यह साफ है कि वोटर कांग्रेस नेता की दलीलों से सहमत नहीं थे। राहुल गांधी के ‘संविधान बचाओ’ कैंपेन का असर कम ही हुआ, लेकिन सत्ताधारी सरकार की तरफ से कोई उलटी कार्रवाई न होने पर भी कैंपेन जारी रखने की उनकी जिद ने भी कैंपेन की हवा निकाल दी। मुद्दों का चुनाव और बेबुनियाद आरोप लगाने की आदत लीडरशिप की खराब छवि दिखाती है। गांधी परिवार को सलाह देने वाले ज्यादातर नेता खुद नाकाम नेता हैं या उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। जाहिर है, उन्हें जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है।

कांग्रेस से बार-बार अपने घर को ठीक करने की अपील करने पर भी कोई भरोसेमंद जवाब नहीं मिला। इसके नेताओं की खानदानी सोच पार्टी को नीचे खींच रही है, जिसकी वजह से कई काबिल नेताओं को अलग होना पड़ा और शायद और भी जाने वाले हैं। पार्टी और इसके नेताओं को यह समझना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी के एकमात्र संभावित राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी है। यह लोकतंत्र के हित में है कि पार्टी एक प्रभावी भूमिका निभा सके।-विपिन पब्बी

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